* राजस्थान की सामंतवादी व्यवस्था:-
स्वतंत्रता से पूर्व राजपूताने की 21 रियासत और उनके अधीनस्थ ठिकानों ( जागीर क्षेत्र ) में सामंतवादी व्यवस्था के प्रतिमान प्रचलित थे इसके अंतर्गत नरेश रियासत का संप्रभु शासक होता था और उसके अधीन अनेक सामंत जागीरदार अपनी तागीर ( ठिकाना ) के अर्धस्वतंत्र शासक होता थे | देवें अपने ठिकाने में सर्वोच्च शक्ति होने के कारण कार्यपालिका व्यवस्थापिका और न्यायपालिका की शक्तियों का निर्गुण रूप से प्रयोग एवं उपभोग करते थे जागीरदार को अपने राज्य के स्वामी को रेख चाकरी घुड़सवार, उछसवार, और पैदलसवार सैनिक नरेश की सेवा में प्रस्तुत करना | जागीर और रियासत की आय की वृद्धि के लिए भूमि के लगान भू राजस्व के अलावा ने प्रकार की लाग - बाग उपकर एवं बलात श्रम किसानों से जबरन वसूल की जाती थी उदाहरण 1941 मैं मारवाड़ किसानों से जबरन वसूल की जाती थी जयपुर रियासत में जब शेखावाटी के ठाकुर ने मोटर कार खरीदी जो पड़ जा पर एक नई मोटर लाग थोप दी गई जबकि वह पहले से ही 30 से ज्यादा लाग दे रहे थे | सामंतवादी व्यवस्था में खाल सा और जागीर दोनों ही क्षेत्रों में बेगार प्रथा प्रचलित थी विभिन्न जातियों को बेगार देनी पड़ती थी |
* प्रजामंडल आंदोलन की पृष्ठभूमि:-
( 1 ) किसान वर्ग के आंदोलन:-
राजस्थान की प्रत्येक रियासत में प्रचलित सामंतवादी व्यवस्था में किसान वर्ग का निर्दयतापूर्वक सामाजिक आर्थिक उत्पीड़न होता था राज्य के शासक और जगिरदार दोनों ही किसानों के नागरिक अधिकारों का पार्श्विक बल से दमन करते थे परिणाम स्वरूप सामंतवादी व्यवस्था के गर्भ से प्रथम चरण में राजस्थान में किसान आंदोलनों का उदय हुआ भारत में सर्वप्रथम अहिंसात्मक समीर नीति पर आधारित सामंतवादी के विरुद्ध किसानों का संगठित आंदोलन मेवाड़ के बिजोलिया ठिकाने से प्रारंभ हुआ अधिक भू लगान सामाजिक आर्थिक शोषण के प्रतीक लागबाग लागत बेगार और जागीरदार के किसानों पर अत्याचार बिजोलिया ठिकाने में किसान आंदोलन के प्रमुख कारण थे | बिजोलिया किसान आंदोलन सामंतवाद के विरुद्ध एक दीर्घकालीन संघर्ष और प्रतिरोध की कहानी है इसके प्रथम चरण 1897- 1916 का नेतृत्व साधु सीताराम दास ने किया द्वितीय चरण 1916-1929 का नेतृत्व में एक महान क्रांतिकारी प्रतिभा संपन्न विलक्षण संगठनकर्ता राजनीतिक कौशल में निर्गुण तथा ओजस्वी वाणी और लेखनी के धनी विजय सिंह पथिक ने किया उन्होंने ने केवल किसानों के शक्तिशाली संगठन बिजोलिया किसान पंच बोर्ड की स्थापना की बल्कि माणिक्य लाल वर्मा जैसे प्रभावशाली जन नेता का भी निर्माण किया | बिजोलिया किसान आंदोलन का महत्व है यह राजस्थान में समातिक - राजनीतिक चेतना की प्रथम सफल अभिव्यक्ति था प्रताप कानपुर के यशस्वी संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी और मराठा पुणे के संस्थापक बाल गंगाधर तिलक के लेखकों तथा महात्मा गांधी के समर्थन में राजस्थान के किसान आंदोलन को राष्ट्रव्यापी महत्व प्रदान किया सीकर शेखावाटी क्षेत्र में हरलाल सिंह ने और बीकानेर राज्य में हनुमान सिंह आर्य तथा कुंभाराम आर्य ने किसान आंदोलन का नेतृत्व किया |
( 2 ) देसी राज्य लोक परिषद की स्थापना:-
1885 मैं स्थापित अखिल भारतीय कांग्रेस में ब्रिटिश भारत में तो राजनीतिक चेतना के प्रचार-प्रसार तथा उत्तरदायी शासन की ( स्थापना के लिए आंदोलन की है परंतु रियासतों के प्रति तटस्थता की नीति बरती ) महात्मा गांधी के नेतृत्व में संचालित असहयोग आंदोलन ( 1920-22 ) और सविनय अवज्ञा आंदोलन ( 1930-1930 ), (1931-34 ) का प्रभाव राजस्थान की विभिन्न रियासतों में भी पड़ा कांग्रेस आंदोलन ने राजस्थान में किसान आंदोलनों को प्रेरणा और गति प्रदान की तथा उत्तरदाई शासन की स्थापना के लिए आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की देसी भारत की विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं तथा आंदोलनों में समन्वय स्थापित करने उन्हें राजनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु दिसंबर 1927 मैं मुंबई में अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद की स्थापना की गई इसका मुख्य उद्देश्य भारत के अभिन्न अंग के रूप में देसी राजा में शांतिपूर्ण एवं संवैधानिक साधनों से उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था देसी राज्य परिषद के प्रथम सम्मेलन में राजस्थान की ओर से विजय सिंह पथिक, रामनारायण चौधरी, जयनारायण व्यास, नैनू राम शर्मा, त्रिलोचन माथुर, आदि ने भाग लिया देसी राज्य परिषद ने राज्य सनी में प्रजामंडल की स्थापना पर बल दिया 1938 मैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में हरिपुरा अधिवेशन में रियासतों की जनता को अपने अपने राज्य में राजनीतिक संगठन स्थापित करने और राजनीतिक अधिकारों के लिए आंदोलन आरंभ करने की स्वीकृति प्रदान की इसके पश्चात राजस्थान की विभिन्न रियासतों में प्रजामंडल स्थापित हुए और अनेक नेतृत्व में सामंतवादी व्यवस्था के विरुद्ध तथा राज्यों में उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु आंदोलन आरंभ हो गई |
* विभिन्न रियासतों में प्रजामंडल आंदोलन:-
अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद की स्थापना 1927 और हरीपुरा कांग्रेस अधिवेशन 1938 यह बाद राजस्थान की परतें रियासत में प्रजामंडल की स्थापना होने लगी इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि प्रजामंडल के अन्य नेताओं ने अपनी राजनीति गतिविधियों का संचालन अजमेरी से किया ब्रिटिश भारत का अब आने के कारण अजमेर ब्रिटिश भारत में कांग्रेस आंदोलन से संबंधित सभी गतिविधियों से प्रभावित होता था देसी राज्यों में दमन चक्र की तुलना में अजमेर में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए वातावरण अनुकूल था अजमेर सुप्रसिद्ध क्रांतिकारियों अर्जुन लाल सेठ, भूप सिंह उर्फ़ विजय सिंह पथिक केसरी सिंह भारत और खेरवा ठाकुर गोपाल सिंह की कार्यस्थली रहा | जयनारायण व्यास नरुण राजस्थान के संस्थापक थे अजमेर से प्रकाशित समाचार पत्रों ने राजस्थान में राजनीतिक जन जागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया इस प्रकार अजमेर को राजस्थान की रियासतों के राजनीति कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण स्थल राजनेताओं की कर्म स्थली और राजनीतिक जन जागरण का शंखनाद करने वाले समाचारों पत्रों के प्रकाशन का केंद्र होने का श्रेय हैं |
( 1 ) जोधपुर राज्य:-
जोधपुर राज्य में निरकुश सामंतवादी व्यवस्था के विरुद्ध मारवाड़ हितकारिणी सभा 1924 मैं स्थापित के द्वारा जयनारायण व्यास के नेतृत्व में 1925 मैं आंदोलन आरंभ हुए उन्होंने मारवाड़ हितकारिणी सभा की ओर से मुंबई में दिसंबर 1927 मैं अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद के प्रथम अधिवेशन में भाग लिया सर्वप्रथम उन्होंने ही विभिन्न रियासतों के विलय से एक संयुक्त राजस्थान के निर्माण की संकल्पना प्रस्तुत की थी उन्होंने तरुण राजस्थान ब्यावर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र में अपने लेखों के माध्यम से जोधपुर राज्य में राजनीतिक आंदोलन को गति वे दिशा प्रदान की जयनारायण व्यास ने अक्टूबर 1929 मारवाड़ राज्य लोक परिषद का अधिवेशन बुलाने का निर्णय किया जोधपुर प्रशासन ने अधिवेशन प्रशासन की कटु आलोचना करने के आरोप में जयनारायण व्यास आनंद राज खुराना और भरलाल सर्राफ को बंदी बना लिया गया | व्यास जी को 6 वार्षिक का कारावास कर सजा दी गई परंतु तीनों साथियों को मार्च 1931 मैं रिहा कर दिया गया |
( 2 ) बीकानेर राज्य:-
अन्य रियासतों के साथ बीकानेर में भी सामंतवाद और निरंकुश शासन पद्धति विद्यमान थी बीकानेर में राजनीतिक संगठन स्थापित करने का प्रथम प्रयास में मघाराम वेदय ने किया | जुलाई 1942 मैं गोयल की अध्यक्षता में प्रजामंडल की स्थापना की गई और उत्तरदाई शासन की स्थापना की मांग को लेकर सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ राज्य ने दमन चक्र का सहारा लिया सार्वजनिक सभाओं, भाषणों, और प्रदर्शनों, पर प्रतिबंध लगा दिया गया महाराजा ने रघुवर दयाल सहित अन्य व्यक्तियों को गिरफ्तार तार करके उन्हें राज्य से निष्कासित कर दिया | फरवरी 1943 मैं महाराजा गंगा सिंह का देहांत हो जाने पर उनके स्थान पर सादुल सिंह गद्दी पर बैठते ही रघुवर गोयल तथा उनके सहयोगी का कार्यकर्ताओं को दिया कर दिया प्रजामंडल के नेताओं ने सरकार से प्रजामंडल को मान्यता देने की मांग की इस संबंध में महाराजा और गोयल के बीच 44 मैं लंबी वार्ता हुई परंतु कोई नतीजा नहीं निकला परिणाम स्वरूप गोयल तथा उनके साथियों को बंदी बना लिया गया बाद में गोयल को एक बार फिर राज्य से निष्कासित कर दिया गया राज्य में शीघ्र उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाएगी राज्य का तनावपूर्ण वातावरण शांत हो गया मार्च 1948 मैं महाराजा ने अंतरिम मंत्रिमंडल का निर्माण किया जिसमें प्रजा परिषद के कार्यकर्ता भी शामिल किए गए|
( 3 ) उदयपुर राज्य:-
बिजोलिया किसान आंदोलन के बाद में वार्ड में संगठित राजनीतिक आंदोलन का प्रारंभ 1938 मैं हुआ मेवाड़ में प्रजामंडल की स्थापना 24 अप्रैल 1938 को हुई बलवंत मेहता प्रजामंडल के अध्यक्ष हित भूरे लाल बना उपाध्यक्ष और माणिक्य लाल वर्मा महामंत्री निर्वाचित हुए प्रजामंडल की स्थापना से मेवाड़ में राजनीतिक चेतना अदुत लहर फैल गई हजारों की संख्या में लोग प्रजामंडल के सदस्य बनने लगे मेवाड़ प्रशासन के दमन चक्र का मुकाबला करने के लिए 21 अक्टूबर 1938 को सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया गया यह आंदोलन शीघ्र ही राज के विभिन्न भागों में फैल गया सार्वजनिक सभाओ के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया तथा प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं को बंदी बना लिया गया |
( 4 ) जयपुर राज्य:-
जयपुर में प्रजामंडल की सर्वप्रथम स्थापना 1931 मैं कपूर चंद्र पाटनी की थी परंतु उन्हें आवश्यक जन सहयोग नहीं मिला 1937 -38 मैं सेठ जमनालाल बजाज की प्रेरणा से प्रजामंडल का पुनर्गठन किया गया | 1938 मैं प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन से जमनालाल बजाज के सभापतित्व में अत्यधिक धूमधाम से संपन्न हुआ राज्य में प्रजामंडल का प्रभाव क्षेत्र बनने लगा प्रजामंडल का मुख्य उद्देश्य उत्तरदाई सरकार की स्थापना और नागरिकों को उनके प्राथमिक अधिकार दिलाना था प्रजामंडल ने लागबाग को अवैध घोषित करने और अकाल से प्रभावित क्षेत्रों में भू राजस्व की वसूली स्थगित की भी मांग की |
( 5 ) जैसलमेर राज्य:-
राजस्थान की अत्यधिक पिछड़ी रियासत होने के कारण यहां पर राजनीतिक चेतना का आरंभ काफी देर से हुआ राज्य की दमन नीति के बावजूद 1939 मैं शिव शंकर गोपाल ने राज्य से प्रजा परिषद की स्थापना की परिणाम स्वरूप उन्हें राज्य से निष्कासित कर दिया गया और वे अपने भाई सगारमल गोपा के पास नागपुर चले गए इसी बार मिठालाल व्यास ने गिरफ्तारी से बचने के लिए 15: दिसंबर 1945 को जोधपुर में जैसलमेर प्रजामंडल की स्थापना कर ली थी सागरमल गोपा के बलिदान ने प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं में एक नए साहस का संचार किया इसलिए 26 मई 1949 को मीठा लाल व्यास जयनारायण व्यास और उनके साथियों ने जैसलमेर कर राज्य सीमा में प्रवेश किया |
( 6 ) डूंगरपुर राज्य:-
उदयपुर राज्य में राजनीति गतिविधियों का प्रभाव पड़ोसी राज्य डूंगरपुर पर भी पड़ा भोगीलाल पांडे ने नेतृत्व में राज्य में राजनीतिक चेतना का प्रचार प्रसार हुआ उन्होंने 1942 मैं भारत छोड़ो आंदोलन का राज्य में नेतृत्व किया और प्रशासन में नागरिकों की सहभागिता पर बल दिया डूंगरपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना 26 जनवरी1944 को हुई भोगीलाल पांडे को अध्यक्ष गौरीशंकर उपाध्यक्ष और शिवलाल कोटडिया को मंत्री निर्वाचित किया गया प्रजामंडल की प्रमुख मांगे थे दमनात्मक कानून वापस लिए जाएं | न्यायपालिका कार्यपालिका से पृथक्करण किया | जाए बेगार प्रथा का उन्मूलन हो नागरिकों द्वारा निर्वाचित व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किया जाए |
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