* अधीनस्थता का सिद्धांत :-
अधीनस्थता की प्रवृति से संबंधित अध्ययनों की शुरुआत सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर 1949 में इकोनामिक कमीशन फॉर लेटिन अमेरिका द्वारा की गई | बाद में इस संप्रदाय पर परंपरागत दो अर्थशास्त्री विचारधाराओं का प्रभाव पड़ा |
( 1 ) लेटिन अमेरिका संरचनावाद |
( 2 ) माकर्सवाद में अधीनस्थता प्रवृति के सिद्धांत का सार केंद्र परिधि परिकल्पना है | जिसका विकास हॉब्सन लेनिन तथा पाल बैरन आदि ने अपने अध्ययन तथा कार्यों से किया | केंद्र तथा परिधि पर आर्थिक विकास के चार्ट पर विकसित तथा विकसित देशों की स्थिति को दर्शाया है इस चार्ट में विकसित तथा संपन्न देश के अंदर में है जबकि यह विकसित देश इसकी परिधि तैयार करते हैं |
अधीनस्थता सिद्धांत बताता है कि केंद्र में स्थित देश परिधि पर स्थित देशों की संपत्ति को अपनी ओर खींचते हैं जिससे परिधि पर स्थित देश और गरीब हो जाते हैं और इस विषय में एक प्रसिद्ध विद्वान एंड गुंडर फेंक ने बलपूर्वक एक स्थान पर लिखा है कि परिधि पर से देशों के आधिक्य का शोषण वर्ग पर आधारित नहीं होता है अपितु यह केंद्र तथा परिधि के देशों के संबंध पर निर्भर करता है इस सिद्धांत का एक अन्य महत्वपूर्ण कथन यह है कि यह सिद्धांत उत्पादन के संबंधों की शक्तियों के विश्लेषण के बजाय विभिन्न देशों के मध्य संबंध बनाने पर अधिक जोर देता है |
* पिछड़ापन और अधीनस्थता :-
यह सिद्धांत विकसित देशों के पिछड़ेपन के कारणों का अध्ययन करते हुए अंकित करती है कि अधीनस्थ बाहरी शक्तियों द्वारा आर्थिक प्रभुत्व का प्रयास या उपनिवेशवाद का नया रूप है अधीनस्थ देश से माना जाता है जिस देश का विकास दूसरे विकसित देशों की अर्थव्यवस्था द्वारा तय किया जाता है अधीनस्थता की शुरुआत अंतरराष्ट्रीय बाजार में विकसित देशों के प्रवेश के साथ शुरू होती है जहां पर उस कुछ प्राथमिक उत्पादनो के निर्यात में विशिष्टता हासिल करवाई जाती है | किसी भी निर्भर देश ने प्राथमिक उत्पादनो से प्राप्त आ बाकी संचे प्रक्रिया के लिए अत्यधिक अनिवार्य है लेकिन वहां के कैंसर के लिए प्रत्येक उत्पादक कुल आयात के अत्यंत लघु भाग का ही प्रतिनिधित्व करता है यह उत्पादक अन्य देशों से भी उपलब्ध हो सकते हैं |
अत : केंद्रीय देशों की अर्थव्यवस्था में होता परिवर्तन परिधि पर स्थित देशों की अर्थव्यवस्था पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव डालता है |
दूसरा अधीनस्थता का प्रमुख कारण अधीन देश द्वारा उत्पादित की जाने वाली सामग्री में विदेशियों का मालिकाना हक है ऐसी स्थिति में निर्भर देश का विकास या उसके सीएम में वृद्धि केंद्र में स्थित देश की सफलता पर निर्भर करती है इसमें वस्तुओं का उत्पादन उत्पादन जीवन चक्र मंडल के आधार पर होता है इससे मंडल के अनुसार पहले तो उत्पादन ओं को विकसित देशों में उत्पादित तथा विक्रय किया जाता है | तंदुपरांत इसका उत्पादन तो विकसित देशों में होता है पर उनकी बिक्री अधीनस्थ पिछड़े देशों में की जाती है और अंत में इन वस्तुओं का उत्पादन भी उन्हीं अधीनस्थ परिधि के देशों में ही किया जाता है उत्पादन परिधि पर स्थित गरीब देशों में तभी किया जाता है जब इस में प्रयोग की जाने वाली तकनीक की नहीं नहीं रह जाती है |
*: स्थानीय अभिजन की भूमिका:-
गरीब देशों की सामान्य जनता विकसित देशों द्वारा उत्पादित इन वस्तुओं का उपभोग नहीं कर पाती है इनमें इन उत्पादकों के प्रति विरोध की तीव्र भावना होती है इस समस्या से निजात पाने हेतु विकसित देशों के लोग परिधि पर स्थित गरीबो देश के अभिजात वर्ग से पहल कर अपने संबंध बनाते हैं जिसका दौहरा उद्देश्य होता है |
( 1 ) केंद्र पर स्थित विकसित देशों के उत्पादन को स्थानीय सहयोग मिलता है तथा |
( 2 ) निर्भर देश भी इन विलासी उत्पादकों के लिए सीमित मात्रा में ही सही परंतु बाजार उपलब्ध करवाते हैं |
यह दोहरा पन पिछड़े देशों की समस्याओं को और बढ़ाते हैं क्योंकि इस समय तक अपने ही देश में एक ऐसे शक्तिशाली लॉबी भी का उदय हो गया है जिसका ने केवल उत्पाद तकनीकी आर्थिक तथा राजनीतिक विचारों के संबंध में सामान्य जनमानस से अलग या विरोधी विचार होते हैं बल्कि कुछ समय पश्चात सरकार के स्वरूप तथा विदेश नीति तक कोई भी एक लॉबी भी प्रभावित करती है | जैसे जैसे पिछड़े देशों के अभिजात वर्ग तथा सामान्य वर्ग में विषमता बढ़ती जाती है वैसे-वैसे अभिजात वर्ग का लगा विदेशी पूंजी की ओर बढ़ता जाता है पिछड़े देशों के अभिजात वर्ग के लोग काफी सुशिक्षित होते हैं तथा विकसित देशों के संबंध में रहने के कारण वे उन्हीं देशों के जैसे मूल्यों को स्वीकार कर लेते हैं तथा वे इतने संपन्न होते हैं कि उनका जीवन स्तर भी विकसित देश के लोगों जैसा होता है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभिजात वर्ग के आपसी संबंधों ने पिछड़े देशों की आंतरिक संरचना में बिखराव पैदा कर दिया है जैसा कि लेटिन अमेरिका देश नियर के तथा लंदन में रहकर विलासिता पूर्ण जीवन जीरे पढ़े-लिखे अभिजात वर्ग के लोग इन देशों के लिए स्वतंत्र बाजार का नारा देते हैं जबकि यह देश अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए अभी बिल को नव जाते यद्यपि आरंभ में कुछ समय के लिए ऐसा लगता है जैसे स्थानीय अभिजात वर्ग के लोग केंद्र स्थित विकसित देशों की तुलना में कुछ फायदे में हो रहे हैं या उनकी निर्भरता के अंदर पर कम हो रही है परंतु इस अभिजात वर्ग में विकसित देशों के लिए अपनी सामान्य जनता से ज्यादा सामीप्य प्रभाव रखता है | पिछड़े देशों में अभिजात वर्ग की उत्पत्ति के वही कारण होते हैं जो केंद्र में विकसित देशों के स्थापित होने होने के होते हैं जैसे अन्य उत्पाद को का पहले इस अभिजात वर्ग द्वारा स्वयं उपभोग किया जाता है और फिर पूंजी में नहीं तकनीकी द्वारा इन उत्पादकों को उत्पाद कर सामान्य जनता में उन्हें बेचने का प्रयास करते हैं इस अभिजात वर्ग का संगठन काफी मजबूत होता है तथा वे उनका जीवन स्तर जो कि विकसित देशों के स्तर पर होता है सामान्य जनता के लिए उस स्तर तक पहुंचने के लिए प्रेरक का कार्य करते हैं |
* बहुराष्ट्रीय निगमों की कार्यप्रणाली:-
बहुराष्ट्रीय निगमों को उन फर्मों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो किसी वस्तु के उत्पादन तथा वितरण की प्रणाली को एक से अधिक देशों में नियंत्रित करती है यह बहुत ही विशाल और गतिशील उदयम है जो विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में संगन होती है इन बहुराष्ट्रीय निगमों को मुख्यालय से कुछ व्यक्तियों के समूह द्वारा दुनिया भर में संचालित किया जाता है तथा वह वहीं से अपने अधिकारियों पूंजी तथा बाजार पर नियंत्रण रखते हैं इन नियमों की सफलता में उनकी महत्वपूर्ण जी विकसित तकनीकों तथा उनके ब्रांड की महत्वपूर्ण भूमिका होती है यह निगम पूरी दुनिया को कहीं तरीकों से प्रभावित करते हैं जैसे बहुराष्ट्रीय निगम पूरी दुनिया के आरती निर्णय को पर अपना प्रभाव रखते कि कब कहां क्या और कितना उत्पादन उत्पादित किया जाए अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में निगमों का आकार और सघनता वहां के संसाधनों के उपयोग तथा नियंत्रण को सीधे प्रभावित करते हैं |
* बहुराष्ट्रीय निगमों के उदय की महत्वपूर्ण बातें :-
( 1 ) अंतर्राष्ट्रीय परिवहन में लागत की कमी |
( 2 ) अंतरराष्ट्रीय संचार की लागत में कमी |
( 3 ) प्रमुख औद्योगिक नवाचारों को आरंभ करने की लागत में बढ़ोतरी |
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सार्वभौमीकरण की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है क्योंकि समय विभिन्न प्रकार के आयतों से इस विषय के विभिन्न देश आपस में जुड़े जिसकी लागत भी अपेक्षाकृत कम थी शीत युद्ध के कारण यह है विश्व दो खंडों में विभाजित था परंतु इसमें से प्रतिय करने के देश आपस में बहुत मजबूती से नहीं जुड़े थे संचार साधनों में अप्रत्याशित वृद्धि के कारण विभिन्न देश आपस में बड़ी तेजी से करीब आए दूरसंचार के विस्तृत जाल से ग्लोबलाजेशन के पक्ष में इन फर्मों का विकास हुआ विस्तृत पूंजी संसाधनों के कारण इन निगमों का परिचय एक देश से दूसरे देश में तेजी से हुआ तथा उपलब्ध वित्तीय व्यवस्था से इन नेताओं से लाभ उठाया क्योंकि इन बहुराष्ट्रीय निगमों ने सती कच्ची सामग्री कहीं एक देश से खरीदी उत्पादन वहां किया जाए श्रम सस्ता था वह निर्यात उन देशों को दिया जा उनकी मांग अधिक कि इन नियमों के विस्तृत संसाधनों व आकार तथा सरल पहुंच के कारण इनके शोध और विकास विभाग में उन्नति के लिए बड़ी तत्परता से नए-नए चित्र खोजे तथा नए नए उद्योगों को लगाने में जो भारी खर्च आया उस इन बहुराष्ट्रीय निगमों ने उठाया |
* बहुराष्ट्रीय निगम और निर्भरता:-
नियमों की अपनी शक्तियों के नकारात्मक प्रयोग के कारण नियमों को विषम विकास का कारण माना जाता है निर्भर देशों में इन बहुराष्ट्रीय निगमों को दम घोंटू का कारण भी माना जाता है यह निगम दुनियाभर के बाजार के उत्पादन संघ है जो विषम आए तथा विकासशील देशों में रोजगार के अवसरों को नष्ट कर गरीबी बढ़ाते हैं और इन सब का कारण इन बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा प्रयोग की जानेवाली अनुपयुक्त तकनीकी बहुराष्ट्रीय निगम उन क्षेत्रों में अधिक प्रभावी है जिन क्षेत्रों में संशोधन को चाहिए लोगों के हाथ में सीमित है जैसे कंप्यूटर तथा मेल क्षेत्र | 1980 में दुनिया भर के तेल में प्रगति गैस के 273 भाग पर इन दिनों का नियंत्रण था |
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