Monday, 4 November 2019

प्रजातांत्रिक व्यवस्था, एवं प्रजातंत्र की संवैधानिक शर्तें या आवश्यकताएं


* प्रजातांत्रिक व्यवस्था:-

                                                            प्रजातंत्र का शाब्दिक अर्थ जनशक्ति  होता है इस शब्द का उदय ग्रीक मे हुआ था  लेकिन ग्रीक दार्शनिकों का इस संबंध में अच्छा विचार नहीं था उनके लिए यह भीड़ शासन के समतुल्य ही था प्रजातंत्र के लिए यह धृणा मध्यकाल से लेकर 18वीं सदी तक बनी रही थी | अधिकांश सामाजिक संविदा को मानने वाले दार्शनिक प्रजातंत्र को नहीं चाहते थे लोकप्रिय शासन के बजाय वे संवैधानिक राज्यशाही या सीमित सरकार की हिमायत कर रहे थे रूसी ने सिमी सरकार वे लोकप्रिय सरकार के बीच असंगति को उजागर किया रूसो द्वारा लोकप्रिय सरकार के समर्थन के फल स्वरुप ही प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का विकास हुआ जिसमें कि सचल सभा या सामान्य इच्छा के प्रत्ययों जैसे अमूर्त सुझाव भी शामिल थे रूसो के विचारों से आदिम लोकतंत्र का आभास मिलता है जो कि प्रत्यक्ष लोकतंत्र या प्रजातंत्र थे लेकिन वे राजनैतिक होने के बजाय अधिक सामाजिक दे कहीं जनजातीय समाजों में प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का पता लगाया है यद्यपि आधुनिक की राजनीति संस्थाओं का विकास उनमें नहीं हुआ था व्यवहारिक विवेक शीलता यही सुझाती  है कि प्रजातंत्र आज केवल प्रतिनिधिक  या अप्रत्यक्ष ही हो सकता है प्रतिनिधिक प्रजातंत्र का सिद्धांत है कि इसमें जनता संप्रभु अत्याधुनिक की राष्ट्रों में करोड़ों की जनसंख्या होने के कारण सभी नागरिकों के लिए सरकारी मामलों में प्रत्यक्ष तथा सक्रिय  भाग लेना असंभव है | सरकार में भागीदारी आवश्यक रूप से अप्रत्यक्ष ही हो सकती है व्यवहारिक रूप से इसका अर्थ है 
( 1 ) राष्ट्रीय सरकार आम जनता द्वारा न्यायपूर्वक चुनी जाती है | 
( 2 ) सरकार आम जनता की मांगों के लिए जबाब देह है | 
( 3 ) सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है | 

* प्रजातंत्र:-

                           प्रजातंत्र का शाब्दिक अर्थ जनशक्ति होता है | 

* प्रजातंत्र की संवैधनिक शर्ते या आवश्यकताए :-

                                                                                                      अब्राहम लिंकन के अनुसार, जनता के लिए जनता द्वारा सरकार है विधिवेत्ता प्रजातंत्र को जनता की संप्रभुता का सिद्धांत मानते हैं | एक राजनैतिक व्यवस्था में दो प्रकार की सरकारे  हो सकती हैं संवैधानिक राजशाही तथा गणतंत्र, ब्रिटेन, बेल्जियम,  जापान, नीदरलैंड,  नार्वे, तथा स्वीडन, मैं सरकारों के ऊपर राजा होता है लेकिन यह राजा या सम्राट नाम मात्र के लिए नेता होते हैं जोगी राष्ट्र की ऐतिहासिक परंपराओं में राष्ट्रीय एकता को जीवित रखते हैं तथा वास्तविक शक्तियां सत्ता कैबिनेट में है निहित होती है जो कि जनता द्वारा चुनी हुई विधान पालिका के प्रति उत्तरदाई होती है गणतंत्र की सरकार का चुने हुए व्यक्ति द्वारा नेतृत्व किया जाता है विश्व के अधिकांश  प्रजातंत्र गणतंत्र है प्राचीन काल में गणराज्य कुलीन तंत्र ग्रीक राज्यों तथा रोम  में भी विद्यमन रहा है अधिकांश आधुनिकीकरण राज्यों के क्रांतिकारी परिवर्तन के द्वारा ही अपनी स्वतंत्रता व प्रजातंत्र को हासिल किया है इस प्रकार अमेरिका व भारत दोनों ही इतिहास के विभिन्न समयो में ब्रिटिश साम्राज्य का  अंग थे उन्होंने अलग-अलग समय पर स्वतंत्रता प्राप्त की तथा गणराज्य प्रजातंत्र के रूप में अपने को स्थापित किया उन्होंने विभिन्न मात्रा की कठोरता वाले अपने लिखित संविधानो का भी ढांचा तैयार किया | 

* गणतंत्र सरकार को दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है
  ( 1 ) अध्यक्षात्मक  ( 2 ) संसदात्मक | 

  अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली है क्योंकि वहां राष्ट्रपति को वास्तविक कार्यपालिका शक्तियां प्राप्त हैं तथा वे विधान पालिका के प्रति उत्तरदाई नहीं होता है वह 4 वर्षों में अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुना जाता है इसलिए राष्ट्रपति के लिए आम जनमत के प्रति उत्तरदाई होने की आवश्यकता होती है भारत की भ्रांति संसदात्मक गणतंत्र  भी हो सकती है जा राष्ट्रपति नाम मात्र कार शासक होते हैं भारतीय किसान संघ संबंधित शक्तियां कैबिनेट के पास होती है कि आम जनता द्वारा निर्वाचित विधान पालिका के प्रति उत्तरदाई होती है अध्यक्षात्मक सरकार में कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदाई नहीं होती है जितने भी इनमें से किसी भी प्रणाली में जनता के प्रति प्रत्यक्ष उत्तरदायित्व नहीं होता है | इसलिए कुछ विद्वानों में जनता की सीमित भागीदारी के लिए नियम बनाए गए हैं |
( 1 ) सूत्रपात जिसके द्वारा जनता विधायी  तथा नीति उपायों को आरंभ सकती है | 
( 2 ) जनमत जिसके द्वारा विवाद पूर्व विधायक अथवा नीतियों के मामले जनता के पास भेजे जा सकते हैं 

( 1 ) चुनाव तथा नागरिकता:-

                                                                प्रजातंत्र वे शासन प्रणाली है जहां की अधिकतम अधिकार नागरिकों को दिए जा सकते हैं अन्य शब्दों में राजनीति व्यवस्था की क्षमता मुख्य रूप से नागरिकों द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं अधिकारों से मूल्यांकन किया जा सकता है प्रजातांत्रिक व्यवस्था में ही नागरिकता का अर्थ होता है राजशाही  मैं कोई नागरिक नहीं होता वहां केवल प्रजा होती है जैसा ही उपनिवेश में होता है कि यह प्रजातंत्र नहीं है(  पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया ने कहा कि पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था विश्व भर में सबसे अच्छी प्रजातांत्रिक व्यवस्था है ) इसलिए इस व्यवस्था के लोग भी नागरिक हैं जाते हैं प्रजातंत्र की असली परख है कि इसमें जनता को अपनी सरकार चुनने का अधिकार है या नहीं | इन सबके लिए एक चुनाव व्यवस्था की आवश्यकता है चुनाव स्वतंत्र व निष्पक्ष होने चाहिए इसका अर्थ है कि चुनाव प्रक्रिया उचित समय में पूरी हो जानी चाहिए दूसरा नागरिकों को देखरेख में होना चाहिए तीसरा चुनाव प्रक्रिया में बलिया दबाव का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए तीसरा चुनाव प्रक्रिया में बलिया दबाव का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए चौथा माता अधिकारी सार्वभौमिक होना चाहिए एक समय ऐसा था जबकि मत देने का अधिकार केवल धनी वर्ग को ही प्राप्त था जबकि मत देने के असधिकर शैश्रीक  योग्यता जैसे प्रतिबंध होने चाहिए 

* सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कब लागू हुआ:-

                                                                                      सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार सन 1929 मैं इंग्लैंड में स्थापित किया गया था | 

( 2 ) अधिकार व स्वतंत्रताए :-

                                                          संस्थागत प्रश्न  प्रजातंत्र के सार  या तल के प्रश्नों को भी उजागर करते हैं यदि प्रजातंत्र दिए गए अधिकारों से यह जाना जाता है तो उन अधिकारी की मात्रा या सारे निर्णायक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है अधिकारों का परंपरागत सिद्धांत नकारात्मक है जिसका अर्थ प्रतिबंधों की अनुपस्थिति है अधिकारों का गृह सिद्धांत सिर्फ धनी वर्ग के लिए मायने रखता है गरीब क्या कमजोर वर्ग 1 को राज्य में समाज के सकारात्मक सहायता की आवश्यकता होती है आर्थिक शक्ति ही राजनैतिक व सामाजिक शक्ति का मूल आधार है आर्थिक संसाधनों पर सामाजिक नियंत्रण ओं का विचार समाजवादी तथा कल्याणकारी अर्थशास्त्रियों ने ही नियत किया है प्रजातंत्र की उदारवादी छवि फीकी पड़ती जा  रही है यह समझा जाता है कि 18 वीं सदी के अंत के तीन महान क्रांतिकारी नारो,  स्वतंत्रता, समता तथा भाईचारा में से अमेरिका ने  स्वतंत्रता को अपनाया तथा फ्रांसीसी क्रांति ने भाईचारे को अपनाया | 
                

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