Wednesday, 13 November 2019

पराराष्ट्रीयता, अंतनिर्भरता अर्थ एवं प्रकृति एवं अंतरराष्ट्रीय कानून एवं अंतर्राष्ट्रीय सरकारी संगठन


* पराराष्ट्रीयता का अर्थ :-

                                                          पराराष्ट्रीयता अथवा अधिराष्ट्रीयता की विभिन्न एवं जटिल परिभाषाएं दी गई है जिनसे पराराष्ट्रीयता की कुछ विशेषताएं स्पष्ट होती है  जैसे यह राष्ट्रीय सीमाओं के पार वस्तुओं सूचनाओं के विचारों का संचलन है | जिसमें सरकारी करता हूं कि ने तो महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष सहभागिता होती है और न ही सरकारी नियंत्रण | पराराष्ट्रीयता संपर्क एक सरकार में एक गैर सरकारी विदेशी कंपनी के बीच हो सकता है और आवश्यक रूप से इसमें कम से कम एक पक्ष सरकार या अंतरराष्ट्रीय अंतर सरकारी संगठन नहीं होता है अत : पराराष्ट्रीय दृष्टिकोण से स्पष्ट है कि संप्रभुता राष्ट्रीय सीमाओं के विचार व विश्व व्यवस्था में सरकारों के मध्य अंतर संबंधों का महत्व पहले जैसा नहीं रह गया है प्रत्येक राज्य अधिक वित्तीय भेद्य बना है और बाह्य प्रभाव के लिए खुल गए हैं घरेलू राजनीति में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मध्य अंतर की रेखाएं भी सीन होती जा रही है भेद्यता एवं संबंधों के इस नए प्रतिमान में गैर राज्यीय  कर्ताओं की भूमिका विशेषकर अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों की सहभागिता मैं भारी वृद्धि हुई है राज्य सरकारों को अनदेखा कर सीधे घरेलू पर्यावरण पर प्रभाव डालने वाली अंत क्रियाएं भी बढ़ी है एवं जटिल भी हुई है उप राष्ट्रीय और राज्य अंतर्गत विभिन्न हित समूह द्वारा राज्य सरकार को अनदेखा कर राज्येतर संबंध स्थापित करने की प्रवृत्ति भी बड़ी है गैर सरकारी संगठन एवं उप राष्ट्रीय करता राज्य रूपी कर्ताओं से बहुत भिन्न होते हैं और राज्य ही कर्ताओं के स्वतंत्र व्यवहार भी करते हैं कुछ विद्वानों का तो तर्क है कि विश्व में प्रभाव हुए प्राधिकार का स्पष्ट पदसोपान नहीं है राज्य को सर्वाधिक शक्तिशाली और उप राष्ट्रीय कर्ताओं को कम शक्तिशाली नहीं माना जा सकता है और इसी कारण से सदैव ही राज्य को बहुराष्ट्रीय कंपनियों या अन्य समूह के ऊपर नहीं रखा जा सकता है इस पराराष्ट्रीय दृष्टिकोण के अनुसार गैर राज्यकर्ता अंतरराष्ट्रीय राजनीति को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं  किसी राज्य की घरेलू अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है और किसी राज्य की घरेलू आरती नीतियां व अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित कर सकती है इसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था घरेलू राजनीति में अंतरराष्ट्रीय राजनीति घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है इस अंत निर्भरता से रिजिंस के द्वारा एवं राज्य वे गैर राज्यीय कर्ताओं की अंत की रिया से भी सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है | 


* विश्व स्तर पर पराराष्ट्रीय अंतक्रियाओ के परिणाम :-


 ( 1 ) पराराष्ट्रीय संबंधित विभिन्न कर्ताओं के मध्य दृष्टिकोण में परिवर्तन लाता है सामाजिक एवं सांस्कृतिक बंधनों को समाप्त कर पूर्वाग्रहों को समाप्त कर समझ में दृष्टिकोणो  में नमनीयता  उत्पन्न करता है   | 

 ( 2 )  यह अंतरराष्ट्रीय बहुलवाद को प्रोत्साहित करता है घरेलू राजनीतिक प्रक्रियाओं एवं अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के मध्य संबंध जोड़ता है नितिन निर्णय निर्माण प्रक्रिया में अधिक हितों को संबद  करता है अधिक राष्ट्रीय अभिजन विषय के दूसरे अभी जनों के संपर्क में आते हैं | 

 ( 3 )  पराराष्ट्रीय संपर्क पर इस पर अब शिक्षाओं को प्रदर्शित करता है और दीर्घकाल में अंतर सामाजिक विवादों के कुछ कारणों को दूर कर सकता है अन्य समाजों पर उनकी उत्पादकता और निर्माण सकती कि उनकी अद्वितीय पर विश्वास उत्पन्न किया जा सकता है  | 

 ( 4 ) परा राष्ट्रीयता अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के उन भागों पर भी अधिकारी प्रभाव डालती है जो राज्य केंद्रित बने हुए हैं विशेषकर व्यक्ति के मध्य संबंधों में स्थायित्व लाकर अंतर सामाजिक निर्भरता में वृद्धि कर सरकारों के शांतिपूर्ण संपर्कों में वृद्धि कर और प्रभाव के नए क्षेत्रों को विकसित कर | 

( 5 ) पराराष्ट्रीय संबंधों के  संस्थानीकरण से नये प्रभावी स्वायत्त या अर्द स्वायत कर्ताओं के अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं में विकसित होने की संभावना होती है |   

* बहूकेंद्रवादी  मान्यताएं :-

( 1 ) गैर राज्यीय कर्ता अंतरराष्ट्रीय संबंधों में महत्वपूर्ण करता है और उनके महत्व की अपेक्षा नहीं की जा सकती जिस प्रकार अंतरराष्ट्रीय संगठन स्वयं भी स्वतंत्र कर्ता के रूप में कार्य करते हैं | 

( 2 ) दूसरी मान्यता के अनुसार राज्य एक ही कार्यकर्ता नहीं है और यथार्थ वादियों द्वारा ऐसा सोचना राज्य अंतर्गत राजनीति के सारे को छिपाना है राज्य की कल्पना सदैव सुसंगत तरीके से सोचने वाले निश्चयात्मक प्राणी  के रूप में करना भी कल्पना के सिवाय कुछ नहीं है | 

( 3 ) बहूकेंद्रवादी दृष्टिकोण राज्य को विवेकशील करता नहीं मानते हैं विखड़  राज्य की कल्पना के तार्किक रूप के अनुरूप यह मान्यता है कि विदेश नीति निर्माण प्रक्रिया विभिन्न कर्ताओं के मध्य संघर्ष सौदेबाजी वे समझौते का परिणाम है | 

*: अंतरनिर्भरता का अर्थ :-

                                                       अंतनिर्भरता सभी व्यवस्थाओं की विशेषता है |  विश्व राजनीति को भी व्यवस्था के रूप में देखा जा सकता है एक राज्य और उसकी विदेश नीति प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय राज्यों में अन्य अंतरराष्ट्रीय कर्ताओं की व्यवस्था एवं उनकी परस्पर संबदता पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए इसके अंतर्गत विभिन्न तत्वों के वितरण सम्मिलित हो सकते हैं जिस प्रकार की यह ज्ञात करने का प्रयास किया जाए की संपत्ति अथवा सैनिक क्षमता सभी राज्यों के मध्य किस प्रकार वितरित है व्यवस्था आधारित चिंतन पूर्णता में विश्वास करता है तथा विभिन्न कर्ताओं के मध्य अंत क्रिया के प्रारूप को रेखांकित करना चाहता है | 

* अंतनिर्भरता से तात्पर्य :-

                                                        व्यवस्था के भाग या राज्य में हुई कोई घटना या परिवर्तन के परिणाम स्वरूप व्यवस्था के अन्य भागों में राज्यों में भी कुछ परिवर्तन आवश्यक होना | 

* अंतरनिर्भरता में वृद्धि कारक :-

                                                              अंतरराष्ट्रीय राजनीति में द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत अंतनिर्भरता के तत्व को महत्व दिया गया हालांकि अंते नर्भरता का तत्व पूर्व में भी विद्यमान था इस प्रकार अंत्य निर्भरता की स्थिति में उस स्थिति की  संज्ञानता दोनों का ही उल्लेख महत्वपूर्ण है इसी प्रकार कुछ स्थितियां तभी नहीं उत्पन्न हुई है विशेषकर कुछ प्रायोगिक की विकास हो जिस प्रकार आणविक शक्ति के विकास में मां शक्तियों की सैनिक अंतनिर्भरता व सैन्य भेद्यता  को बढ़ा दिया है | इसी प्रकार संचार भी आवागमन ने व्यक्ति की अन्य अंतक्रियाओं की क्षमता में वृद्धि की व इस प्रकार की अंत क्रियाओं के संबंध में ज्ञान प्राप्त करने के स्त्रोत में भी वृद्धि हुई आज दूर स्थित देशों में होने वाले क्रियाकलाप भी व्यक्ति देख सकता है | 

*: अंतरराष्ट्रीय कानून एवं अंतर्राष्ट्रीय सरकारी संगठन:-

                                                                                                                    विश्व की वर्तमान स्थिति में परा राष्ट्रीय प्रकृति के मुद्दों विषयों एवं समस्याओं में नियंत्रण वृद्धि हो रही है इसके समाधान के लिए विभिन्न राज्यों का सहयोग आवश्यक है राज्य राष्ट्र हित में सामान्यतः कार्य करते हैं किंतु पारा राष्ट्रीय प्रकृति की समस्याओं के कारण उन्हें सामूहिक दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखकर कार्य करना विषय के राज्यों के मध्य सहयोगात्मक अंतः क्रिया के लिए आवश्यक यंत्री विधि के रूप में अंतरराष्ट्रीय कानून विद्यमान है सामान्य थे अधिकांश राज्य अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करते हैं अंतरराष्ट्रीय कानून राष्ट्रीय कानूनी की ही भांति राज्य के स्वेच्छिक व्यवहार पर बाध्यताये आरोपित करता है फिर भी अंते निर्भरता के कारण और व्यक्तियों वस्तुओं सेवाओं में सूचना के सुगम्य आधार प्रदान के लिए राज्य अंतरराष्ट्रीय कानून से व्यवहार को नियंत्रित करना अपने हित में मानते हैं अंतरराष्ट्रीय सरकारी संगठनों की संख्या में वृद्धि वर्तमान व्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय कानून के बढ़ते महत्व का एक स्त्रोत है | 

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