Friday, 8 November 2019

निरोपनिवेशवाद, उपनिवेशवाद का अर्थ एवं एशिया व अफ्रीका में स्वतंत्र देशों का उदय


* उपनिवेशवाद:-

                                        उपनिवेशवाद शक्तिशाली राज्यों की साम्राज्यवादी नीतियों का परिणाम था स्वयं के देश की सीमाओं को बढ़ाकर शक्ति संवर्धन व शक्ति प्रदर्शन स्वरूप नए प्रदेशों पर आधिपत्य करने की प्रवृत्ति ने यूरोप में बड़े-बड़े सम राज्यों को जन्म दिया औद्योगिकरण द्वारा उत्पन्न यातायात संचार साधनों एवं औद्योगिकरण द्वारा उत्पन्न कच्चे मार्वे बाजार की मांग ने इस साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को और प्रबल किया इस प्रकार साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद एक ही सिक्के के दो पहलू माने जा सकते हैं मूल्य एवं भावनाओं के आधार पर उपनिवेशवाद को कई तरह से  परिभाषित किया गया है पश्चिमी अवधारणा के अनुसार उपनिवेशवाद ऐसी विदेशी जनता पर लंबे समय के लिए शासन स्थापित करना एवं बनाए रखना है जो शासन करता शक्ति से पृथक हैं एवं उसकी अनुचरी  है | 

*  उपनिवेशवाद का तात्पर्य :-

                                                                   उपनिवेशवाद से तात्पर्य समुंद्री से पृथक हुए भूखंडों पर रहने वाली प्रवत्तियो पर शासन करना है | 

* निरोपनिवेशवाद :-

                                                निरोपनिवेशवाद का विचार बीसवीं शताब्दी विशेषकर द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत प्रचलित हुआ हालांकि इससे पूर्व ही 18वीं शताब्दी में 13 अमेरिकी उपनिवेश ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध विद्रोह कर चुके थे और स्वयं के स्वतंत्र राज्य से स्थापना कर चुके थे लेटिन अमेरिका अथवा दक्षिण अमेरिका के देश भी  निरोपनिवेशवाद के विरुद्ध लड़े और स्वतंत्रता  प्राप्त की एशिया व अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलनों के अन्य नेताओं ने मित्र राष्ट्रों के युद्ध प्रयासों में इस आशा से सहायता दी थी कि युद्ध समाप्त होने पर उनके देशों को स्वतंत्रता प्रदान कर दी जाएगी किंतु उनकी आशाएं फोन नहीं हुई और साम्राज्यवादी नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि स्वतंत्रता एवं प्रजातंत्र संबंधी युद्ध कालीन नारे उनके उपनिवेश उनके लिए नहीं थे फिर भी युद्ध से साम्राज्यवादी देश कमजोर अवश्य हो गए और युद्ध ने उपनिवेश हो कि जनता में जागृति फैलाने में योगदान दिया था अत : वही स्वतंत्रता आंदोलन तीव्र हो गए | द्वितीय विश्वयुद्ध में सामान्यतया साम्राज्यवाद की जड़ें कमजोर कर दी थी क्योंकि आने साम्राज्यवादी देशों की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाता साम्राज्यवादी देशों के भीतर जो शक्तियां स्वाधीनता के लिए लड़ने वालों की मित्र थी उनकी ताकत बढ़ गई थी | 

* एशिया व अफ्रीका में स्वतंत्र देशों का उदय :-

                                                                                                   द्वितीय विश्वयुद्ध के कुछ ही वर्षो के अंदर एशिया के बहुत से देश स्वतंत्र हो गए सबसे पहले आजादी पाने वाले देशों में भारत भी एक था भारत के  विभाजन से पाकिस्तान नाम का एक अन्य देश भी बना भारत की स्वतंत्रता के कुछ वर्षों बाद ही वर्मा 4 फरवरी 1948 को ब्रिटेन के आधिपत्य से मुक्त हुआ फरवरी 1948 में श्रीलंका भी आजाद हो गया फिलीपींस को  1946 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्वतंत्रता देने की मांग स्वीकार कर ली थी जापान की हार के बाद इंडोनेशिया ने स्वाधीनता की घोषणा कर दी थी परंतु हालैंड के शासकों ने वहां बने रहने के विचार से सेनाएं वही बुला ली सुकरणों ने स्वाधीन इंडोनेशिया की सरकार बनाई और साम्राज्यवादी शासन का विरोध किया विश्व के अन्य देशों ने भी इंडोनेशिया से लड़ाई समाप्त करने की मांग की भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों ने मांग की कि भारत के जो सैनिक ब्रिटेन की सेना के हिस्से के तौर पर इंडोनेशिया भेजे गए हैं उन्हें वापस बुला लिया जाए सारा दिन हो जाने के बाद भारत ने इंडोनेशिया की स्वतंत्रता के समर्थन में 1949 में नई दिल्ली में एशियाई देशों का सम्मेलन आयोजित किया अंते 2 नवंबर 1949 को इंडोनेशिया स्वतंत्र हो गया वित्तीय नाम वे संपूर्ण हिंद चीन को जापानियों के समर्पण के बाद भी 1954 तक ट्रांसवे उसके बाद सुमित अमेरिका के साम्राज्यवादी शासन का सामना करना पड़ा और 1975 में ही साम्यवादियों के विजय के बाद ही सही अर्थों में वे पूर्व  स्वतंत्र हो सका | 

* संयुक्त राष्ट्र एवं उपनिवेशवाद की स्वतंत्रता  हेतु प्रयास:-

                                                                                                                                 उपनिवेशो प्रबल  होती राष्ट्रवादी प्रवृत्ति के फलस्वरूप सानफ्रांसिस्को मैं विभिन्न प्रतिनिधियों ने उपनिवेश सीख जनता के लिए विभिन्न प्रस्ताव रखे जो राष्ट्र संघ के प्रस्ताव से बेहतर थे इनमें गेर स्वशासी प्रदेशों के लिए घोषणा सम्मिलित की गई जिसमें सदस्यों पर बाध्यकारी बंधन लगाया गया कि उन प्रदेशों की जनता को स्वशासन का अवसर दिया जाए जहाँ स्वशासन लागू नहीं हुआ  है | 

*: अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की व्यवस्था के अंतर्गत निवासियों के हितों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए हेतु :-

                                                            ( 1 ) इनकी संस्कृति के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए इनका राजनीतिक  आर्थिक सामाजिक एवं शैक्षणिक विकास करना न्याय पूर्ण बर्ताव एवं असम्मान विरुद्ध  सुरक्षा देना | 

                  ( 2 ) संसाधन का विकास लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं को ध्यान रख उन्हें स्वतंत्र राजनीतिक संस्थाओं के क्रमश : विकास में सहायता करना प्रत्येक प्रदेश से उन लोगों की विशेष परिस्थितियों एवं विकास के विभिन्न चरणों के अनुसार | 
        
                 ( 3 ) अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की अभिवृद्धि हेतु | 

                ( 4 ) विशेष अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा जहां कहीं भी आवश्यक हो विकास के निर्माण कार्य उपायों को प्रोत्साहित करना | 

* 1947 में महासभा ने एक 16 सदस्य समिति का गठन किया जिसमें औपनिवेशिक एवं गैर औपनिवेशिक देशों को सम्मान प्रतिनिधित्व प्राप्त था इस समिति का कार्य महासभा को प्रशासनिक शक्तियों द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदनो  के संबंध में सहायता करना था | औपनिवेशिक शक्तियों में जिसका विरोध किया और तर्क दिया है कि वे महासभा को माता प्रतिवेदन भेजने के लिए बाध्य और वह भी उन प्रदेशों के संबंध में जो अब तक सामाजिक आर्थिक व शैक्षणिक रूप से मानी हुई है और यह प्रदेश समोसा सी है अथवा नहीं इसका निर्धारण करना भी उन्ही सरकार का है | यह प्रस्ताव घोषणा के रूप में था और इसे परतंत्र जनता की स्वतंत्रता  के चार्टर कहा गया | 

( 1 ) प्रजा  पर विदेशी आधिपत्य अधीनता वे शोषण मानव अधिकारों का हनन है जो संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के विरुद्ध है और विश्व शांति व सहयोग में बाधा | 

( 2 ) सभी लोगों को सब निर्णय का अधिकार है इस अधिकार के तहत वे स्वयं की राजनीतिक स्थिति एवं आर्थिक सामाजिक व सांस्कृतिक विकास को निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र है | 

( 3 ) राजनीतिक, आर्थिक,  सामाजिक, एवं शैक्षणिक, तैयारी की कमी स्वतंत्रता न देने का बहाना नहीं बनाना चाहिए | 

( 4 ) न्यासी प्रदेश के  स्वशासी प्रदेश या अन्य प्रदेशों में जो स्वतंत्र नहीं हुई है | 

( 5 ) राष्ट्रीय एकता एवं क्षेत्रीय अखंडता के पूर्ण या आशिक  विघटन के लिए किसी भी प्रकार का प्रयास सहित राष्ट्र के चार्टर के उद्देश्य एवं सिद्धांतों के विरुद्ध है | 

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