* विनिर्माण उद्योग :-
विनिर्माण उद्योग का अर्थ प्राथमिक उत्पादन से प्राप्त कच्ची सामग्री को शारीरिक अथवा यांत्रिक शक्ति द्वारा परिचालित औजारों की सहायता से पूर्व निर्धारित एवं नियंत्रित प्रक्रिया द्वारा किसी इच्छित रूप आकार या विशेष गुणधर्म वाली वस्तुओं में बदलना है विनिर्माण उद्योग के नाम से अक्सर यह भ्रांति हो जाती है कि यह केवल वृहद स्तर का उद्योग हैं परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है इस उद्योग को किसी भी स्तर पर आरंभ किया जा सकता है इस अर्थ में अति साधारण वस्तुओं यात्रा मिट्टी से मिट्टी के बर्तन में खिलौने बनाने से लेकर भारी से भारी निर्मित वस्तुएं जैसे बड़ी मशीनें जलयान भारी रसायन बनाने संबंधी अधिक सभी उद्योग सम्मिलित हैं निर्माण उद्योग में प्रयोग किए जाने वाले पदार्थ प्राकृतिक दशा में कच्चा माल कहलाते हैं जैसे धातु अयस्क लकड़ी कपास आदि चिड़ी हुई लकड़ी जिससे कागदी लुगदी बनाई जाती है कपास का धागा जैसे वस्त्र बनना चाहता है किसी भी देश में निर्माण उद्योग के विकास के साथ ही उसकी राष्ट्रीय आय बढ़ती है वह देश विकसित होता जाता है |
* उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक :-
उद्योगों की स्थापना केवल उन्ही स्थानों पर हो सकती है जहां उनके विकास के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएं उपलब्ध हो उद्योगों की अवस्थिति व विकास को प्रभावित करने वाले कारक को आरेख 9.1 द्वारा दर्शाया गया है |
( 1 ) कच्चा माल:-
किसी भी उद्योग के विकास के लिए कच्चा माल सुगमतापूर्वक, पर्याप्त में सस्ती दर पर प्राप्त होना चाहिए | अत : अधिकतर उद्योगों खानों , वनों, कृषि क्षेत्र समुंद्र तटीय क्षेत्रों के निकट ही अवस्थित है जिन उद्योगों का कच्चा माल भारी सस्ता व जिनमें निर्माण के दौरान वजन कम होता है उनमें इसी तरह की प्रवृत्ति पाई जाती है इंसाने होने पर उनका परिवार भी बढ़ जाएगा अधिकांश लोहा इस्पात उद्योग कोयले की खानों के पास लोहे की खानों के पास अथवा कोयला लोहे अयस्क की खानों के बीच किसी अनुकूल स्थान पर स्थापित किया जाता है फल सब्जियां दूध मछलियां जैसे शीघ्र खराब होने वाले कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को कच्चे माल के स्त्रोत के समीप स्थापित किया जाता है |
( 2 ) शक्ति के साधन :-
शक्ति के साधन का सुचारू एवं सुगम रूप में मिलना उद्योगों के केंद्रीयकरण एवं विकास के दिया विषय के शक्ति के प्रमुख साधन कोयला पेट्रोलियम जलविद्युत प्राकृतिक गैस और परमाणु ऊर्जा है लोहा इस्पात उद्योग जैसे भारी उद्योग कोयले से शक्ति प्राप्त करते हैं यह कोयले की खानों के समीप स्थापित किए जाते हैं संयुक्त राज्य अमेरिका रूस में यूरोपीय देशों के अधिकार लौह इस्पात केंद्र कोयला खदानों के पास ही स्थित है भारत के प्रमुख लोहा इस्पात केंद्र दामोदर घाटी में झेरिया वे रानीगंज कोयला खदानों के निकट स्थापित है |
( 3 ) परिवहन व संचार के साधन :-
कच्चे माल को कारखानों तक लाने तथा तैयार माल को बाजार तक पहुंचाने के लिए तीव्र सक्षम परिवहन सुविधाएं औद्योगिक विकास के लिए अत्यावश्यक है परिवहन लागत का औद्योगिक इकाई की स्थिति में महत्वपूर्ण स्थान होता है पशिचमी यूरोप उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भागों में विकसित परिवहन तंत्र के जाल की वजह से सदैव इन क्षेत्रों में उद्योगों का जमाव है एशिया, अफ्रीका, में दक्षिणी अमेरिका, के अधिकांश देशों में परिवहन के साधनों की कमी के कारण औद्योगिक विकास कम हुआ है |
( 4 ) बाजार :-
उद्योगों की स्थापना में सबसे प्रमुख कारक उसके द्वारा उत्पादित माल के लिए बाजार का उपलब्ध होना जरूरी है बाजार से तात्पर्य उस क्षेत्र में तैयार वस्तुओं की मांग एवं वहां के निवासियों की कैरियर शक्तियां विकसित देशों के लोगों की क्रय शक्ति अधिक होना तथा सघन बसे होने के कारण वृहद वैशिवक बाजारे दक्षिणी वे दक्षिणी पूर्वी एशिया के सघन बसे प्रदेश भी वृहद बाजार उपलब्ध कराते हैं |
( 5 ) पूंजी :-
किसी भी उद्योग की स्थापना एवं संचालन के लिए पर्याप्त पूंजी होना अनिवार्य कारखाना लगाने मशीनें वह कच्चा माल खरीदने और मजदूरों को वेतन देने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है विकासशील देशों में पूंजी की कमी के कारण आशातीत औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है |
( 6 ) जलापूर्ति :-
किसी निर्माण उद्योग की अवस्थिति पर जलापूर्ति का भी प्रभाव होता है लोहा इस्पात उद्योग ,वस्त्र उद्योग, रासायनिक उद्योग, कागज उद्योग, चमड़ा उद्योग, आणविक विद्युत ग्रह आदि कुछ ऐसे उद्योग है जो जल के बिना विकसित नहीं हो सकते हैं अत : ऐसे उद्योग किसी स्थायी जल स्त्रोत के निकट स्थापित किए जाते हैं |
( 7 ) सरकारी नीतियां :-
किसी देश की सरकार की नीतियां भी उद्योगों के विकास को प्रभावित करती है यदि किसी देश की सरकार वहां उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर रही है तो विदेशी कंपनियां वहां उद्योग नहीं लगा पाएगी इसके विपरीत यदि टैक्स में छूट अथवा अन्य सुविधाएं दी जाए तो उद्योगों के विकास की संभावना बढ़ जाती है |
* विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण :-
विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण उनके आकार कच्चे माल उत्पाद के स्वामित्व के आधार पर किया जाता है |
( 1 ) आकार पर आधारित उद्योग :-
किसी उद्योग का आकार उसमें निवेशित पूंजी कार्यरत श्रमिकों की संख्या एवं उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है आकार के आधार पर उद्योगों को 3 वर्गों में बांटा जा सकता है |
( 1 ) कुटीर उद्योग |
('2 ) लघु उद्योग |
( 3 ) बड़े पैमाने के उद्योग |
( 1 ) कुटीर उद्योग :-
यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई है इसमें दस्तकार स्थानीय कच्चे माल का उपयोग करते हैं वह कम पूंजी तथा दक्षता से साधारण औजारों के द्वारा परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर घरो में ही अपने दैनिक जीवन के उपयोग की वस्तुओं का उत्पादन करते हैं |
( 2 ) लघु उद्योग :-
इन्हें छोटे पैमाने के उद्योग कहते हैं इसमें स्थानीय कच्चे माल का उपयोग होता है इसमें अर्द्ध - कुशल श्रमिकों व शक्ति के साधनों से चलने वाले यंत्रों का प्रयोग किया जाता है यह उद्योग विकासशील देशों की सघन बसी जनसंख्या को बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराते हैं |
( 3 ) बड़े पैमाने के उद्योग:-
बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए विभिन्न प्रकार का कच्चा माल शक्ति के साधन विशाल बाजार, कुशल श्रमिक उच्च प्रौघोगिकी व आदि पूंजी की आवश्यकता होती है इन उद्योगों का सूत्रपात औद्योगिक क्रांति के बाद हुआ |
( 2 ) कच्चे माल पर आधारित उद्योग:-
कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को पांच भागों में बांटा जा सकता है |
( 1 ) कृषि आधारित उद्योग |
( 2 ) खनिज आधारित उद्योग |
( 3 ) रसायन आधारित उद्योग |
( 4 ) वनोत्पादक आधारित उद्योग |
( 5 )पशु आधारित उद्योग |
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