Thursday, 7 November 2019

लाला लाजपत राय का जीवन परिचय तथा विचारों का तत्कालीन परिवेश


* लाला लाजपत राय का जीवन परिचय:- 

                                                                                  लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 मैं पंजाब के एक गांव धूडिके (: जिला फरीद कोट  ) मैं हुआ था इनके पिता मुंशी राधाकिशन ने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी उर्दू तथा फारसी पढ़ाने की अहर्ताएं उनके पास थी तथा वे नॉर्मल स्कूल दिल्ली में वर्नाकुलर पढ़ाते थे माता श्रीमती गुलाब देवी असीम धैर्यवान, बुद्धिमान, व त्यागमयी  महिला थी लाला जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर इन दोनों का प्रभाव अमिट  पड़ा लालाजी की प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में जहां उनके पिता तब शिक्षक थे हुई तत्पश्चात वे जगराव,  रोपड़, लाहौर,  लुधियाना,  में दिल्ली,  में अध्ययनरत रहें शुरू से ही वे अत्यंत  प्रतिभावान विद्यार्थी थे 1880 मैं कलकत्ता विश्वविद्यालय तथा गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर दोनों की अटेस  परीक्षाएं उन्होंने उत्तीर्ण की घर में आर्थिक तंगी थी | 1875 मैं आर्य समाज की स्थापना हो चुकी थी स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों ने उन्हें अंदर तक प्रभावित किया एक सामाजिक सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी अंधविश्वास रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जारी जंग में लालाजी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया तथा सामाजिक पुनरुत्थान को अमलीजामा पहचानने में पहल  की 1882 मैं उन्होंने आर्य समाज की सदस्यता ग्रहण कर ली थी बहुत शीघ्र ही अपने विचारों तथा कार्यों के कारण उनका नाम आर्य समाज की प्रथम पंक्ति में आ गया था वहां तथा बाद में हिसार में उनके संपर्क तत्कालीन समर्पित  पर समाज सुधारकों लाला,  चुन्नीलाल, लखपत राय,  तथा डॉक्टर रामजीलाल से रहें | यहीं उन्होंने इतिहास राजनीतिशास्त्र तथा संसार भर के स्वतंत्रता  सेनानियों की जीवननियो का अध्ययन किया | भारत की राजनीति में उनकी रुचि बढ़ती जा रही थी | 1888 मैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में विचार डेलीगेट के रूप में भाग लेने गए थे | सन 1892 मैं वे लाहौर में वकालत शुरू करने के साथ ही साथ आर्य समाज की समाज सुधार की रचनात्मक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेते रहे | यहां उन्होंने डी. ए वी. कॉलेज की स्थापना की तथा डी. ए. वी.  आंदोलन में गतिशीलता बनाए रखी |

*  लालाजी की प्रमुख समस्या :-

                                                                 लालाजी अछूत समस्या, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, आदि सामाजिक समस्याओं तथा अन्य सामयिक  समस्याओं जैसे कि अकाल समस्या,  अशिक्षा,  गरीबी,  आदि के प्रति जनमानस के चेतन करने में निराकरण करने हेतु संगठन का कार्य करते रहें | 1911में वे म्युनिस्पिल कमेटी में चुने लिए गए तथा अच्छा काम किया व करवाया |1912 मैं उन्होंने कांग्रेस में पुन : प्रवेश किया | 20 फरवरी 1920 को भारत लौटने पर उनका जनता तथा तिलक जिन्ना  तथा एनी बेसेंट आदि नेताओं द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया | जुलाई 1920 मैं लाला जी को कांग्रेस के विशेष अधिवेशन कलकत्ता हेतु अध्यक्ष चुना गया इस अधिवेशन का उद्देश्य पंजाब में हुए अत्याचार ``जलियांवाला बाग में खिलाफत आंदोलन´´ से उपजी स्थितियों का निवारण में नीति_ निर्धारण तथा 1916 के संवैधानिक सुधारों के प्रति कांग्रेस  की जानकारी देश में ब्रिटिश सरकार को देना था लालाजी असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण 3 दिसंबर को गिरफ्तार कर लिए गए तथा 18 महीने की जेल हुई | पार्टी को उत्तर प्रदेश एवं पंजाब में अच्छी सफलता मिली वे दो चुनाव क्षेत्रों से केंद्रीय विधानसभा के लिए चुने गए थे विधानसभा में लालाजी ने राष्ट्रीय उद्देश्य के हेतु कांग्रेस के साथ फिर सहयोग किया भारत के लिए संविधान बनाने हेतु बनाया गया साइमन कमीशन जब भारत पहुंचा तो ज्ञात हुआ कि सभी ब्रिटिश से तथा भारतीय प्रतिनिधित्व करता ही नहीं था लालाजी ने इस पर गहरा एतराज किया इस संबंध में इसके द्वारा विधानसभा में लाए गए प्रस्ताव के पक्ष में 68 मत पड़े वे यह प्रस्ताव पारित हुआ जबकि विरोध में 62 मत पड़े | साइमन कमीशन के बायकाट के आंदोलन में जब उनकी प्रमुख भूमिका सामने आई हालांकि इस समय तक वह बहुत रुग्ण तथा वृद्ध हो चुके थे | 

* लाला लाजपत राय के राजनीतिक विचार:-

                                                                                                लाला जी के राष्ट्रवाद संबंधी विचारों के उद्गम का हम अध्ययन करें तो पाएंगे कि एक तरफ तो वे संसार भर में राष्ट्रवाद की नई उठी लहर  से प्रभावित थे  वहीं दूसरी ओर भारत की अपनी राष्ट्रीय आवश्यकता तत्कालीन भारतीय नीति तथा ब्रिटिश सरकार की ढुलमुल नीति के कारण उनके विचार एक विशेष प्रकार से समन्वित हुए | मूल बिंदु मूल उत्प्रेरण एक ही रही भारत के लिए स्वराज्य आत्मनिर्भरता स्वालंबन देशभक्ति तथा जनसेवा| यूरोप में राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रवादी आंदोलनों का विस्तृत अध्ययन उन्होंने किया था सन 1914 से 1920 के बीज के वर्षों में इंग्लैंड तथा अमेरिका में वह रहे | एशिया के देशों में लालाजी का मानना था कि एक मौलिक एकता स्थापित हो सकती है विशेषकर भारत चीन में जापान में क्योंकि इन देशों में पाश्चात्य प्रभाव सीमित है और इतना नहीं है कि एक तो की संभावना को नष्ट कर सकें भारतीय राष्ट्रवाद के विषय में इनकी मान्यता थी कि वह उभर कर मजबूत हो रहा है उसे पोषण मिल रहा है ब्रिटिश सरकार वे ब्रिटिश कोटर्स द्वारा राष्ट्र वादियों को दी जा रही मौत की सजा ओं काले पानी तथा अन्य अत्याचारों द्वारा लालाजी ने हमेशा राष्ट्र से ऊपर माना राष्ट्र अपने लिए राज्य का निर्माण कर सकता है उसे बदल सकता है इसलिए राष्ट्र की सर्वोच्च है भारत के नागरिकों को राष्ट्रभक्त-  देशभक्त होना ही चाहिए ऐसा उनका मानना था | 

( 1 ) लाला जी एवं उग्रवाद :-

                                                                  भारत राष्ट्रीय कांग्रेस में लाला जी का उदय एक  रूप में हुआ था लेकिन सन 1900 के अंतिम वर्षों में उनके विचारों में उग्र राष्ट्रीयता की शुरुआत हो चुकी थी लाला जी को ब्रिटिश सरकार ने न्याय में कोई विश्वास नहीं रहा था और ना ही मॉडरेट कांग्रेस की प्रार्थना वे पेटीशन की नीतियों में सर का लाला जी को अपनी दयालु और उदार सरकार की स्वयं  बनाई छवि से दिग्भ्रमित करने में सफल नहीं रही लालाजी ने कांग्रेस के प्रथम दशक के कार्यक्रम नेतृत्व नीति सभी में शक्ति व गहन  प्रभाव डालने के सामर्थ्य का अभाव पाया - जनता पर भी सरकार पर भी उन्होंने यह भी महसूस किया कि सावधानी सुधारों के नाम पर सरकार उतना ही देगी जितना स्वयं सरकार के भारत में बने रहने और राज करने  की हित में हो | कांग्रेस की झोली में थोड़ा-थोड़ा कर उतना ही पड़ेगा लालाजी ने देश को समझाया कि हम भारतीय को ताकतवर,  राष्ट्रवादी होना चाहिए | इसके लिए प्रत्येक नागरिक में देशभक्ति एक तो गिर संप्रदायवादी तथा भारतीयता का समभागी  होना जरूरी है आत्मसम्मान-  आत्मनिर्भरता जरूरी है अपने देश में उसकी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए क्योंकि यह वास्तव में गर्व करने लायक है | 

( 2 ) विषयक धारणाएं :-

                                                     ब्रिटिश सरकार ने जनतंत्र को लालाजी भौतिकवादी मानते थे और पसंद नहीं करते थे कि वे यह भी मानते थे कि यद्यपि भारत में इस तरह का जनतंत्र कभी नहीं रहा लेकिन जनतंत्र की अवधारणा रही ही नहीं हो ऐसा भी नहीं था जनतंत्र का तात्पर्य उनके अनुसार जनता द्वारा अपने इच्छा अपने विचार प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्त  कर सकना था और यह भारत में पाया जाता था यही प्रमुख होना चाहिए तंत्र नहीं ब्रिटिश सरकार ने भारत को जैसे अपनी जमीदारी समझ रखा था और ऐसा ही उनका व्यवहार था ऐसा लालाजी मानते थे यह गैर प्रजातांत्रिक व्यवहार तो था ही औपनिवेशिक मनोवृति भी थी भारतवासी अपने लिए स्वतंत्रता  और समानता चाहते हैं केवल कुछ नौकरियां नहीं उन पर कोई ऐसे निर्णय सरकार द्वारा थोपा नहीं जानना चाहिए जिसमें उनकी भागीदारी ने हो | 

• अर्बाह्म लिंकन द्वारा जनतंत्र की परिभाषा:-

                                                                                               जनता की सरकार,  जनता के लिए,  जनता के द्वारा,  | 

( 3 ) लाला जी एवं समाजवाद:-

                                                                      लाला जी की भारत के लिए समाजवाद की जो कल्पना थी वह पश्चिमी समाजवाद से भिन्न थी वे यह मानते थे कि पश्चिमी समाजवाद में जो अच्छाई है वह लेनी चाहिए सभी कुछ नहीं भारत की कमजोर आरती परिस्थिति को समस्याओं को देखते हुए गरीबी शोषण पूंजीवाद खत्म हो उत्पादन के साधनों पर सामूहिक स्वामित्व हो समाजवाद ऐसा हो | सद्दाम भारतीय परिस्थितियों के अनुसार सहानुभूति से मिलकर शोषण में समानता के विरुद्ध लड़े संगठन मजदूरों की सबसे बड़ी आवश्यकता है वह मानते थे समाज में धन का वितरण सम्मान और यह उद्देश्य था परंतु इसके साथ शोषण विहीन समाज के रास्ते में नौकरशाही और बिचौलिया बाधा का काम करते हैं जब तक किए नहीं खत्म होंगे शोषण समाप्त नहीं होगा इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भी राजनीति संगठन सामाजिक जागृति और प्रचार की आवश्यकता उन्होंने प्रतिपादित की तथा उसके लिए मृत्यु पर्यंत अन का काम किया आर्थिक साम्राज्य के प्रश्न पर लालाजी ने गंभीरतापूर्वक विचार किया था केवल राजनीति स्वराज्य से समस्या हल होने वाली नहीं ऐसा भी मानते थे आरती साहू राज्य दूसरे शब्दों में आर्थिक आत्मनिर्भरता भारत के लिए अत्यावश्यक उन्होंने माननी | भारत के चलते हो उद्योगों को ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथ में ले लिया था खेती पर भारतीय जनता की निर्भरता बढ़ती चली गई और गरीबी भी बढ़ती चली गई लाला जी मान देते हैं कि ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण गरीबी कुपोषण एक काल महामारी जैसी समस्या पैदा हुई थी | 

* लाला जी के विचारों का सामाजिक संदर्भ:-

( 1 ) मशीनीकरण की अनिवार्यता:-

                                                                             यद्यपि लाला जी गांधी जी की आरती कार्यक्रम के पक्षधर थे खदर व स्वदेशी में उनकी पूर्ण आस्था थी परंतु उद्योगी की प्रगति और उसमें मशीनीकरण की अपरिहार्यता को वे आवश्यक मानते थे स्वावलंबन  की स्थिरता भी जरूरी थी परंतु उत्पादन में अभूतपूर्व  वृद्धि हो तभी आम जनता को इनका लाभ मिलना संभव होता ऐसा उनका मानना था | 

( 2 ) सामाजिक पुनरुत्थान की संकल्पनाए :-

                                                                                                      लालाजी जातिवाद के सख्त खिलाफ थे राष्ट्रीय एकता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा वह जातिवाद को मानते थे उन्होंने देशवासियों से विशेष का शिक्षित व से अपील की कि वह जातिवाद छोड़कर अछूतों  केर साथ भाईचारे का व्यवहार करें| हिंदू समाज अपनी रूढ़ियों और अंधविश्वासों को तोड़कर यह नए समतावादी समाज की पुर्नरचना करें, इसी दशा में लालाजी ने काम किया धर्म शास्त्र और पुराणों में ही पाया जाता है ऐसी बात नहीं यही सोच वह सही कार्य से भी धर्म होता है ऐसी विशद व्याख्या धर्म की लालाजी ने की | आर्य समाज की वे लाला जी की विचारधारा यह की थी वह बाल विवाह, अछूतप्रथा , सामाजिक समानताओं के खिलाफ थे स्त्री शिक्षा को वह बहुत आवश्यक मानते थे | विधवा_ विवाह को उचित वे सुधारवादी कदम मानते थे | लालाजी मानते थे कि लड़के लड़की को विवाह से पूर्व एक दूसरे को देना चाहिए उस युग के लिए यह बात  निश्चित ही अनोखी थी व्यक्तिगत जीवन में व्यक्ति स्वतंत्र को  उनका कितना समर्थन था | 
                                                                                            

                

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