Tuesday, 12 November 2019

प्रमुख भारतीय मुस्लिम राजनीतिक विचारक एवं परंपरागत मुस्लिम राजनीतिक विचारधारा



* प्रमुख मुस्लिम विचारकों के वैचारिक पक्षों की विवेचना:-

                                                                                                                                   हुमायूं कबीर  के अनुसार लगभग हजार वर्षों के राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, एवं सांस्कृतिक पारंपरिक संपर्क के उपरांत भी मुसलमान अपने व्यक्तित्व की पृथकता को समाप्त नहीं कर पाये | एक अन्य लेखक ने भी यह विचार व्यक्त किए हैं कि मुसलमान पूरे तौर से वर्तमान प्रजातंत्र व्यवस्था के बराबर के साझीदार नहीं बन पाए हैं और उनके हीन भावना आज भी विद्यमान है भारतीय धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र व्यवस्था के वास्तविक स्वरूप जानने हेतु मुस्लिम राजनैतिक मान्यताओं का ज्ञान आवश्यक है | भारतीय जनसंख्या का लगभग 10% सबसे बड़ा अल्प वर्ग मुसलमानों का है संसार के लगभग 28 देशों में जहां-जहां मुसलमान बसे हैं उनमें से इंडोनेशिया बंगाल देश के पश्चात तीसरी सबसे बड़ी जनसंख्या भारतीय मुसलमानों की एक कर्मा अनुसार पाकिस्तान की जनसंख्या भारत के पश्चात आती है | वैसे तो किसी भी मुस्लिम विचारों को राजनैतिक चिंतन कहना कठिन है क्योंकि अधिकतर नेताओं व विचारकों ने परिस्थिति वंश अपने विचार व्यक्त किए हैं | मुख्य बात तो यह है कि वर्तमान मुस्लिम विचारधारा में हमें धर्म के राजनीति पर व्यापक प्रभाव एवं धर्म निरपेक्षता उदारवाद, तर्क, आधुनिकतावाद आदि तथ्यों का प्राय:अभाव ही  मिलता है | हम मुस्लिम राजनीतिक विचारधारा का वर्ण 19वी एवं बीसवीं शताब्दीयों के प्रमुख विचारकों के  प्रतिनिधि विचार की के आधार पर करेंगे | अबे मुस्लिम राजनीति विचार आज भी गतिमान तथा विकसित विषय है इस विचारधारा की मुख्य समस्या इसके आधुनिकीकरण करने की है यदि सर सैयद का पुनर्जागरण संबंधी प्रयोग सफल हो जाता तो संभवत इसके स्वरूप कुछ और ही होते मुस्लिम उदारवाद में यद्यपि धर्म और राजनीति को पृथक रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास किया | सर सैयद ने राष्ट्रवाद की भी कल्पना की किंतु राष्ट्रीय कांग्रेस संस्था का विरोध भी किया बीसवीं शताब्दी में विकार उल मुल्क, मौलाना मोहम्मद अली,  मौलाना आजाद आदि ने मुस्लिम,   उदारवादी विचारों में अभिवृद्धि की | विशेषकर आजाद ने राष्ट्रवाद प्रजातंत्र और समाजवादी विचारों का प्रतिपादन किया फिर भी मुस्लिम समाज को भी अपने विचारों के अनुरूप बनाने में पूर्णतया सफल नहीं हो  सके | 

स्वतंत्र भारत के चिंतन में जहां एक और मुस्लिम समाज में अपने आप को राष्ट्रीय धारा में समाए जाने की भावना है वहां दूसरी ओर वे हिंदू बहुसंख्यक वर्ग के प्रभुत्व से संशकित हो अपनी पृथकता को बनाए रखे हैं जिसका उदाहरण उसके परंपरागत व्यक्तिगत विधि से चिपके रहने की भावनाएं इसके अतिरिक्त यदा -कदा होने वाले संप्रदायिक दंगों से भी मुसलमानों में धर्मनिरपेक्षता अथवा प्रजातंत्र के विचारों को ठेस पहुंची है | भारतीय मुस्लिम राजनीतिक चिंतन का आधार कुरान व हदीस पर  ही है किंतु फिर भी प्रति विचारक ने इन्हें परिस्थिति में अपनी मान्यता के आधार पर अपने ही दृष्टिकोण से इन्हें प्रस्तुत किया है | 

* परंपरागत मुस्लिम राजनीतिक विचारधारा :-

                                                                                                         इस्लाम का भावार्थ ईश्वर के प्रति समर्पण है शाहरस्तानी ने पैगंबर मोहम्मद साहब के एक संवाद के प्रसंग में काहे की इस्लाम ईश्वर वे उसके पैगंबर के प्रति आस्था पांच बार नमाज पढ़ने दस दिन रमजान में रोजे रखने तथा मक्का की हज यात्रा में निहित है  परंपरागत मुस्लिम राजनैतिक विचारधारा पूर्णतः मजहब पर ही  आधारित है बिना ईश्वर में पूर्ण आस्था के किसी प्रकार की मुस्लिम राजनीति कल्पना संभव नहीं हो सकती कुरान की शहादत के अनुसार मनुष्य के सामाजिक एवं राजनीतिक संबंधों का निर्माण व्यक्ति व ईश्वर के मध्य एक समझौते निसाक पर आधारित है | इस्लाम की यह मान्यता है कि बिना ईश्वरीय कृपा के मनुष्य के अस्तित्व की कल्पना भी संभव नहीं है तथा बिना ईश्वर में आस्था रखें किसी भी प्रकार के सामाजिक स्वरूप की स्थापना भी नहीं हो सकती इस्लाम के मतानुसार ईश्वर एक है तथा मोहम्मद उनके पैगंबर के रूप में है तथा पुरानी सूर्य वाक्य के रूप में मुसलमानों के लिए सर्वमान्य है | इस्लामा अनुसार ईश्वर के प्रति आस्था रखने वालों के द्वारा आदर्श समाज उम्मा की स्थापना होती है यह उम्मा सामूहिक मातृत्व की भावना पर आधारित होते हुए भी इसकी शक्ति के स्त्रोत को ईश्वर आज्ञा में ही स्वीकार किया गया है | 

* इस्लामी विचारधारा के चार परंपरागत स्त्रोत :-

      ( 1 ) कुरान | 

     ( 2 ) हदीस  | पैगंबर साहब द्वारा प्रतिपादित कहावतें परंपरा रीति-रिवाज आदि | 

     ( 3 ) इज्मा  ( विभिन्न उलमा ओ अर्थात धर्म - विदो की सर्वे सम्मतियाँ ) तथा | 

     ( 4 ) कियास | ( विभिन्न कानूनी तार्किक के मान्यताएं एवं न्याय संबंधी विचार ) 

 इस्लाम में परंपरागत राजनीति विचारधारा को मूल्य थे कुरान सुन्ना  पैगंबर के आदर्शवादी व्यवहार एवं शरिया  पर ही आधारित है इस्लाम ने नैतिक एवं राजनीति विचारधारा के अतिरिक्त एक नवीन सामाजिक व्यवस्था को भी जन्म दिया मुस्लिम परिवार पितृ -प्रधान  बहुविवाहवादी बने  |  स्त्री की अपेक्षा पुरुष को अधिक महत्व दिया गया विवाह एक समझौते के रूप में स्वीकार किया गया तथा चार पत्नियों को रखने तक की अनुमति दी गई यद्यपि यह व्यवस्था आजकल मिटती जा रही है अनेक प्रतिबंधों के विकसित होने के उपरांत भी आज भी पति इकतरफा रूप से पत्नी को तलाक दे सकता है मुस्लिम उत्तराधिकार व्यक्तिगत विधि के अनुसार पुत्री के 1/3 अथवा पुत्र के भाग का आधा विधवा को1/8 शीशा प्राप्त करने का प्रावधान है | 


  * भारत तथा इस्लाम :-

                                                      16 जुलाई 1622 ईस्वी हिजरी सन का प्रथम दिवस है तत्पश्चात जिस तीव्र गति  से संसार में इस्लाम का प्रसार  हुआ है भारत में मुस्लिम आबादी इतिहास की एक महान घटना है स्मरणीय तथ्य यह है कि जिस रूप में इस्लाम भारत में आया वहां उसका मौलिक स्वरूप नहीं था राजतंत्र शान शौकत  विलासिता दास प्रथा आदि का विकास हो चुका था भारत में राजा को ईश्वर के प्रतिनिधि के स्वीकार किया गया तथा सबल केंद्रीय सरकार की स्थापना की गई जिसमें जनता के किसी भी प्रकार के कोई अधिकारों का कैसा भी अस्तित्व नहीं था तथा कठोर सैनिक वाद के आधार पर मुस्लिम राजनैतिक व्यवस्था का संचालन किया गया अकबर महान जैसे शासनकाल के अपवाद के अतिरिक्त सारे ही मुस्लिम काल में विशेषकर बहुसंख्यक हिंदू जनता के लिए तो किसी भी प्रकार के राजनैतिक अधिकारों का अस्तित्व ही नहीं था कुछ लेखकों ने मुस्लिम राजतंत्र के शरीयत पर शासन तंत्र के संचालन के तर्क को प्रस्तुत कर भारतीय मुस्लिम शासन को सीमित प्रजातंत्र के स्वरूप बताया है किंतु यह वास्तविकता नहीं है क्योंकि मुसलमान राजाओं की शक्ति के मंत्री परिषद दरबारी और यहां तक कि उलमा वर्ग भी सीमित नहीं कर सके इस संदर्भ में अलाउद्दीन खिलजी का कथन राजा की स्थिति का सही रूप चित्रित करता है कि मैं नहीं जानता है कि क्या वैध या अवैध है  | 

* प्रमुख मुस्लिम राजनीतिक विचारक :-

 ( 1 ) सर सैयद अहमद खान और आधुनिकता ( 1817 - 98 ): -

                                                                                                                                                   सर सैयद अहमद खान भारतीय मुसलमान सुधारकों ने महानतम थे वे पूर्णतया अपने युग के शिशु थे मुस्लिम समाज में पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित होकर उन्होंने उदारवादी दृष्टिकोण के आधार पर पुनर्जागरण किया उन्होंने नई का अर्थ केवल राजनीतिक ही नहीं वरन सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था के पुनर्निर्माण के रूप में किया उनका तत्कालीन मुस्लिम समाज से आग्रह था कि वह बदलते हुए वातावरण को समझे तथा युग की चुनौती स्वीकार करके अपने जीवन दर्शन को यह परिवर्तित करें सर सैयद अहमद वर्तमान मुस्लिम राजनैतिक सामाजिक विचारधारा के अग्रदूत थे यद्यपि मुस्लिम नवजागरण का शुभारंभ अकबर महान ने किया था मुगल साम्राज्य के पतन के पश्चात शाह वली उल्लाह तथा उनके मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र शाह अब्दुल अजीज तथा शिष्य मौलाना सईद अहमद ने इस कार्य को गतिमान किया इनका ध्यान में छात्रा अक्टूबर 1817 को दिल्ली के एक सम्मानित परिवार में हुआ पैगंबर मोहम्मद साहब इन की वंशावली से संबंधित थे मुगल सम्राट शाहजहां के काल में इनके पूर्वज भारत आए इनकी प्रारंभिक शिक्षा परंपरागत आधार पर ही हुई थी प्रमुखता उनका जीवनकाल चार भागों में विभाजित किया जा सकता है | 

 जीवन काल भागों में विभाजित :-

 ( 1 ) शिक्षा दीक्षा काल ( 1817 -1837 ) 

 ( 2 ) ईस्ट इंडिया कंपनी में सफलतापूर्वक सेवा काल ( 1837 - 57 ) 

 ( 3 ) ( 1857 - 1877 ) काल में उन्होंने न्यायिक पद पर कार्य किया तथा मुस्लिम शिक्षा के संबंध में अथक  चिंतन किया ( 18 69 - 70 ) मैं वे इंग्लैंड गये | 

 ( 4 ) अपने अंतिम चरण ( 1877 - 1898 ) मैं उन्होंने अपना संपूर्ण समय धार्मिक राजनैतिक तथा शैक्षणिक कार्यों में लगाया  | 

( 2 ) मौलाना मोहम्मदअली तथा मुस्लिम अध्यात्मवाद ( 1878 - 1931 ) :-

                                                                           उन्होंने एक और जहां आधुनिकता वे वैज्ञानिकता का समर्थन किया वह दूसरी ओर इस्लामी मूल्य व मान्यताओं के प्रति आस्था को बनाए रखने पर बल दिया एक प्रकार से वह भी अलीगढ़ आंदोलन के प्रभाव स्वरूप उत्पन्न परिस्थितियों के चिंतन थे उनके द्वारा स्थापित जामिया मिलिया की स्थापना से उनकी अलीगढ़ स्वरूप के विरुद्ध कल्पना करना उचित नहीं होगा लेकिन वह पाश्चात्य सभ्यता के अंधविश्वास नेता के विरोधी थे एक और तर्क सत्य की खोज के समर्थन थे वाह दूसरी और परंपराओं के विरुद्ध के हामी नहीं थे उनका विश्वास था कि शिक्षा राज्य द्वारा संचालित नहीं होनी चाहिए यह थे पी उन पर सर सैयद का गहरा प्रभाव था और इसलिए उन्होंने जामिया मिलिया के माध्यम से शिक्षा में आधुनिकतावाद और परंपरावाद समन्वय किया | 

( 3 ) मोहम्मद इकबाल ( 1876 - 1938 ) :-

                                                                                               बोलते एक दार्शनिक और यह कवि के रूप में इकबाल इकबाल के गायक थे तथा उन्होंने पतन की दलदल से मुसलमानों को निकाल कर उनके आत्मा विश्वास आत्मा सम्मान तथा सृजनात्मक संघर्ष के पथ पर आगे ले चलने का प्रयास किया वह पूर्णत :  इस्लामी परंपरावादी थे तथा कुरान उनकी प्रेरणा का स्त्रोत था उनकी मान्यता थी कि शताब्दियों की परंपरा और विवादों के घेरे में इस्लाम के मौलिक स्वरूप को धूमिल कर दिया है तथा उन्होंने बेचैन मुसलमानों में इस्लामिक चेतना के आधार पर नव संदेश दिया | 

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