Sunday, 8 December 2019

पर्यावरण का अर्थ एवं पर्यावरणीय समस्याएं एवं समाधान, पर्यावरणीय प्रदूषण के प्रकार


* पर्यावरण का अर्थ :-

                                               पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि - आवरण से हुआ है इसका शाब्दिक अर्थ है | बाहरी आवरण अर्थात हमारे चारों और जो प्राकृतिक भौतिक व सामाजिक आवरण है वही वास्तविक अर्थों में पर्यावरण कहलाता है | अंग्रेजी में पर्यावरण को environment कहते हैं | 

 जीव जिस वातावरण या परिस्थितियों में रहता है उस उस का पर्यावरण कहते हैं पर्यावरण में जीवो के जीवन यापन हेतु मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होती है हवा पानी खाद्यान्न आवास और प्रकाश जैसी मूलभूत सुविधाओं के साथ वायु तापमान प्रकाश या नमी जैसी कई अन्य गौण सुविधाएं भी स्वत : उपस्थित होती है | पर्यावरण जीवों को प्रभावित करता है और जीव पर्यावरण को प्रभावित करते हैं | 


* परिभाषाएं :-

 सी. सी. पाई के अनुसार -

                                                        मनुष्य एक विशेष स्थान पर विशेष समय पर जिन संपूर्ण परिस्थितियों से गिरा हुआ है इसे पर्यावरण का जाता है | 


 बोरिंग के अनुसार_ 

                                              एक व्यक्ति के पर्यावरण में वह सब कुछ सम्मिलित किया जाता है जो उसके जन्म से मृत्यु पर्यंत प्रभावित करता है | 

* पर्यावरणीय समस्याएं :-

                                                        मानव का सृष्टि की उत्पत्ति से यह प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है पृथ्वी पर मानव के आविर्भाव के साथ ही उसकी आवश्यकता ओं का भी जन्म हुआ आदिमानव का तो जीवन पूर्णता प्रकृति पर ही निर्भर था मानव ने अपने भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए अनेक कल कारखानों उद्योगों का विकास किया जनसंख्या वृद्धि के कारण ग्राम नगर और महानगरों की संख्या में तीव्र   विस्तार होता गया | संपूर्ण मानव समाज ने अपनी उत्पत्ति से लेकर 1950 तक जितना प्रकृति का उपयोग किया उतना तो संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1950 से 2000 के मध्य 50 वर्षों में ही कर लिया है |  मानव और प्रकृति के मध्य संतुलन बढ़ने से आए दिन प्रकृति प्रकोप  भूकंप, ज्वालामुखी अतिवृष्टि अनावृष्टि सूखा जैसी आगे बढ़ रही है यही नहीं मानव जीवन पर भी अनेक तरह के संकट मंडरा रहे हैं इन्हीं सब के कारण हर रोज नहीं वादियां सामने आ रही है | 


* पर्यावरणीय प्रदूषण :-

                                                        मानव सभ्यता के विकास के साथ उसकी आवश्यकताओं का भी विस्तार हुआ है तेजी से बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू किया उद्योग एवं तकनीकी विकास जैसे हथियारों के सारे मानव ने अपने स्वार्थी  प्रकृति और जनसंख्या के दबाव में प्रकृति का अनियंत्रण दोहन किया हर बड़े नगर के साथ औद्योगिक क्षेत्र का विकास हुआ और इन उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के बढ़ने से पर्यावरणीय प्रदूषण नामक समस्या का जन्म हुआ | 

* प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा :-

                                                                             प्रदूषण अंग्रेजी के शब्द pollution का अनुवाद है जो मूल रूप से लैटिन भाषा के शब्द pollutus से बना है जिसका अर्थ है दूषित करना | ( to make unclean ) | 

 वायु जल एवं मृदा के भौतिक रासायनिक व जैविक गुणों में होने वाला ऐसा अनवांछित परिवर्तन जो मनुष्य के साथ ही संपूर्ण परिवेश के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्वों को हानि पहुंचाता है प्रदूषण कहलाता है | 


* ईपी ओडम :-

                                  अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अनुसार वायु जल तथा पृथ्वी के भौतिक रासायनिक एवं जैविक गुणों में ए वांछनीय परिवर्तन जिसे मनुष्य अन्य जीवो एवं प्रकृति संसाधनों की क्षति होती हो तो प्रदूषण का जाता है | 

 राष्ट्रीय प्रदूषण शोध समिति के अनुसार वायु जल तथा पृथ्वी के भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुणों में नकारात्मक परिवर्तन को प्रदूषण कहते हैं | 

* प्रदूषण के प्रकार :-

                                            वायु मंडल स्थल मंडल तथा जल मंडल के जीवन युक्त भागों के संयुक्त सत्र को जेव मंडल के थे इसी जेव मंडल में उपलब्ध सभी प्राकृतिक तत्वों को प्राकृतिक पर्यावरण का नाम दिया जाता है मानव द्वारा की गई समस्त प्रकार की गतिविधियों से बने प्रदूषक ओं की प्रकृति के आधार पर प्रदूषण को विभिन्न प्रकारों में समझा जा सकता है | 

( 1 ) वायु प्रदूषण | 

( 2 ) जल प्रदूषण | 

( 3 ) ध्वनि प्रदूषण | 

( 4 ) मृदा प्रदूषण | 

( 5 ) वाहन प्रदूषण | 

( 6 ) विकिरणीय  प्रदूषण | 

( 7 ) तापीय प्रदूषण | 

( 8 ) घरेलू अपशिष्ट के कारण प्रदूषण | 

( 9 )समुंद्री प्रदूषण |

( 10 ) कूड़े कचरे से प्रदूषण | 

( 11 ) अन्य कारणों से प्रदूषण | 
                                                     

( 1 ) वायु प्रदूषण :-

                                            समस्त जीव जगत के लिए वायु अभिषेक के उसके बिना जीवन संभव नहीं है वायुमंडल में विद्यमान सभी गैस एक निश्चित अनुपात में पाई जाती है जैसे नाइट्रोजन 78 पॉइंट जीरो आठसमस्त जीव जगत के लिए वायु अभिषेक के उसके बिना जीवन संभव नहीं है वायुमंडल में विद्यमान सभी गैस एक निश्चित अनुपात में पाई जाती है जैसे नाइट्रोजन 78.08 प्रतिशत ऑक्सीजन 20.94 प्रतिशत आर्गन 0.93 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड 0.03 प्रतिशत तथा अन्य 0.02 प्रतिशत | 


* वायु प्रदूषण को स्त्रोत के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-

       ( 1 ) प्राकृतिक प्रदूषण:-

                                                                    यह प्रकृति की देन है ज्वालामुखी उद्गार से निकले पदार्थ धूल भरी आंधी या तूफान दावानल पहाड़ों का झरना आदि प्राकृतिक क्रियाओं से प्रदूषण होता है | 

         ( 2 ) अप्राकृतिक प्रदूषण :-

                                                                           वायु को प्रदूषित करने में सबसे बड़ा योगदान स्वयं  मानव का ही है घरों में जलाने वाला इंदन उद्योग परिवहन साधन धूम्रपान रसायनों का उपयोग रेडियोधर्मिता जैसे उपयोगों से सर्वाधिक प्रदूषण हो रहा है | 

* वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव :-

  ( 1 ) मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है | 

( 2 ) वन संपत्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है जीव जंतु एवं कीटों के अस्तित्व का खतरा बनने लगा है | 

( 3 ) जलवायु एवं वायुमंडलीय दशाओं पर प्रतिकूल प्रभाव जलवायु परिवर्तन ओजोन परत में शरण ग्रीन हाउस प्रभाव मौसम पर प्रभाव | 

* वायु प्रदूषण के नियंत्रण हेतु उपाय :-

   ( 1 ) प्रदूषण रोकने के लिए व्हाट्सएप ओपन करना चेत्रफल के कम से कम 33% भाग पर वन हो ग्राम नगर के समीप हरित पेटी का विकास किया जाए इस कार्य में विभिन्न सामाजिक संगठन सरकारी व्यक्तिगत रूप से लोग आगे आ रहे हैं | 

( 2 ) वाहनों के प्रदूषण पर नियंत्रण किया जाए पेंट्रोल डीजल की अपेक्षा सौर ऊर्जा बैटरी चालित विद्युत इंजन में उपयोग किया जाए | 

( 3 ) ईट भट्टों में बर्तन बनाने व पकाने जैसे उद्योगों को शेर से बाहर स्थापित किया जाए | 

( 4 ) उद्योग के नवीन तकनीकी का उपयोग एवं शहर से बाहर स्थापित किया जाए | 
                                                 
            

Saturday, 7 December 2019

मानव अधिवास का अभिप्राय, तथा मानव अधिवासियों का वर्गीकरण एवं उनके प्रकार, प्रमुख समस्याएं


* मानव अधिवास का अभिप्राय :-

                                                                                पृथ्वी के धरातल पर मानव द्वारा निर्मित एवं विकसित आवासों के संगठित समूह को अधिवास कहते हैं मानव अधिवास को मानव बस्ती भी कहा जाता है मानव अधिवास साधारणतया स्थाई रूप से बसे होते हैं किंतु कुछ अधिवास स्थाई भी होते हैं कि एकांकी एवं संकुल भी होते हैं |  अधिवासो का महत्वपूर्ण उपयोग मानव निवास के लिए होता है | मानव के अपने सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक,  धार्मिक, आदि कार्यो  को पूरा करने के लिए भी अधिवास का उपयोग होता है | 

* प्रो. विडाल डी लॉ ब्लॉश के अनुसार:-

                                                                                              मानव द्वारा स्वयं के आवास एवं अपनी संपत्ति को रखने के लिए निर्मित संरचना से हैं | 

* मानव अधिवास की उत्पत्ति मूलत : अपने निवास के लिए होती है इस आधार पर अधिवासो  की उत्पत्ति को दो भागों में बांटा जा सकता है | 
   ( 1 ) अस्थायी अधिवास | 
 ( 2 ) स्थायी अधिवास |  

* मानव अधिवासो का वर्गीकरण :-

                                                                                  मानव अधिवासो  को प्राकृतिक दशाओं और आधारभूत कार्यों के आधार पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है  | 

( 1 ) ग्रामीण अधिवास | 

( 2 ) नगरीय अधिवास | 


( 1 ) ग्रामीण अधिवास :-

                                                       ग्रामीण अधिवास की अर्थव्यवस्था प्राथमिक व्यवसायों  पर निर्भर होती है जैसे कृषि, पशुपालन, लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, खनन एवं वनों से प्राप्त पदार्थों का संग्रहण आदि | आतियां ग्रामीण अधिवास मुख्यत : भूमि के विदोहन पर आधारित होते हैं | 


* ग्रामीण अधिवास के प्रकार :-

                                                                    मकानों की संख्या और उनके बीच की दूरी के आधार पर किए गए विभाजन को अधिवासों  का प्रकार कहा  जाता है | ग्रामीण अधिवासों  के प्रकारों के लिए भौतिक लक्षण सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक और सुरक्षा आदि आने कारक उत्तरदायी  हैं | सामान्यतः ग्रामीण अधिवासो  के निम्नलिखित चार प्रकार दृष्टिगोचर होते हैं | 

( 1 ) सघन या गुच्छित अधिवास | 

( 2 ) प्रकीर्ण या एकांकी अधिवास |

( 3 ) मिश्रित अधिवास |

( 4 ) पल्ली अधिवास |


( 1 ) सघन या गुच्छित अधिवास की विशेषताएं :-


( 1 ) आदिवास प्राय : खेतों के मध्य किसी ऊंचे एवं बाढ़  से सुरक्षित स्थानों पर वैसे होते हैं | 

( 2 ) सभी आवास पास पास बने होते हैं | 

( 3 ) सभी आवास एक स्थान पर सन केंद्रित होते हैं एवं बाहरी आक्रमणों का मिलकर मुकाबला करते हैं | 

( 4 ) इनमें आवासों की संख्या 40 50 से लेकर सैकड़ों तक हो सकती है | 

( 5 ) इनकी जनसंख्या उपलब्ध संसाधनों के आधार पर 500 से 1000 या अधिक हो सकती है | 


( 2 ) प्रकीर्ण या एकाकी अधिवास की विशेषताएं :-


 ( 1 ) आवाज एक दूसरे से दूर होते हैं | 

 ( 2 ) व्यक्ति एकांकी रूप में रहते हैं | 

 ( 3 ) व्यक्ति स्वतंत्र जीवन यापन के आदि  होते हैं | 

 ( 4 ) एक दूसरे के सहयोग की भावना कम होती है | 


( 3 ) मिश्रित अधिवास :-

                                                      इन अधिवास को अर्द सघन या अर्द  केंद्रीय अधिवास भी कहा जाता है जो सामान्यता किसी परिवार की संख्या में वृद्धि होने से आवासों की संख्या बढ़ने के कारण उत्पन्न होती है इनकी उत्पत्ति में पर्यावरणीय कारणों के स्थान पर पारंपरिक कारण उत्तरदायी होते हैं | 


( 4 ) पल्ली अधिवास :-

                                                        इस प्रकार के अधिवासो  में आवास एक दूसरे से अलग किंतु एक ही बस्ती में बसे होते हैं इसलिए उन सब का नाम एक रहता है बस्ती के अलग-अलग भागों में अलग-अलग जातियों के लोग रहते हैं | 


* ग्रामीण अधिवासों  के प्रतिरूप निम्नलिखित है | 

( 1 ) रेखीय प्रतिरूप | 

( 2 ) तीर प्रतिरूप | 

( 3 ) त्रिभुजाकार प्रतिरूप | 

( 4 ) आयताकार या चौक पट्टी  प्रतिरूप | 

( 5 ) अरीय त्रिज्या प्रतिरूप | 

( 6 ) वार्ताकार प्रतिरूप | 

( 7 ) तारा प्रतिरूप | 

( 8 ) पंखा प्रतिरूप | 

( 9 ) अनियमित प्रतिरूप | 

( 10 ) सीडी नुमा प्रतिरूप | 

( 11 ) अन्य प्रतिरूप | 

* ग्रामीण अधिवास की समस्याएं :-

( 1 ) आवागमन के साधनों का अभाव ग्रामीण अधिवासों  तक पहुंचने के लिए सार्वजनिक परिवहन साधनों का अभाव होता है व्यक्तिगत साधन ही उपलब्ध होते हैं इसलिए साधन रहित लोगों के सामने आवागमन एक गंभीर समस्या है | 

( 2 ) स्वच्छ पेयजल का अभाव वर्तमान में पेयजल की समस्या ग्रामीण अधिवास में विकराल रूप धारण करती जा रही है जिससे यहां के निवासी कहीं बीमारियों के शिकार हो रहे हैं | 

( 3 ) स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव यहां के निवासियों को छोटी-छोटी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए समीपवर्ती नगर में जाना पड़ता है | 

( 4 ) विद्युत आपूर्ति का अभाव ग्रामीण अधिवास में नियमित एवं पर्याप्त विद्युत आपूर्ति का अभाव होता है इसे दैनिक एवं कृषि कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है | 

( 5 ) रोजगार के अवसर नहीं होना यहां रोजगार के अवसर नहीं होने से तीन प्रकार की बेरोजगारी | 

 • पूर्ण बेरोजगारी | 
 •छिपी बेरोजगारी | 
 • मौसमी बेरोजगारी पाई जाती है | 
                                                                              
                                                  



                     


                                               

                                               

Thursday, 5 December 2019

जनसंख्या : वितरण, घनत्व, एवं वृद्धि तथा जनसंख्या घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक


* जनसंख्या का वितरण और घनत्व :-

                                                                                     जनसंख्या वितरण एवं घनत्व को सामान्य थे एक ही अर्थ में समझा जाता है | जबकि दोनों ही भिन्न संकल्पनाएं हैं | जनसंख्या के वितरण में स्थानिक के वितरण पर अधिक बल दिया जाता है अर्थात पृथ्वी पर जनसंख्या के स्थितिगम पक्ष पर बल दिया जाता है जिससे क्षेत्रीय प्रतिरूप को स्पष्ट किया जाता है दूसरी ओर जनसंख्या घनत्व में जनसंख्या आकार एवं क्षेत्र के अनुपातिक संबंधों पर बल दिया जाता है | जनसंख्या वितरण से आश्य जनसमूह के स्थानिक वितरण से है इस पक्ष में मनुष्य के धरातल पर स्थिति जन्य प्रारूप का बोध होता है | जनसंख्या घनत्व का तात्पर्य जनसंख्या एवं धरातल के एक अनुपात से है यह जनसंख्या जमाव की मात्रा का मापन है जिससे प्रति इकाई क्षेत्र व्यक्तियों की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है | 

* विश्व में जनसंख्या के असमान वितरण का प्रतिरूप:-

                                                                                                                         ( 1 ) पृथ्वी की दो-तिहाई जनसंख्या उसके लगभग 14 प्रतिशत भाग पर निवास करती है एक अन्य अनुमान के अनुसार विश्व की लगभग 57 प्रतिशत  जनसंख्या इसके स्थलीय क्षेत्र के 5प्रतिशत भाग पर निवास करती है | 

( 2 ) विश्व का दो तिहाई भाग निर्जन प्राय : हैं 90 प्रतिशत भूभाग पर मात्र 10 प्रतिशत जनसंख्या रहती है 10 प्रतिशत स्थलीय भाग पर कुल जनसंख्या का 90 प्रतिशत संकेंद्रित हैं | 

( 3 ) विश्व की 85प्रतिशत  जनसंख्या उत्तरी गोलार्द  में तथा 15% जनसंख्या दक्षिणी गोलार्द में पाई जाती है | 

( 4 ) विश्व की लगभग तीन चौथाई जनसंख्या एशिया एवं यूरोप महाद्वीप में रहती है केवल एशिया महाद्वीप में ही विश्व की 60% से अधिक जनसंख्या निवास करती है | 

( 5 ) विश्व की जनसंख्या का लगभग 75% भाग महाद्वीपों के किनारों की और बस आए महाद्वीपों के आंतरिक भागों की ओर जनसंख्या का संकेंद्रण घटता जाता है | 

* जनसंख्या घनत्व ( population density ) :-

                                                                                                              किसी प्रदेश  में निवास करने वाले मनुष्यों की संख्या और प्रदेश के क्षेत्रफल के पारंपरिक अनुपात से जनसंख्या का घनत्व मालूम होता है यह घनत्व इस पर देश की उन्नति और भावी विकास के अनुमान लगाने में मुख्य आधार होता है प्रत्येक प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि क्षेत्रफल मिट्टियां खनिज पदार्थ जलीय संसाधन वन संपदा आदि की मात्रा सीमित होती है उन संसाधनों को कितने मनुष्य प्रयोग करते हैं अर्थात कितनी जनसंख्या अपने जीवन निर्वाह के लिए उन संसाधनों पर आधारित है यह तथ्य उस जनसंख्या के रहन-सहन के स्तर को तथा उसके आर्थिक और सांस्कृतिक विकास की सीमा को निर्धारित करता है इसलिए प्रत्येक देश की आर्थिक उन्नति तथा सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति की योजना बनाने के लिए उस प्रदेश की जनसंख्या की सघनता की भावना बहुत जरूरी है | 

* जनसंख्या घनत्व के प्रकार :-

                                                                       जनसंख्या के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए घनत्व को मुख्य आधार माना जाता है जनसंख्या घनत्व भी कई प्रकार के हो सकते हैं प्रत्येक पहलू अपनी तरह से जनसंख्या के विश्लेषण में सहयोगी होते हैं | 

( 1 ) गणितीय घनत्व :-

                                                    जिसमें मानव स्थल अनुपात का विचार किया जाता है इसे निम्न सूत्र से ज्ञात किया जाता है |     जनसंख्या ÷ कुल क्षेत्रफल | 

( 2 ) आर्थिक घनत्व :-

                                                   जिसमें उस पर देश के संसाधनों की उत्पादन क्षमता और उस प्रदेश में निवास करने वाले मनुष्यों की संख्या का विचार किया जाता है इसे ज्ञात करने का सूत्र इस प्रकार है |      जनसंख्या ÷ संसाधन | 

( 3 ) कार्यिक घनत्व :-

                                              कार्यिक घनत्व या कृषि क्षेत्रीय घनत्व जिसमें उस प्रदेश की खेती की जाने वाली भूमि और निवास करने वाले मनुष्यों की समस्त जनसंख्या का विचार किया जाता है |             जनसंख्या ÷ कृषि भूमि क्षेत्र | 

( 4 ) कृषि घनत्व :-

                                              जिसमें कृषि की जाने वाली भूमि के क्षेत्रफल और उन में निवास करने वाली कृषक जनता का विचार किया जाता है यह बात ध्यान देने किए कि इसमें प्रदेश के समस्त जनसंख्या का नहीं वरन केवल कृषि में लगी हुई जनसंख्या का उपयोग किया जाता है |     कृषक जनसंख्या ÷ कृषि भूमि क्षेत्रफल | 

( 5 ) पोषण घनत्व :-

                                              जिसमें खेती की भोजय  फसलों के क्षेत्रफल का और उस प्रदेश के समस्त जनसंख्या का विचार किया जाता है|         जनसंख्या ÷ भोज्य फसलों का क्षेत्रफल | 


* विश्व में जनसंख्या के घनत्व का वितरण :-

                                                                                                        विश्व में जनसंख्या के घनत्व का वितरण भी जनसंख्या के वितरण के अनुरूप ही यह सम्मान एवं उत्तम प्रकृति का एक विषय में जिन स्थानों पर अधिक जनसंख्या का बसावे वहां जनघनत्व स्वाभाविक रूप से अधिक पाया जाता है विश्व स्तर पर जनसंख्या घनत्व में भारी विषमता  पाई जाती है | 

( 1 ) अत्यधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र | 

( 2 ) अधिक जनघनत्व वाले क्षेत्र | 

( 3 ) सामान्य जन घनत्व वाले क्षेत्र | 

( 4 ) कम जनघनत्व वाले क्षेत्र | 

( 5 ) प्राय: जनविहीन क्षेत्र | 

* जनसंख्या वृद्धि :-

                                                इसी भौगोलिक क्षेत्र की जनसंख्या के आकार में एक निश्चित समय में होने वाले परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि का जाता है वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर मुख्यतः जनसंख्या वृद्धि दृष्टिगत होती है जिसके कारण जनसंख्या परिवर्तन है जनसंख्या वृद्धि का पर्याय  माना जाने लगा है | जनसंख्या वृद्धि को कुल संख्या अथवा प्रतिशत दोनों के द्वारा व्यक्त  किया जा सकता है | 

* जनसंख्या वृद्धि के कारण :-

                                                                 ( 1 ) मतदान में गिरावट विषय में जनसंख्या वृद्धि का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण मृत्यु दर पर नियंत्रण है विगत 50 वर्षों में वैज्ञानिक उपलब्धियों तथा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार के कारण रोगों तथा महामारियो पर सफलतापूर्वक नियंत्रण से मृत्यु दर में भारी गिरावट आई है | 

( 2 ) खाद्य पदार्थों की निश्चित आपूर्ति विषय में खाद्यान्नों तथा अन्य खाद्य पदार्थों की निश्चित एवं नियमित आपूर्ति से जनसंख्या की वृद्धि दर प्रभावित हुई है | 

( 3 ) औद्योगिक विकास :औद्योगिक क्रांति के कारण खनन उर्जा उत्पादन उद्योग परिवहन  व्यापार  तकनीकी आदि सभी क्षेत्रों का बहुमुखी विकास हुआ है | 

( 4 ) शांति और सुरक्षा : शांति और सुरक्षा की स्थापना से विषय में सामान्य प्रगति का विस्तार हुआ तथा जनसंख्या में वृद्धि होती रही है | 

( 5 ) प्रवास : मृत्यु दर की तुलना में उच्च जन्म दर के कारण जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी तथा यूरोपीय निवासियों ने बड़े पैमाने पर उतरी अमेरिका दक्षिण अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया की ओर प्रवास आरंभ किया | 

* जनसंख्या घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक :-

                                                                                                                     विश्व में जनसंख्या के वितरण एवं घनत्व को समझने के पश्चात यह ध्यान में आता है कि कुछ ऐसे कारक है जो मानव के बसाव  को नियंत्रित करते हैं जनसंख्या की उपलब्धता और उसके जमाव को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों का विवरण इस प्रकार है | 

( 1 ) भौतिक कारक :-

                                          ( 1 ) स्थिति :-

                                                                                                  जनसंख्या वितरण पर विश्व के विभिन्न क्षेत्र की स्थिति का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है विश्व की अधिकांश जनसंख्या शीतोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में निवास करती है लोग समतल मैदानों और मंद ढालों पर बसने को वरीयता देते हैं | 

( 2 ) जल की उपलब्धता :-

                                                         लोग उन क्षेत्रों में बसना चाहते हैं जहां जल आसानी से उपलब्ध होता है यही कारण है कि विश्व की महान नदी घाटियों विश्व के सबसे सघन बसे हुए क्षेत्र हैं | 

( 3 ) जलवायु :-

                                       अति उष्ण  अथवा ठंडे मरुस्थल ओं की विषम जलवायु मानव बताओ के लिए यह सुविधाजनक होती है अधिक वर्षा अथवा विषम जलवायु क्षेत्रों में कम जनसंख्या पाई जाती है | 

( 2 ): आर्थिक कारक :-

                                                        ( 1 ) खनिज | 
                                                        ( 2 ) नगरीकरण | 
                                                        ( 3 ) औद्योगिकरण| 
                                                        ( 4 ) सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक | 
                                                          

                                

   


                

Tuesday, 3 December 2019

वैश्वीकरण का अर्थ, तथा वैश्वीकरण के कारण, परिणाम


* वैश्वीकरण का अर्थ :-

                                                     वैश्वीकरण का अर्थ है अंतरराष्ट्रीय एकीकरण विश्व व्यापार का खुलना उन्नत संचार साधनों का विकास वित्तीय बाजारों का अंतरराष्ट्रीय कारण बहु राष्ट्रीय कंपनी का महत्व बढ़ाना जनसंख्या का देशांतर गमन व्यक्तियों,  वस्तुओं,  पूंजी, आंकड़ों,  में विचारों की गतिशीलता का बढ़ना | यह ऐसी प्रक्रिया है जिनमें वित्तीय पूर्ण दुनिया को एकल समाज में एकीकृत किया है हालांकि वैश्वीकरण बहुत चर्चित व विवादित विचारधारा है परंतु इस बात पर आम सहमति है कि वैश्वीकरण के दौरान में लोगों पूंजी माल और विचारों के अंतरराष्ट्रीय प्रवाह में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है | साथ ही इसका सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा है कि राजनैतिक शक्ति का अधोगामी संचार हुआ है वैश्वीकरण के युग्मित  बलों का जन्म इस बात की पुष्टि करता है | 

* वैश्वीकरण के कारण ( causes of globalisation ) :-

                                                                                                                                  वैश्वीकरण के लिए कोई ए कारक उत्तरदाई नहीं है फिर भी प्रौद्योगिकी कि अपने आप में महत्वपूर्ण कारण साबित हुई है टेलीग्राफ टेलीफोन और माइक्रोचिप इंटरनेट के नवीन अविष्कारों ने पूरी दुनिया में संचार क्रांति का सूत्रपात किया उन्नत प्रौद्योगिकी के कारण विचार पूंजी वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में  आवाजाही बढ़  गई विश्व के एक हिस्से में घटने वाली घटना का प्रभाव पूरी दुनिया पर बढ़ने लगा | 


* वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव :-

                                                                              
                                                                                  वैश्वीकरण का सर्वाधिक प्रभाव राष्ट्रीय राज्यों का पर पड़ा वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिक बदलाव एकीकृत अर्थव्यवस्था अन्य प्रभाव कारी प्रवृत्तियों के कारण संपूर्ण विश्व का राजनीतिक पर्यावरण  वैश्वीकरण  के प्रभाव में आ गया राष्ट्रीय राज्य की अवधारणा में परिवर्तन आने लगा विकसित देशों में कल्याणकारी राज्य की धारणा पुरानी पड़ने लगी और उसकी जगह न्यूनतम अहस्तक्षेपकारी राज्य ने ले ली है अब राज्य लोक कल्याणकारी राज्य के साथ आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक तत्व बन गया यह पूरी दुनिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियां स्थापित हो चुकी है इससे सरकारों की स्वायत्ता  प्रभावित हुई है विश्व राजनीति में आज भी राष्ट्रीय राज्य की महत्ता बनी हुई है राज्य पर वैश्वीकरण के कुछ और प्रभाव भी हुए जो राज्य तकनीकी क्षेत्र में अग्रणी है उनके नागरिकों का जीवन स्तर उल्लेखनीय रूप से बड़ा है सूचनाओं के तीव्र आदान-प्रदान से नागरिकों का जीवन से दुआएं वैश्वीकरण का राजनीतिक परिदृश्य पर प्रभाव तो है परंतु समाज वैज्ञानिक इसके राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर पड़े प्रभाव की प्रकृति और स्तर को लेकर एकमत नहीं है | 

* वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव :-

                                                                         वैश्वीकरण का सर्वाधिक प्रभाव विश्व अर्थव्यवस्था पर पड़ा है पश्चिमी पूंजीवादी देश एशिया और अफ्रीका में अपने उत्पाद को के लिए बाजार ढूंढने में प्रयत्न रत  है | प्रत्यय देश ने अपना बाजार विदेशी वस्तुओं की बिक्री के लिए खोल दिया है यह संस्थाएं हैं शक्तिशाली पूंजीवादी ताकतों के प्रभाव के क्षेत्र में कार्य कर रही है यद्यपि पिछड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भी काफी लाभ हुआ है लोगों के जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ है चीन भारत और ब्राजील जैसी प्रगतिशील अर्थव्यवस्थाओं को पिछली अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक लाभ हुआ है पूर्व में विभिन्न देश आयात पर प्रतिबंध लगाते थे परंतु वैश्वीकरण के दौरान में प्रतिबंध शिथिल हो गए अब धनी देश के निवेश करता अपना विनिवेश अन्य देशों में कर सकते हैं भारत ब्राजील जैसे विकासशील देश  विदेशी निवेश के विशेष आकर्षण है | इंटरनेट और कंप्यूटर से जुड़ी सेवाओं जैसे बैंकिंग ऑनलाइन शॉपिंग में व्यापारिक लेन-देन तो बहुत सरल हो गई है लेकिन जितना तेज वस्तुओं और पूंजी का प्रवाह बढ़ा  है वैश्वीकरण का अलग-अलग देशों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ा कुछ देशों की अर्थव्यवस्था तेज गति से प्रगति कर रही है वहीं कुछ देश आर्थिक रूप से पिछड़े गए हैं वैश्वीकरण के दौरे में सामाजिक न्याय की स्थापना अभी भी संकट में है सरकार का संरक्षण जाने के कारण समाज के कमजोर तबकों  को लाभ की बजाय नुकसान उठाना पड़ रहा है | 

* वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव :-

                                                                               वैश्वीकरण ने न केवल राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र को प्रभावित किया है अपितु इसका लोगों के सांस्कृतिक जीवन पर भी काफी प्रभाव पड़ा है इसका विश्व के देशों की स्थानीय संस्कृतियों पर मिश्रित प्रभाव पड़ा है इस प्रक्रिया से विश्व की परंपरागत संस्कृतियों को सबसे अधिक खतरा पहुंचने की आकांक्षा है वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता को जन्म देता है जिसका विकसित देश संस्कृतियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है सांस्कृतिक समरूपता के नाम पर पश्चिमी  सांस्कृतिक मूल्यों को अन्य आंचलिक संस्कृतियों पर लादा जा रहा है इसे खान-पान रहन-सहन व जीवनशैली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है वैश्वीकरण का सकारात्मक पक्ष यह भी है कि प्रौघोगिकी  के विकास व प्रवाह से एक नवीन विश्व संस्कृति के उदय की प्रबल संभावनाएं बन गई है | 


  *सांस्कृतिक प्रवाह  बढ़ाने वाले माध्यम:-

  
( 1 ) इंटरनेट व ईमेल से सूचनाओं का आदान-प्रदान | 

( 2 ) इलेक्ट्रॉनिक क्रांति ने सूचनाओं को जनतांत्रिक बना दिया है | 

( 3 ) विचारों एवं धारणाओं का आदान-प्रदान आसान बनाना | 

( 4 ) सूचना तकनीकी इसके विस्तार से डिजिटल क्रांति आई है वही विषम डिजिटल दरार भी उत्पन्न हुई है | 

( 5 ) अविकसित अर्थविकसित वे कुछ विकासशील देशों में सूचना सेवाओं पर राज्य का नियंत्रण है | 

* भारत पर वैश्वीकरण के प्रभाव :-

                                                                  वैश्वीकरण के लिए का भारत में आगाज पिछली शताब्दी के अंत में वह मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास करने वाला भारत देश भी इस धारा से जुड़ गया भारत में वैश्वीकरण का सूत्रपात जुलाई 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने किया था वह अमेरिकामुख वैश्वीकरण के लिए कई बार आलोचना के केंद्र रहे  1991 में नई आर्थिक नीति अपनाकर भारत वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया से जुड़ गया 1992-93 से रुपए को पूर्ण परिवर्तनीय बनाया गया | 

Sunday, 1 December 2019

उदारवाद का अर्थ एवं प्रकृति तथा उदारवाद का उदय एवं विकास, उदारवाद के दो रूप, विशेषताएं


  *उदारवाद का अर्थ :-

                                                   उदारवाद अंग्रेजी के लिब्रेलिजम्म शब्द का हिंदी रूपांतरण है | इसकी व्युत्पत्ति लेटिन भाषा के लिबर शब्द से हुई है जिसका अर्थ है स्वतंत्र | यह ऐसी विचारधारा का नाम है जिसका स्वरूप एवं कार्यक्षेत्र विकास के प्रथम चरण से लेकर वर्तमान तक बदलता रहा है | कभी यह पूंजी पतियों के पक्ष में प्रत्यक्ष रूप से सामने आता था तो बाद में यह दबी जुबान में पूंजीपतियों के हित की बात भी करता बाद में माकर्सवाद के डर से पूंजीपतियों को बचाने के लिए यह गरीबों के हितों की बात करने लगा उदारवाद लोक कल्याण की अवधारणा का प्रबल समर्थक बन गया | 1990 के दशक में जब सोवियत संघ की साम्यवादी व्यवस्था ध्वस्त होने के बाद वे पुणे अपने परंपरागत स्वरूप की तरफ बढ़ चला है पुणे जागरण तथा धर्म सुधार आंदोलनों ने इसे जन्म दिया औद्योगिकीकरण ने इस आधार प्रदान किया बढ़ते पूंजीवाद ने इस स्वतंत्रता  के निकट ला खड़ा किया | व्यक्ति के प्रति इस विचारधारा की आस्था ने राज्य को सीमित रूप दिया सामान्यतया उदारवाद एक विचारधारा से अधिक है यह सोचने का एक तरीका यह संसार को देखने की एक दृष्टि है तथा राजनीति को उदारवाद की ओर बनाए रखने का यह प्रयास है | 

 * उदारवाद की प्रकृति ( nature of liberalism  ) :-

                                                                                                                         उदारवाद के प्रकृति उसके उदय व  विकास के चरणों से जुड़ी हुई है | 1688 की गौरवपूर्ण अंग्रेजी क्रांति के शासकों के देवी सिद्धांतों का तिरस्कार कर राज्य को एक मानवीय संस्था बताने का प्रयत्न किया था उदारवाद व्यक्ति से जुड़ी विचारधारा है 1789 की फ्रांसीसी क्रांति ने पश्चिमी समाज को स्वतंत्रता, समानता व  बंधुत्व के विचार देकर मध्ययुगीन निरंकुश  शासन को त्याग दिया था | उदारवाद स्वतंत्रता से जुड़ी विचारधारा है अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम तथा बाद  के अमेरिकी संविधान में व्यक्ति के अधिकारों की आवाज उठाई थी | उदारवाद व्यक्तियों के अधिकारों से जुड़ी विचारधाराहै | उदारवाद निरंकुश  के विरुद्ध संविधानवाद पर बल देता है | उदारवाद सीमित कार्यों को करने वाले सीमित शक्तियों वाले राज्य की बात करता है जॉन लॉक  की धारणा थी कि राजनीतिक कार्य सीमित होते हैं अत : राजनीतिक शक्ति भी सीमित होनी चाहिए | 

* उदारवाद का उदय एवं विकास ( origin evolution of liberalism ) :-

                                                                                                                                                            लॉक, बेंथम व एडम की रचनाओं में उदारवाद की झलक मिलती है तब इसका रूप नकारात्मक था और इस व्यक्तिवाद  शास्त्रीय उदारवाद के रूप मैं जाना जाता था | 19 वीं शताब्दी में जॉन स्टुअर्ट मिल ने इसे सकारात्मक रूप प्रदान किया तब राज्य को आवश्यक बुराई समझने की बजाय एक सकारात्मक अच्छाई समझा जाने लगा तथा अनियंत्रित वैयकितक स्वतंत्रता की व्यवस्था के लिए खतरा समझते हुए व्यक्ति की गतिविधियों पर उचित प्रतिबंध लगाए जाने लगे | उदारवाद व्यक्ति प्रेमी विचारधारा ए जो व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकारों पर बल देती है यह राज्य को साधन और व्यक्ति को साध्य मानता है यह रूढ़िवादिता व परंपरा बाद के स्थान पर सभी क्षेत्रों में सुधारों में उदारीकरण का पक्ष लेता है संविधानवाद विधि का शासन विकेंद्रीकरण, स्वतंत्र  चुनाव में न्याय व्यवस्था लोकतांत्रिक प्रणाली अधिकारों स्वतंत्रताओ  व न्याय  की व्यवस्था आदि उदारवादी विचारधारा के कुछ अन्य लक्षण है | 

* उदारवाद के दो रूप ( forms of liberalism ) :-


( 1 ) परंपरागत या शास्त्रीय उदारवाद | 

( 2 ) आधुनिक उदारवाद | 

( 1 ) परंपरागत या शास्त्रीय  उदारवाद ( traditional or classical liberalism ) :-

                                      परंपरागत उदारवादी सिद्धांत धर्म को व्यक्ति का आंतरिक और निजी मामला मानता है यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल देता है सीमित राज्य के अस्तित्व को स्वीकार कर उसका समर्थन करता है सामाजिक प्रतिमान में एकता की बात करता है कालांतर में उधारवाद एक  क्रांतिकारी विचारधारा ने होकर यह वर्ग विशेष की विचारधारा बन जाती है यह रूप निजी संपत्ति का समर्थन करता है इसके कारण मानवीय जीवन में समानता का आगमन शुरू हो जाता है उदारवाद अब पूंजीवाद का पर्याप्त बन जाता है इसी उदारवाद समर्थित पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध में वैज्ञानिक माकर्स वादी क्रांति की शुरुआत होती है मानवीय जीवन में समानता को मिटाकर समानता लाने के लिए संघर्ष की बात मार्शल करता है जिसके फलस्वरूप उदारवाद अपना स्वरूप बदल देता है | 

( 2 ) आधुनिक उदारवाद :-

                                                             यह सिद्धांत लोक कल्याणकारी राज्य का समर्थन करता है निजी संपत्ति पर अंकुश लगाने व पूंजी पतियों पर कर की वकालत की जाती है | 

* नकारात्मक उदारवाद की विशेषताएं ( characteristics of negative liberalism ) :-

                  ( 1 ) व्यक्तिवाद पर अत्यधिक बल | 

                  ( 2 ) मानव को मध्य यूके की धार्मिक तथा सांस्कृतिक जंजीरों से मुक्ति पर बल | 

                 ( 3 ) मानव व्यक्तित्व के असीम मूल्य तथा व्यक्तियों की आध्यात्मिक समानता में विश्वास | 

                ( 4 ) व्यक्ति की स्वतंत्र  इच्छा में विश्वास | 

                ( 5 ) मानव की विवेक शीलता और अच्छाई मानव की मानवता के लिए कुछ प्राकृतिक अदेय  अधिकारों जीवन स्वतंत्रता  तथा संपत्ति में विश्वास पर बल | 

* उदारवाद व लॉक  का दर्शन :-

                 ( 1 ) राज्य की उत्पत्ति व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए सामाजिक समझौते के द्वारा हुई | 

                 ( 2 ) राज्य एवं व्यक्ति दोनों के संबंध आपसी समझौते पर आधारित हैं जब कभी भी राज्य समझौते की आवश्यक शर्तों को करेगा तो व्यक्ति को राज्य के विरुद्ध विद्रोह करना व्यक्ति का अधिकार नहीं बल्कि उत्तरदायित्व हैं | 

                 ( 3 ) कानूनों का आधार विवेक है ने की आदेश | 

                ( 4 ) वही सरकार सर्वश्रेष्ठ है जो कम से कम शासन करें | 

                ( 5 ) राज्य एक आवश्यक बुराई है | 

               ( 6 ) मानव को राजनीतिक  आर्थिक, सामाजिक,  धार्मिक, बौद्धिक सभी क्षेत्रों में स्वतंत्रता  प्राप्त हो | 

 सामाजिक आधार पर उदारवाद समाज को एक कृत्रिम संस्था मानता है जिसका उद्देश्य व्यक्ति के हितों को पूरा करना था समाज का उद्देश्य व्यक्तिगत स्वार्थ की सिद्धि था व्यक्ति के हित के द्वारा समाज के हित को संभव बनाया गया आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद मुक्त व्यापार तथा समझौते पर आधारित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की बात करता है इसे नकारात्मक उदारवाद इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह स्वरूप राज्य में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में किसी प्रकार के हस्तक्षेप तथा नियंत्रण पर प्रतिबंध लगाता है | 

* नकारात्मक उदारवाद की आलोचना :-

     ( 1 ) सामाजिक क्षेत्र में उदारवाद का अत्यधिक खुलापन नैतिकता के विरुद्ध है | 

     ( 2 ) सीमित राज्य जनकल्याण विरोधी अवधारणा है | 

     ( 3 ) उदारवाद का आर्थिक समाज बाजारु  समाज है जो केवल बुर्जुआ  वर्गों के हितों का ध्यान रखता है सामान्य व्यक्ति के हितों की अनदेखी करता है | 

* आधुनिक व समसामयिक उदारवाद :-

  ( 1 ) यह कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल देता है | 

 ( 2 ) सभी व्यक्तियों को समान अवसर में अधिकार प्रदान करने पर बल | 

 ( 3 ) व्यक्तियों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर बल देना | 
 
 ( 4 ) जनता का विकास तथा वैज्ञानिक प्रगति की धारणा में विश्वास | 

 ( 5 ) राज्य सामाजिक हित की पूर्ति का सकारात्मक साधन | 

 ( 6 ) लोकतांत्रिक समाज की राजनीतिक संस्कृति पर बल देता है | 

 ( 7 ) उदारवाद का यह स्वरूप क्रांतिकारी तरीकों के विपरीत सुधारवादी शांतिपूर्ण और कर्मठ सामाजिक परिवर्तन में विश्वास रखता है | 

 ( 8 ) यह सामूहिक हित की बात करता है | 

 ( 9 )यह पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को लचीला बनाने वे नियंत्रित अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों पर बल देता है | 

 ( 10 ) लोकतंत्र की समस्याओं पर नए ढंग से विचार करने पर बल देता है | 
                    

Tuesday, 19 November 2019

स्वतंत्रता का अर्थ एवं परिभाषा, स्वतंत्रता के विविध रूप तथा स्वतंत्रता के मार्ग की प्रमुख बाधाएं


 *स्वतंत्रता का अर्थ :-

                                               जिस शब्द या आंदोलन के इर्द-गिर्द मानव सभ्यता व्याकुल है आखिर वह है क्या?  केवल बंधनों का अभाव ही स्वतंत्रता है तो मनुष्य पर इस पर संघर्षों से ही नष्ट हो जाएगा  प्रबल या सक्षम ही स्वतंत्र होंगे | स्वतंत्रता व्यक्ति की अपनी इच्छा अनुसार कार्य करने की शक्ति का नाम है इस दौरान दूसरे व्यक्तियों की इसी प्रकार की स्वतंत्रता मैं कोई बाधा  नहीं पहुंचे इस प्रकार की स्वतंत्रता के दो  विचार हुए -एक  बंधनों का अभाव दूसरा उपयुक्त बंधनों का होना | 

* स्वतंत्रता का नकारात्मक अर्थ :-

                                                                               यह वह स्थिति है जिसमें कोई बंधन नहीं होता है  | व्यक्ति को मनमानी करने की छूट हो समझौता वादी विचारक होम्स के अनुसार `स्वतंत्रता का अभिप्राय निरोध व नियंत्रण का सर्वथा अभाव है रूसो भी इसी अवधारणा से  प्रभावित था | व्यक्तिवादी विचारक भी स्वतंत्रता इसी स्वरूप का समर्थन करते हैं | 
( 1 ) प्रतिबंधों का अभाव ही स्वतंत्रता है | 
( 2 ) राज्य का कार्यक्षेत्र बढ़ने से व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित होती है | 
( 3 ) कम से कम शासन करने वाली सरकार अच्छी सरकार है | 
( 4 ) मानव विकास के लिए खुली प्रतियोगिता का सिद्धांत हितकर है | 

* स्वतंत्रता का सकारात्मक अर्थ:-

                                                                          मनुष्य अपने लिए उन परिस्थितियों का निर्माण करें जो उसके विकास के साथ-साथ साथी नागरिकों के लिए भी ऐसी परिस्थितियां गढ़  सकें | स्पेंसर के अनुसार - प्रत्येक व्यक्ति वे सब कुछ करने को स्वतंत्र है जिसकी वे इच्छा करता है यदि वे इस दौरान अन्य व्यक्ति की सम्मान स्वतंत्रता का हनन नहीं करता हो | 
( 1 ) समाज एवं व्यक्ति के हित परस्पर निर्भर है | 
( 2 ) स्वतंत्रता का सही स्वरूप राज्य के  कानून पालन में है | 
( 3 ) राजनैतिक एवं नागरिक स्वतंत्रता का मूल्य आर्थिक स्वतंत्रता के बिना निरर्थक है  | 

* स्वतंत्रता के विविध रूप :-

( 1 ) प्राकृतिक स्वतंत्रता ( natural liberty ) :-

                                                                                                            मनुष्य को स्वतंत्रता का यह रूप मनुष्य या किसी मानवीय  संस्था से प्राप्त नहीं होता है बल्कि यह प्रकृति प्रदत हैं यह प्रकृति द्वारा मनुष्य के जन्म के साथ ही उसके व्यक्तित्व में निहित है व्यक्ति स्वयं  भी इसका हस्तांतरण नहीं कर सकता है यह स्वतंत्रता राज्य के अस्तित्व में आने से पूर्व की अवस्था है इनका मानना है कि राज्य की स्थापना के साथ ही यह स्वतंत्रता धीरे-धीरे विलुप्त हो जाती है रूसो ने इसलिए तो कहा है - मनुष्य स्वतंत्र जन्म लेता है किंतु वह सर्वत्र बंधनों में जकड़ा रहता है समझौता वादी विचारक इस स्वतंत्रता के समर्थक थे | 

( 2 ) निजी /व्यक्तिगत स्वतंत्रता ( personal liberty ) :-

                                                                                                                              मनुष्य को अपने निजी जीवन के कार्यों में स्वतंत्रता होनी चाहिए उसके व्यक्तिगत कार्यों पर केवल समाज हित में ही बंधन लगाए जा सकते हैं लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों की निजी स्वतंत्रता का बहुत महत्व स्वतंत्रता के रूप हैं उन्हें अपनी पसंद विचार अभिव्यक्ति और मूल्यों के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता होती है वेशभूषा खान-पान रहन -सहन  परिवार धर्म आदि क्षेत्रों में क्षेत्रों में व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए | 

( 3 ) नागरिक स्वतंत्रता ( civil liberty ) :-

                                                                                            यह नागरिक होने के कारण मनुष्य को उस देश में मिलने वाली वे स्वतंत्रताए जिन्हें समाज स्वीकार करता है और राज्य मान्यता प्रदान कर सिलेक्शन प्रदान करता है हमारे देश में यह स्वतंत्रता मूल अधिकारों के रूप में संविधान में समाहित की गई है | 

( 4 ) राजनीतिक स्वतंत्रता ( political liberty ) :-

                                                                                                             राज्य के कार्यों में राजनैतिक व्यवस्था में हिस्सेदारी का नाम राजनीतिक स्वतंत्रता है यह वह स्वतंत्रता  है जिसमें भारतीय नागरिक को मतदान करने चुनाव में हिस्सा लेने एवं सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति पाने का अधिकार हो | 

( 5 ) आर्थिक स्वतंत्रता ( economic liberty ) :-

                                                                                                             आर्थिक स्वतंत्रता  से अभिप्राय है कि व्यक्ति का आर्थिक स्तर ऐसा होना चाहिए जिसमें वह स्वाभिमान के साथ बिना वित्तीय चुनौतियों का सामना किए स्वयं  व परिवार का जीवन निर्वाह कर सकें यह आर्थिक सुरक्षा भी है इसमें आर्थिक आधार पर विषमताओं  को कम करने के प्रयास भी शामिल है जिसमें शोषण का दायरा न्यूनतम हो व्यक्ति आर्थिक गुलामी की अवस्था में नहीं हो सभी को आर्थिक उन्नति के समान अवसर प्राप्त हो 

( 6 ) धार्मिक स्वतंत्रता ( religious liberty ) :-

                                                                                                            इसका संबंध अंतः करण से यह व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने आस्था वे आचरण की छूट देता है इस स्वतंत्रता मे धार में के संस्कार रीति रिवाज पूजा के तरीके संस्थाओं के गठन धर्म के प्रचार की आजादी है | 

( 7 ) नैतिक स्वतंत्रता ( moral liberty ) :-

                                                                                              इसका सामान्य व्यक्ति के चरित्र नैतिकता एवं औचित्य पूर्ण व्यवहार से अधिकरण एवं नैतिक गुणों से प्रभावित होकर जो व्यक्ति कार्य करता है तो वह नैतिक स्वतंत्रता है  सवार्थ लोग क्रोध घृणा जेसी चारित्रिक  दुर्बललताओं के वंशीभूत होकर कार्य करने वाला व्यक्ति नैतिक परतंत्रता की श्रेणी में आता है | 

* स्वतंत्रता के लिए आवश्यक शर्तें :-

( 1 ) व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति निरंतर जागरूकता | 

( 2 ) समाज में लोकतांत्रिक भावनाओं का पनपना | 

( 3 ) साथी  नागरिकों को विशेषाधिकार नहीं होना | 

( 4 ) आर्थिक दृष्टि से समतामूलक समाज | 

( 5 ) समाज में शांति व सुरक्षा का वातावरण | 

( 6 ) संविधानवाद | 

( 7 ) स्वतंत्र - न्यायपालिका | 

( 8 ) निष्पक्ष जनमत | 

* स्वतंत्रता के मार्ग की प्रमुख बाधाएं :-

( 1 ) गरीबी तथा संसाधनों का अभाव | 

( 2 ) न्यायपालिका के कार्यों में कार्यपालिका का हस्तक्षेप |

( 3 )राष्ट्र विरोधी तत्व अथवा आतंकवाद | 

( 4 ) अराजकता  का वातावरण | 

( 5 )  अशिक्षा | 

( 6 ) कार्यपालिका का स्वेच्छाचारी आचरण | 

( 7 ) अपनी स्वतंत्रता  के प्रति जागरूकता का अभाव | 

( 8 ) सविधान वे कानूनों के प्रति सम्मान का अभाव | 

                                                                   

                                              

Sunday, 17 November 2019

द्वितीयक व्यवसाय एवं उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक, विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण


* विनिर्माण उद्योग :-

                                             विनिर्माण उद्योग का अर्थ प्राथमिक उत्पादन से प्राप्त कच्ची सामग्री को शारीरिक अथवा यांत्रिक शक्ति द्वारा परिचालित औजारों की सहायता से पूर्व निर्धारित एवं नियंत्रित प्रक्रिया द्वारा किसी इच्छित रूप आकार या विशेष गुणधर्म वाली वस्तुओं में बदलना है विनिर्माण उद्योग के नाम से अक्सर यह भ्रांति हो जाती है कि यह केवल वृहद  स्तर का उद्योग हैं परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है इस उद्योग को किसी भी स्तर पर आरंभ किया जा सकता है इस अर्थ में अति साधारण वस्तुओं यात्रा मिट्टी से मिट्टी के बर्तन में खिलौने बनाने से लेकर भारी से भारी निर्मित वस्तुएं जैसे बड़ी मशीनें जलयान भारी रसायन  बनाने संबंधी अधिक सभी उद्योग सम्मिलित हैं निर्माण उद्योग में प्रयोग किए जाने वाले पदार्थ प्राकृतिक दशा में कच्चा माल कहलाते हैं जैसे धातु अयस्क लकड़ी कपास आदि चिड़ी हुई लकड़ी जिससे कागदी लुगदी बनाई जाती है कपास का धागा जैसे वस्त्र बनना चाहता है किसी भी देश में निर्माण उद्योग के विकास के साथ ही उसकी राष्ट्रीय आय बढ़ती है वह देश विकसित होता जाता है | 

* उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक :-

                                                                                                                                     उद्योगों की स्थापना केवल उन्ही  स्थानों पर हो सकती है जहां उनके विकास के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएं उपलब्ध हो उद्योगों की अवस्थिति व  विकास को प्रभावित करने वाले कारक को आरेख 9.1 द्वारा दर्शाया गया है | 

( 1 ) कच्चा माल:-

                                             किसी भी उद्योग के विकास के लिए कच्चा माल सुगमतापूर्वक, पर्याप्त में सस्ती दर पर प्राप्त होना चाहिए | अत : अधिकतर उद्योगों खानों , वनों, कृषि क्षेत्र समुंद्र तटीय क्षेत्रों के निकट ही अवस्थित है जिन उद्योगों का कच्चा माल भारी सस्ता व  जिनमें निर्माण के दौरान वजन कम होता है उनमें इसी तरह की प्रवृत्ति पाई जाती है इंसाने होने पर उनका परिवार भी बढ़ जाएगा अधिकांश लोहा इस्पात उद्योग कोयले की खानों के पास लोहे की खानों के पास अथवा कोयला लोहे अयस्क की खानों के बीच किसी अनुकूल स्थान पर स्थापित किया जाता है फल सब्जियां दूध मछलियां जैसे शीघ्र खराब होने वाले कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को कच्चे माल के स्त्रोत के समीप स्थापित किया जाता है | 

( 2 ) शक्ति के साधन :-

                                                      शक्ति के साधन का सुचारू एवं सुगम रूप में मिलना उद्योगों के केंद्रीयकरण एवं विकास के दिया विषय के शक्ति के प्रमुख साधन कोयला पेट्रोलियम जलविद्युत प्राकृतिक गैस और परमाणु ऊर्जा है लोहा इस्पात उद्योग जैसे भारी उद्योग कोयले से शक्ति प्राप्त करते हैं यह कोयले की खानों के समीप स्थापित किए जाते हैं संयुक्त राज्य अमेरिका रूस में यूरोपीय देशों के अधिकार लौह इस्पात केंद्र कोयला खदानों के पास ही स्थित है भारत के प्रमुख लोहा इस्पात केंद्र दामोदर घाटी में झेरिया वे रानीगंज कोयला खदानों के निकट स्थापित है | 

( 3 ) परिवहन व संचार के साधन :-

                                                                                कच्चे माल को कारखानों तक लाने तथा तैयार माल को बाजार तक पहुंचाने के लिए तीव्र सक्षम परिवहन सुविधाएं औद्योगिक विकास के लिए अत्यावश्यक है परिवहन लागत का औद्योगिक इकाई की स्थिति में महत्वपूर्ण स्थान होता है पशिचमी  यूरोप उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भागों में विकसित परिवहन तंत्र के जाल की वजह से सदैव इन क्षेत्रों में उद्योगों का जमाव है एशिया, अफ्रीका, में दक्षिणी अमेरिका, के अधिकांश देशों में परिवहन के साधनों की कमी के कारण औद्योगिक विकास कम हुआ है | 

( 4 ) बाजार :-

                                 उद्योगों की स्थापना में सबसे प्रमुख कारक उसके द्वारा उत्पादित माल के लिए बाजार का उपलब्ध होना जरूरी है बाजार से तात्पर्य उस क्षेत्र में तैयार वस्तुओं की मांग एवं वहां के निवासियों की कैरियर शक्तियां विकसित देशों के लोगों की क्रय शक्ति अधिक होना तथा सघन बसे  होने के कारण वृहद वैशिवक बाजारे दक्षिणी वे दक्षिणी पूर्वी एशिया के सघन बसे प्रदेश भी वृहद बाजार उपलब्ध कराते हैं | 

( 5 ) पूंजी :-

                          किसी भी उद्योग की स्थापना एवं संचालन के लिए पर्याप्त पूंजी होना अनिवार्य कारखाना लगाने मशीनें वह कच्चा माल खरीदने और मजदूरों को वेतन देने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है विकासशील देशों में पूंजी की कमी के कारण आशातीत औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है | 

( 6 ) जलापूर्ति :-

                                    किसी निर्माण उद्योग की अवस्थिति पर जलापूर्ति का भी प्रभाव होता है लोहा इस्पात उद्योग ,वस्त्र उद्योग, रासायनिक उद्योग, कागज उद्योग, चमड़ा उद्योग, आणविक विद्युत ग्रह आदि कुछ ऐसे उद्योग है जो जल के बिना विकसित नहीं हो सकते हैं अत : ऐसे  उद्योग किसी स्थायी जल स्त्रोत के निकट स्थापित किए जाते हैं | 

( 7 ) सरकारी नीतियां :-

                                                     किसी देश की सरकार की नीतियां भी उद्योगों के विकास को प्रभावित करती है यदि किसी देश की सरकार वहां उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर रही है तो विदेशी कंपनियां वहां उद्योग नहीं लगा पाएगी इसके विपरीत यदि टैक्स में छूट अथवा अन्य सुविधाएं दी जाए तो उद्योगों के विकास की संभावना बढ़ जाती है | 

* विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण :-

                                                                          विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण उनके आकार कच्चे माल उत्पाद के स्वामित्व के आधार पर किया जाता है | 

( 1 ) आकार पर आधारित उद्योग :-

                                                                                    किसी उद्योग का आकार उसमें निवेशित  पूंजी कार्यरत श्रमिकों की संख्या एवं उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है आकार के आधार पर उद्योगों को 3 वर्गों में बांटा जा सकता है | 
( 1 ) कुटीर उद्योग | 
('2 ) लघु उद्योग | 
( 3 ) बड़े पैमाने के उद्योग | 

( 1 ) कुटीर उद्योग :-

                                           यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई है इसमें दस्तकार स्थानीय कच्चे माल का उपयोग करते हैं वह कम पूंजी तथा दक्षता से साधारण औजारों के द्वारा परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर घरो  में ही अपने दैनिक जीवन के उपयोग की वस्तुओं का उत्पादन करते हैं | 

( 2 ) लघु उद्योग :-

                                     इन्हें छोटे पैमाने के उद्योग कहते हैं इसमें स्थानीय कच्चे माल का उपयोग होता है इसमें अर्द्ध - कुशल श्रमिकों व शक्ति के साधनों से चलने वाले यंत्रों का प्रयोग किया जाता है यह उद्योग विकासशील देशों की सघन बसी  जनसंख्या को बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराते हैं | 

( 3 ) बड़े पैमाने के उद्योग:-

                                                           बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए विभिन्न प्रकार का कच्चा माल शक्ति के साधन विशाल बाजार, कुशल श्रमिक  उच्च प्रौघोगिकी व आदि पूंजी की आवश्यकता होती है इन उद्योगों का सूत्रपात औद्योगिक क्रांति के बाद हुआ | 

( 2 ) कच्चे माल पर आधारित उद्योग:-

                                                                                    कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को पांच भागों में बांटा जा सकता है | 
( 1 ) कृषि आधारित उद्योग | 
( 2 ) खनिज आधारित उद्योग | 
( 3 ) रसायन आधारित उद्योग | 
( 4 ) वनोत्पादक आधारित उद्योग | 
( 5 )पशु आधारित उद्योग | 

                                                       

                              

  

Friday, 15 November 2019

मानवेन्द्रनाथ रॉय का राजनीतिक चिंतन एवं भारतीय इतिहास की मार्क्सवादी व्याख्या



* मानवेन्द्र नाथ रॉय का परिचय :-

                                                                              मानवेन्द्र नाथ रॉय  ( 1886 - 1954 ) का जन्म एक ऐसे समय में हुआ जब बंगाल में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का बहुत प्रभाव था निश्चित रूप से ऐसे समय में राजनैतिक बोध का होना अपने आप में महत्वपूर्ण है अतः मानवेन्द्र नाथ रॉय अपने विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी बन गए थे अर्थात प्रारंभिक जीवन से ही वामपंथ की तरफ उनका झुकाव हो जाता है क्योंकि रॉय  कट्टर राष्ट्रवादी थे आते राष्ट्रीय मुक्ति की खोज में सन 1915 में वह भारत छोड़कर इंडोनेशिया चले गए वहां से जावा, फिलीपीन, कोरिया, तथा मंचूरिया,  होते हुए वे अमेरिका पहुंचे जहां उग्रवादी नेता लाला लाजपत राय ने उनकी दोस्ती हुई वैचारिक धरातल पर माकर्सवाद के प्रभाव कारण यहां पर एम. एन.  रॉय यह मानने लगे कि राष्ट्रवाद को समाजवाद के साथ छोडकर देखा जाना चाहिए | 

* उपनिवेशीकरण का सिद्वान्त :-

                                                                             कॉमिन्टर्न के छटे कांग्रेस अधिवेशन 1928 में एम. एन. रॉय ने उपनिवेशीकरण  का सिद्धांत प्रतिपादित किया  | उपनिवेशीकरण का अर्थ यह था कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी पूंजी का हास हो चुका है आते उसके लाभ का कुछ अंश भारतीय पूंजीपति वर्ग को प्राप्त होगा इस तरह रॉय साम्राज्यवाद के बदलते हुए स्वभाव का उल्लेख किया | इसलिए उनके लिए आवश्यक हो गया है कि वे उपनिवेशन के पूंजीपति वर्ग के साथ संयुक्त साझेदारी कायम करें अतः एमएन रॉय का था कि आगे चलकर साम्राज्यवाद का मूल्य घट जाएगा और तब विदेशी पूंजीपतियों को बाध्य होकर अपनी शक्ति का परित्याग करना पड़ेगा साथ ही इस सम्मेलन में एक प्रस्ताव यह भी पास किया जिसमें भारतीय जनता को चेतावनी दी गई कि प्रतिक्रियावादी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उनके साथ कभी भी विश्वासघात कर सकती है  | जिन्होंने साम्राज्यवादियों के साथ प्रतिस्पर्धात्मक रूप से जनसामान्य का शोषण करना प्रारंभ कर दिया है जैसे-जैसे यह नया बुर्जुआ वर्ग संगठित होता गया वैसे-वैसे उसने साम्राज्य वादियों से औद्योगिक क्षेत्र में रियासतें मांगना प्रारंभ कर दिया साथ ही दूसरी तरफ साम्राज्य वादियों को जनसामान्य के आक्रोश का भी सामना करना पड़ा फल देते एक क्रांतिकारी स्थिति पैदा हो गई और जैसे-जैसे यह क्रांतिकारी स्थिति बढ़ती गई वैसे-वैसे साम्राज्य वादियो ने रियासतें देना प्रारंभ कर दिया साम्राज्य वादियों ने जिस अनुपात में रियासत यदि उस अनुपात में रियासतें उनके पतन का कारण बन गई आते इस नए बुर्जुआ वर्ग अपने कार्यों का संपादन निजी तौर पर साम्राज्य वादियों के पृथक रूप से करना प्रारंभ कर दिया भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की नई आर्थिक नीति ने वर्ग विभिनता को तीर्थ करते हुए उस वर्ग संघर्ष की ओर बढ़ा दिया तथा यह मान्यता की राष्ट्रीय संग्राम पूंजीवादी विरोधी आधार पर टिका हुआ है अपनी मान्यता खो चुका है अतः रॉय ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि भारत में पुजवा वर्ग क्रांतिकारी वर्ग नहीं है और न ही वे जन सामन्य को क्रांतिकारी स्थिति की ओर अग्रसर कर सकता है | 

* भारतीय इतिहास की मार्क्सवादी व्याख्या :-

                                                                                                          एम. एन. रॉय ने भारतीय इतिहास की मार्क्सवादी  व्याख्या द्वारा भारतीय समाजवादी चिंतन को महत्वपूर्ण योगदान दिया है |  एम. एन. रॉय का मानना था कि सामंतवादी अर्थव्यवस्था का धीरे धीरे श्रय हो रहा है भारत में सामंतवादी व्यवस्था को सबसे पहले धक्का ब्रिटिश अधिपत्य के प्रारंभिक काल 18 वीं शताब्दी के मध्य में लगा जबकि राजनीतिक सत्ता विदेशी वाणिज्यिक बुर्जुआ वर्ग के हाथों में चली गई सामंतवाद के अंतिम अवशेषों को 1857 की क्रांति की असफलता ने चूर चूर कर दिया जिससे कि एम. एन. रॉय ने सामंतवादी व्यवस्था द्वारा अपनी प्रभुता प्राप्ति के अंतिम प्रयास की संख्या दी है भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना एक तरह  से पूंजीवादी उत्पादन साधन तंत्र के रूप में थी  | परंतु वे जानता था कि ब्रिटिश सत्ता को जन सामान्य के सहयोग के बिना नहीं हटाया जा सकता आते उसने जनसामान्य के साथ मिलकर राष्ट्रीय आंदोलन का समर्थन करना शुरू कर दिया इस संदर्भ में रॉय  उदाहरण देते हुए कहते हैं कि सर 1905 में मुस्लिम लीग  की स्थापना पूंजीपति मुसलमानों के हित वृद्धि की सत्ता थी तथा उसने कांग्रेस से विरोधी रुख अपनाया परंतु कालांतर में चलकर लीग ने अपने प्रारंभिक भूमिका को त्याग दिया और 1 वर्ग के रूप में भारतीय बुर्जुआ राष्ट्रीय आंदोलन में अपने को विंध्य कर दिया साथ ही रॉय  ने यह बहुत ही उल्लेखनीय तथ्य स्पष्ट किया कि भारतीय बुर्जुआ वर्ग की भूमिका यूरोप की भांति सामाजिक दृष्टि से प्रगतिकरी नहीं रही | 

* मार्क्सवाद की आलोचना :-

                                                            मानवेन्द्रनाथ रॉय का चिंतन मार्क्स से काफी प्रभावित रॉय  ने चिंतन  निर्धारण में मार्क्सवादी दर्शन की महती भूमिका रही किंतु बेचारी विकास की दृष्टि से उनके चिंतन के दो पक्ष रहे | 
    ( 1 ) प्रतिबंद मार्क्सवादी रूप में | 
 
    ( 2 ) संशोधनवादी के रूप में | 

* नव मानववाद :-

                                   मानववादी तत्व पाश्चत्य दर्शन के अन्य संप्रदायों तथा युगों में देखने को मिलते हैं वे मानव को सर्वोपरि महत्व देते हैं परंतु रॉय के अनुसार मानव को किसी अतिमानव या अप्राकृतिक सत्ता के अधीन करने की मिथ्या  धारणा से नहीं बच पाए हैं उनका मनुष्य एक रहस्य  एक विश्वास का विषय ही बना रहा है रॉय  ने इस मिथ्या धारणा को भंग करने का प्रयास किया उन्होंने मानव को आपने मानवतावाद का केंद्र बनाया जो कि मानव जगत से सभी प्रकार की अतिप्राकृतिक सतता को बहिष्कृत करता है मानव समाज के अपने ज्ञान में हमें अपने आपको केवल मनुष्य तथा स्वतंत्रता की खोज तक ही सीमित रखना चाहिए यह तो उन लोगों के लिए जो कि संसार की वास्तविकता में विश्वास रखते हैं किंतु उस विश्वास के लिए यह मानना आवश्यक नहीं समझते कि संसार की सृष्टि एक दूसरे शब्द द्वारा हुई है जो रेशिया वाद के बिना अस्मिता की धारणा का सामना कर सकते हैं जो अपनी जाति को विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम मानते हैं और जो नैतिकता में विश्वास इसलिए करते हैं कि क्योंकि यह मानव स्वभाव के अनुकूल है इसलिए नहीं कि उसकी व्यवस्था ईश्वर ने की है | 

* आधारभूत मूल्यात्मक तत्व :-

                                                              नवीन मानववाद नैतिक तथा आध्यात्मिक स्वतंत्रता  को स्वीकार करता है या आध्यात्मिक स्वतंत्रता  का अर्थ राजनैतिक आर्थिक तथा सामाजिक शक्तियों से मुक्ति है | यूरोप में पुनर्जागरण के आध्यात्मिक स्वतंत्रता  का संदेश दिया था किंतु पूंजीवादी समाज के बंधनों से उत्पन्न भय  तथा नैतिक अविश्वास ने उसे अभिभूत कर दिया स्वतंत्रता एक वास्तविक सामाजिक धारणा है वह जीवन की एक प्रमुख प्रेरणा  है स्वतंत्रता कोई बरमान से पहले की वस्तु भी नहीं है उससे संसार में करना होता है कुछ आंतरिक नियमन तथा बाह्य बंधनों के बावजूद आत्म स्वतंत्रता  रह सकती है  | 

* अविकल मानववाद के तीन आधारभूत मूल्यत्मक तत्व :-

 ( 1 ) स्वतंत्रता 

 ( 2 ) बुद्धि 

 ( 3 ) नैतिकता  | 


* स्वतंत्रता के तीन मुख्य स्तंभ :-

 (1 ) मानववाद | 

 ( 2 ) व्यक्तिवाद | 

 ( 3 ) बुद्धि वाद | 
 नवीन मानववाद विश्व राज्यवादी है आध्यात्मिक दृष्टि से स्वतंत्र व्यक्तियों का विश्व राज्य राष्ट्रीय राज्यों की सीमाओं से परी बंद नहीं होगा वे राज्य पूंजीवादी फासीवादी समाजवादी साम्यवादी अथवा अन्य किसी प्रकार के क्यों न हो राष्ट्रीय राज्य मानव के बीसवीं शताब्दी के पुनर्जागरण के आघात से धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएंगे | 

Thursday, 14 November 2019

अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का अर्थ एवं प्रकार तथा अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी विकास एवं उनका मूल्यांकन


* अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का अर्थ :-

                                                                             अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के अर्थ को स्पष्ट करने से पूर्व उससे पहले हम उन अंतरराष्ट्रीय संदर्भ को समझना होगा जिन्होंने तत्व संबंधी अंतर्राष्ट्रीय आचरण को प्रभावित किया है अंतरराष्ट्रीय संबंधों में द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात परिवर्तनों का क्रम जारी रहा क्योंकि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जो राज्यों की नई सीमाएं बनी और उनमें जो परिवर्तन घटित हुए उनके प्रति व्यापक नाराजगी थी इनमें से कुछ परिवर्तन एशिया अफ्रीका और लैटिन अमेरिका देशों के अनुरूप नहीं थे इसी के साथ-साथ रंगभेद साम्राज्यवाद और देशों के बीच विभिन्न प्रकार की असमानताओं की स्थितियों अंतरराष्ट्रीय संबंधों में निरंतर बनी हुई इन स्थितियों के प्रति विरोध की मुखरता 1970 के लगभग अधिक परख हुई और अंतरराष्ट्रीय अहिंसा का प्रदर्शन सहसा उग्र हो गया अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को परिभाषित करने का विभिन्न विद्वानों ने प्रयास किया है | 

ब्रेन एम. जेनकिन्स के आतंकवाद को परिभाषित करते हुए:- 

 यह हिंसा के प्रयोग की धमकी है व्यक्ति को हिंसात्मक कार्य है अथवा यह हिंसा का प्रचार है जिसका उद्देश्य भय  के प्रयोग से आतंकित करना है | आतंकवाद को सही संदर्भ में समझने के लिए यह देखना होगा कि इस शब्द का प्रयोग कौन कर रहा है इसके बढ़ते हुए प्रयोग से यह स्पष्ट है कि यह शब्द मात्र विरोधी द्वारा हिंसा के प्रयोग को ही स्पष्ट करता है | 

( 1 ) आतंकवाद में हिंसा के संदर्भ व्यापक रूप से विद्यमान रहते हैं | 

( 2 ) आतंकवाद को फैलाने उसके प्रयोग और प्रचार को मुख्य उद्देश्य माना गया है | 

( 3 ) आतंकवाद शब्द का प्रयोग कौन कर रहा है इस पर विशेष आग्रह किया गया है क्योंकि सामान्य रूप से विरोधी द्वारा हिंसा के प्रयोग  को आतंकवाद के रूप में लिया जाता है | 

जी.  श्वर्जनबगेर ने आतंकवाद को परिभाषित किया :- 

               एक आतंकवादी की परिभाषा उसके तत्कालीन उद्देश्य से की जा सकती है वह शक्ति का प्रयोग भी भय को उत्पन्न करने के लिए करता है और इसके द्वारा वह उस उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है जो उसके मस्तिक में है | आतंकवाद के मुख्य उद्देश्य के रूप में भय  को उत्पन्न करना स्वीकार किया है | 

 बसोनी ने आतंकवाद को परिभाषित किया:-

     उनके अनुसार आतंकवादी परिभाषा से ही यह सिद्धांत के साथ जुड़ा हुआ अपराधी बताएं जो अपने हर कार्य के कानूनी स्वरूप को अस्वीकार करता है तथा अपनी जेल की सजा या मृत्यु दंड को अपने उद्देश्यों के लिए छोटा सा त्याग मानता है | 

* अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के प्रकार:-

 आतंकवाद के अर्थ को स्पष्ट करने के बाद जिस प्रश्न पर चर्चा की जा सकती है वह है आतंकवाद के प्रकारों की आतंकवाद को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है | 

( 1 ) व्यक्तिगत आतंकवाद | 

( 2 ) अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद | 

( 3 ) राज्य का आतंकवाद | 

( 1 ) व्यक्तिगत आतंकवाद:-

                                                            सबसे पहले यहां व्यक्ति का आतंकवाद की चर्चा की जाएगी इसमें आतंकवादी व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से किसी वर्ग पर या किसी व्यक्ति विशेष पर आक्रमण करते हैं जिसका उद्देश्य स्थापित शासन पर आक्रमण करना किसी राज्य विशेष के विरुद्ध कार्यवाही करना या किसी राज्य के विचार पर ही आक्रमक रुख होता है व्यक्तिगत आतंकवाद के शिकार मुख्त:  व्यक्ति होते हैं किंतु कई अवसरों पर प्रति आत्मक संस्था जैसे दूतावास अनु संस्थान वायुयान आदि आक्रमण के केंद्र रहते हैं किंतु अंतिम उद्देश्य तो राज्य ही होता है इसलिए इसे व्यक्तिगत आतंकवाद कहा जाता है | 

( 2 ) अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद :-

                                                                     अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद व्यापक विचार-विमर्श और चिंता का विषय रहा है क्योंकि इसके परिणाम सबसे अधिक गंभीर रहे हैं अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद हिंसा या भय का वह कार्य है जिसका क्षेत्राधिकार अंतरराष्ट्रीय होता है यथा  जिसे करने वाला एक राज्य का हो और जिसके विरुद्ध किया गया हो वह दूसरे राज्य का या ऐसी हिंसा की कोई घटना हो के जो दोनों ही में क्षेत्राधिकार से बाहर की हो | 
( 1 ) अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी हिंसा या भय का कार्य | 

( 2 ) अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का क्षेत्रधिकार अंतरराष्ट्रीय होता है | 

( 3 ) अपराध करने वाला या जिसके विरुद्ध अपराध किया वे अलग-अलग राज्यों के होते हैं | 

( 4 ) हिंसा या अपराध जहाँ हुआ हो वह क्षेत्र दोनों राज्यों का हो ही नहीं | 

( 3 ) राज्य का आतंकवाद :-

                                                                   राज्य के आतंकवाद की चर्चा आतंकवाद विश्लेषण में आवश्यक है यह हिंसा राज्य के द्वारा की जाने वाली हिंसा है राज्यों के द्वारा यह हिंसा अपने यहां अल्पमत किसी राज्य के नागरिकों या राज्य द्वारा अधिकृत प्रदेश की नागरिक जनसंख्या पर की जाती है राज्य की हिंसा के उद्देश्यों में अपने नागरिकों द्वारा अपने ही नियम की अनुपालना करवाना मुख्य उद्देश्य होता है | 


* अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से जुड़े कतिपय प्रमुख प्रश्न :-

                                                                                                                              अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की परिभाषा उसके 70 और प्रभावों को रेखांकित करना एक जटिल राजनीतिक कार्य अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का मूल्यांकन तब और भी अधिक कठिन हो जाता है जबकि अंतरराष्ट्रीय अन्याय के खिलाफ किसी भी प्रकार के संघर्ष को इस वर्गीकरण मे लाकर यह मांग की जाएगी अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से जुड़े लोगों के साथ विशेष प्रकार का आचरण किया जाना चाहिए यह पिछले दिनों यह मांग भी जोर पकड़ती जा रही है कि हिंसा का प्रयोग करने वाले व्यक्ति के साथ चाहे वह  अंतरराष्ट्रीय अन्याय के खिलाफ ही क्यों ने लड़ रहा  हो सामान्य अपराधी के रूप में ही आचरण होना चाहिए | 

( 1 ) समुंद्री मार्गों पर डकैती | 

( 2 ) नशीले पदार्थों का गैरकानूनी यातायात | 

( 3 ) आणविक शक्ति का गैरकानूनी उपयोग | 

( 4 ) मुद्रा का गैरकानूनी हस्तातंरण | 

( 5 ) दास का व्यापार    | 

( 6 ) अश्लील साहित्य का वितरण | 


* अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी नियमों का विकास और उनका मूल्यांकन :-

 अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के शिकार कौन रहे हैं यह बहुत स्पष्ट होना चाहिए यह शिकार थे विमान और राजनयिक दोनों पर आक्रमण करते समय में यह स्पष्ट था कि इनके माध्यम से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समस्याओं के रेखाचित्र करने का अवसर प्राप्त होगा किंतु इन पर लगातार आक्रमण ने यह आवश्यकता स्पष्ट कर दी कि इनकी सुरक्षा के प्रश्न  को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाना चाहिए अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से जुड़े नियमों के विकास में एक बात बहुत साफ होनी चाहिए कि यह समस्या बिल्कुल नहीं थी अतः कोई परंपरा या लंबा राजाचरण इस प्रश्न पर उपलब्ध नहीं था | 

( 1 ) टोक्यो अभि  समय 1963 | 

( 2 ) हेग अभि समय 1970 | 

( 3 ) मांटियल अभि समय 1971 | 

( 4 ) अंतरराष्ट्रीय व्यक्तियों के संरक्षण से संबंधित अभि समय 1973 | 

( 5 ) आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा का प्रस्ताव 1985 | 

( 6 ) दक्षस  द्वारा आतंकवाद के खिलाफ अभि समय 1987 | 

  * दक्षिण एशियाई देशों में 7 राष्ट्र :-

 भारत ,पाकिस्तान, बांग्लादेश  श्रीलंका,  नेपाल, भूटान,  और मालदीव,  राष्ट हैं | 

                                                    

                         



Wednesday, 13 November 2019

तृतीय विश्व शब्द का अर्थ व लक्षण एवं तृतीय विश्व के देशों के लक्ष्य और उपागम


* तृतीय विश्व का अर्थ तथा लक्षण:-

                                                                                तृतीय विश्व में गरीब व आर्थिक रूप से विकसित देश आते हैं यह देश इतनी अधिक संख्या में है कि यह कहना सरल होता है कि इनमें से कौन सा देश विकसित है और कौन सा नहीं तैरती है विश्व में महासागर के देश जापान ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड को छोड़कर एशिया के सभी देश तथा दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर सभी अफ्रीकी देश तथा कनाडा व अमेरिका के अलावा पश्चिमी गोलार्ध के सभी देश शामिल है कुछ सूत्रीकरण यूरोप के कुछ देशों को विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को श्रेणी में रखते हैं इस प्रकार तृतीय विश्व की जनसंख्या पूरे विश्व की जनसंख्या का 75% है सकल राष्ट्रीय उत्पादन के हिसाब से इसकी कुल वस्तुएं एवं सेवाएं विश्व में उत्पादन का केवल 20% प्रति व्यक्ति आमदनी के आधार पर तृतीय विश्व के लिए औसतन वार्षिक आय 2000 से कम नहीं होती जबकि प्रथम विश्व में द्वितीय विश्व में औसत वार्षिक आय से कहीं अधिक होती है हम उत्तर दक्षिण विवाद के बहुआयामी मुद्दों को समझ सकते हैं यदि हम इसकी नियंत्रण अविकसितता के उत्तरदाई कुछ तथ्यों को अलग करके देखें जो कि आज विश्व में कई देशों को दुर्दशा को दर्शाते हैं |

( 1 ) उच्च जनसंख्या वृद्धि |

( 2 ) आय का निम्न स्तर |

( 3 ) तकनीकी निर्भरता |

( 4 ) विकासशील देशों में दोहरापन |


( 1 ) उच्च जनसंख्या वृद्धि:-

                                                                अमीर  व गरीब देशों के बीच बढ़ते फासले के पीछे यह एक स्पष्ट कारण है अन्य चीजों के अलावा उच्च जन्म दर का अर्थ है कि विकासशील देशों में नौजवानों की जनसंख्या का अनुपात बहुत अधिक है तथा एक बड़े पैमाने पर बढ़ती शहरी जनसंख्या को उच्च स्तर की सुविधाएं प्रदान करने के अलावा हिंदी सॉन्ग को उत्पादकों को एक नई पीढ़ी तैयार करने के लिए अधिक संसाधनों का इस्तेमाल करना पड़ता है | 

( 2 ) आय का निम्न स्तर :-

                                                             यह प्रमुख लक्षण है जो कि तृतीय विश्व को प्रथम व द्वितीय विश्व से भिन्न करता है आय के निम्न स्तर की वजह से दोषपूर्ण आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियां उत्पन्न होती है लेकिन निम्न आय गरीब देशों को भविष्य में आर्थिक बचत करने से बचाती है यह माना जाता है कि जब एक बड़ी संख्या में लोग कृषि क्षेत्र में लगे होते हैं तो वास्तव में वे पूरी तरह से रोजगारो की श्रेणी मैं नहीं आते हैं  कि श्रम शक्ति इस्तेमाल की सीमा रेखा से नीचे हैं यह सिर्फ कृषि क्षेत्र तक ही सीमित नहीं वरन उत्पादनो के सभी कारकों का कम प्रयोग गरीब देशों की अर्थव्यवस्था का प्रमुख लक्षण है सिंगर तथा अन्सारी का सुझाव है  कि आई वितरण काउच बढ़ती समानताएं तथा उपभोग में निवेश के प्रति रूपों में विकृतियां श्रम शक्ति के न्यूनतम प्रयोग के कारण प्रभाव है यह तत्व शिक्षा स्वास्थ्य परिवहन एवं ऋण सुविधाओं के क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश के लिए भी उत्तरदाई होते हैं देश के सामाजिक व आर्थिक ढांचे में पूंजी निवेश की कमी के कारण गरीब देश गरीबी रहते हैं तथा उनमें वे अमीर देशों के बीच फासला बढ़ आता रहता है | 

( 3 ) तकनीकी निर्भरता :-

                                                                    विकासशील देश अपने संसाधन निधि के लिए उचित  स्वदेशी तकनीकी के विकास में योग्य नहीं सिद्ध हो पाए हैं तकनीकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वे अमीर देशों पर आश्रित रहते हैं यह गरीब देशों में सबसे गरीब देशों के लिए एक सत्य है |  तथा तृतीय विश्व के अपेक्षाकृत धनी देशों के लिए भी एक सत्य है इसमें तेल निर्यात देश भी शामिल हैं  जिनकी अविकसित तकनीकी सामाजिक व आर्थिक वृद्धि व परिवर्तनों के मुख्य बाधक हैं तकनीकी विकास के असंतुलनो को निम्नलिखित रुप में उल्लेखित किया जा सकता है विज्ञान में तकनीकी पर पूरे विश्व में काव्य अमीर देशों के अंदर ही होता है तथा इन देशों की परिस्थितियों तथा साधन नीति के अनुकूल प्रणालियों द्वारा शोध व विकास इनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए ही निर्देशित होते हैं यद्यपि गरीब देशों की समस्या उस प्रकार की नहीं है उदाहरण के लिए शोध की आवश्यकता उन सरल उत्पादकों के नमूने तैयार करने छोटे बाजारों के लिए उत्पादन विकास तथा अनुवृत्ति उत्पादकों के नए प्रयोगों के विकास व स्वरूप में सुधार करने के लिए होती है तथा सबसे अधिक शोध की आवश्यकता उत्पादन व्यवस्था के विकास करने के लिए होती है जो कि उनकी प्रचुर  श्रम शक्ति का प्रयोग करने के लिए होती है इसके बजाय विकसित देशों में आधुनिक हथियारों अंतरिक्ष शोध अनुसार आधुनिक उत्पादकों ऊंचाई वाले बाजारों का निर्माण तथा निरंतर रूप से उन प्रक्रियाओं की खोज पर अधिक जोर दिया जाता है   | 

( 4 ) विकासशील देशों में दोहरापन :- 

                                                                                    कुछ मिलाकर विकासशील देशों के सामाजिक व आर्थिक ढांचे में दोहरा पन पाया जाता है अधिकांश भारतीय विश्व के देशों में एक विशाल में निष्क्रिय क्षेत्र पाया जाता है जो कि एक छोटे आधुनिक व औद्योगिक क्षेत्र से जुड़ा होता है जिसमें कृषि क्षेत्र से श्रम शक्ति व पूंजी के रूप में औद्योगिक क्षेत्र में संसाधनों की आपूर्ति की मुख्य कड़ी का काम करती है औद्योगिक क्षेत्र में वृद्धि ग्रामीण क्षेत्र में सद्श विकास की प्रक्रिया में ना तो कोई भूमिका ही आधा कर पाती है तथा ने ही निष्क्रिय क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर पैदा कर पाई है विकासशील देशों के आर्थिक ढांचे में दौरा पड़ने का कारण उनका उपनिवेश ही अतीत है जबकि केंद्रीय शक्तियां अपने को निर्मित वस्तुओं का उत्कर्ष उत्पादक समझती थी तथा उपनिवेश खाद्य पदार्थों में कच्चे माल के उत्पादन का महत्वपूर्ण माध्यम समझ जाते थे विकासशील देशों में बेरोजगारों की संख्या के अनुमान भिन्न-भिन्न है लेकिन सभी आंकड़े एक ही स्थिति को दर्शाते हैं कि श्रम शक्ति के क्षेत्रों में बेरोजगारों की संख्या नई नौकरियों से कहीं अधिक ज्यादा बड़ी है गरीब देशों की अमीर देशों पर तकनीकी निर्भरता इसी दुविधा का परिणाम है क्योंकि औद्योगिक देशों में आधुनिक तकनीकी का विकास श्रम शक्ति पर नहीं वरन पूंजी पर आधारित है जो कि बेरोजगारों की दुर्दशा में सुधार लाने के बजाय उसे और बिगड़ने में सहायक होता है | 

 उत्तरी भाग के देशों को दक्षिण भाग के देशों से उत्पादकों के निर्यात के फल स्वरुप निर्भरता ने इस दूसरे पर निर्भर रहने वाली व्याख्या के विकास की प्रक्रिया को जन्म दिया है जिसे दक्षिण भाग के देशों में उत्तरी भाग के देशों के साथ सौदेबाजी की क्षमता बढ़ी है विश्व पेट्रोलियम बाजार में तेल निर्यातक उत्पादन करने वाले देशों के संघ के प्रभाव में यह स्पष्ट रूप से दर्शाया है विकासशील देशों को आपस में व्यापारिक साझेदारी कमजोर सिद्ध हुई है यद्यपि उतरी बाग के बाजारों में सभी स्पर्धा करते हैं जी से दक्षिण भाग के देश सॉन्ग की एकता को खतरा तो पैदा होता रहता है पर साथ ही साथ उनकी आंतरिक के विभिन्न ताई और अधिक मजबूत होती है विकासशील देश उत्तरी भाग के देशों के साथ व्यापार करने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं जबकि विकसित देश आपस में भी व्यवहार करना पसंद करते हैं विकासशील देश वस्तुओं के अंतरराष्ट्रीय भावों को स्वीकार करना पड़ता है क्योंकि विकासशील देशों को विकसित देशों के उत्पाद को व सेवाओं की आवश्यकता कहीं अधिक होती है जबकि विकसित देशों को विकासशील देशों के उत्पादकों की आवश्यकता नहीं होती है | 

* तृतीय विश्व के देशों के लक्ष्य :-

                                                                     तकनीकी निर्भरता एक ऐसा कारण है जिसके फल स्वरुप विकासशील देशों की विश्व में विकास की प्रक्रिया में स्थिति सबसे नीचे बनी रहती है श्रृंगार तथा अंसारी का तर्क है यदि तकनीकी के क्षेत्र में अंतर को खत्म नहीं किया जाता तो विकासशील देशों की अमीर देशों की अर्थव्यवस्था पर निर्भरता बनी रहेगी तथा किसी भी तरह की सहायता व्यापारिक रियासतें अनुदान तकनीकी सहायता तथा आकसिमक  दाम वृद्धि कतई लाभ प्राप्त नहीं हो सकते हैं | 

( 1 ) नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था :-

                                                                        इन समस्याओं से निपटने के लिए सन 1970 के दौरान विकासशील देशों की नीतियों के अध्यादेश सामूहिक रूप से राजनीतिक क्षेत्र में नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के मांग के रूप में जाने जाते हैं यह एक ऐसी व्यवस्था की मांग है जो कि तृतीय विश्व के देशों को वर्तमान आर्थिक अंतरराष्ट्रीय संबंधों के ढांचे में विचित्र से मुक्त करती है तथा विश्व के अमीर तथा गरीब देश के बीच उपनिवेशवादी वह नव साम्राज्यवादी संबंधों की निरंतरता वाले ढांचे से मूलभूत रूप से भिन्न प्रकार की व्यवस्था की कल्पना करती है तृतीय विश्व के देश वर्तमान व्यवस्था को अपने साथ शोषण का माध्यम समझते हैं | 

( 2 ) राजनीतिक स्वायत्तता :-

                                                                     समता की प्रेरणा अर्थव्यवस्था तक ही सीमित न होकर राजनीति क्षेत्र को भी सम्मिलित करती है तृतीय विश्व के देशों के नेता यह नहीं चाहते कि विभिन्न उच्च स्तरीय बैठकों में उनकी भागीदारी को नजरअंदाज किया जाए वह चाहते हैं कि उन्हें अपने विचारों से दबाव डालने का पूरा अवसर दिया जाए तथा हमेशा उनका विरोध नहीं किया जाए कहीं इस धारणा के विरुद्ध की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को वर्तमान श्रेणी बंद संगठन के रूप में स्थापित किया जाए जिसमें कि कुछ औद्योगिक व तकनीकी रूप से शक्तिशाली में अमीर देश तथा बल प्रयोग की क्षमता वाले देश नीतियां निर्धारित करें और जिनमें दूरदराज के देशों की आर्थिक स्थितियों को प्रभावित करने में मदद मिले हैं | नव उपनिवेशवाद वे नव साम्राज्यवाद के अर्थों में तृतीय विश्व के देशों ने आश्रित संबंधों के अवशेषों को तोड़ने का प्रयास किया है अधिकांश देशों ने इस भय की वजह से पूर्व पश्चिम के संघर्ष से अलग रहने का दढ़  विश्वास भी प्रदर्शित किया है | 

( 3 ) गुटनिरपेक्षता :-

                                           तृतीय विश्व के देशों में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत सन 1955 से हुई थी जब अमेरिका तथा एशिया महाद्वीपो के 29  देशों ने उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष का माध्यम ढूंढने के लिए बांडुंग मैं अपनी बैठक की थी सन 1966 में विश्व को विभाजित करने वाले विवादों पर हाथ से अपने करने के सिद्धांतों पर जोर डालते हुए अफगानिस्तान के एक नीति प्रवक्ता ने गुट निरपेक्षता की अवधारणा को परिभाषित किया अफगानिस्तान सभी देशों के साथ मंत्री पूर्ण संबंध रखना चाहता है तथा राजनैतिक बेचैनी संगठनों में में शामिल होने की नीति अपनाना चाहता है निरपेक्षता के सिद्धांतों का पालन हमारे देश के दिया अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर निर्णय लेने का मुख्य आधार होगा |