* विनायक दामोदर सावरकर का जीवन परिचय:-
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 मैं नासिक जिले के भागूर नामक गांव में हुआ था इनके पिता दामोदर पंथ सावरकर ने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी परंतु वह संस्कृत के भी अच्छे विद्वान थे विनायकी माता राधाबाई बड़ी धार्मिक महिला थी सावरकर चितपावन ब्राह्मण थे इसी जाति में लोकमान्य तिलक का जन्म हुआ था विनायक दामोदर सावरकर 6 वर्ष की अवस्था में ही स्कूल में दाखिला कर दिया गया था प्रारंभिक शिक्षा की समाप्ति के बाद उन्होंने नासिक के हाई स्कूल में प्रवेश किया उसी समय महाराष्ट्र में ऐसी घटनाएं हुई जिनके कारण बालक विनायक के विचार सरकार विरोधी और क्रांतिकारी बन गए उस समय यह सफाई के और रोग निवारण के नाम पर सरकार ने जनता पर बड़े अत्याचार किए सैनिकों ने घरों को आग लगा दी लोगों को बेघरबार कर दिया और स्त्रियों के साथ अत्याचार किया लोकमान्य तिलक ने इसका विरोध किया परंतु सरकार तो अत्याचार पर तुली हुई थी इसलिए कोई सुनवाई नहीं हुई दामोदर पंत चापेकर को पुना के दविड़ भाइयों ने पकड़वाया था उनको चापेकर के छोटे भाई ने गोली से मार डाला तब इस छोटे भाई को भी फांसी का दंड दिया तब तो सावरकर के हृदय में जवाला धधक उठी उन्होंने सन 1900 मैं देशभक्त नवयुवकों का एक मंडल बनाया जिसका नाम मित्र मेला रखा फिर यही मित्र मेला 1904 मैं अभिनव भारत सोसायटी कहलाने लगा और गुप्त रूप से इसकी शाखाएं पश्चिम भारत और मध्य भारत में फैल गई और इंग्लैंड में इसने गदर पार्टी का रूप धारण किया जिसकी शाखाएं हैं फ्रांस जर्मनी अमेरिका सिंगापुर और ब्रह्मा में फैल गई | मित्र मेला का साप्ताहिक सभाओं में उग्र राजनीति भाषण हुआ करते थे | सावरकर के उग्र भाषणों से पुना में हलचल सी मच रही थी सावरकर और उनके साथी स्वदेशी के प्रबल प्रचारक थे और बंग - भंग के बड़े विरोधी थे सावरकर ने विदेशी चीजों के बहिष्कार का झंडा खड़ा किया और सुझाव दिया कि अंग्रेजी कपड़ों का बहिष्कार ही नहीं उनकी होली मनानी चाहिए1905 मैं उन्होंने पुना में इस विषय में लंबा जुलूस निकाला जिसमें तिलक भी कुछ दूर तक शामिल हुए यह गाड़ी भर विदेशी कपड़ों को जलाया गया अब सावरकर ने मित्र मेला का अभिनव भारत नाम रखा यह संगठन मेजिनी के यंग इटली के ढंग का था |1905 मे बी. ए. पास करने के बाद सावरकर कानून पढ़ने के लिए मुंबई गई | वहां भी विविध कॉलेजों में उन्होंने उग्र राजनीति सभाएं बनाई इस समय यह प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा लंदन में रहते थे उन्होंने ऐसे विद्यार्थियों को जो यूरोप में अध्ययन करना चाहते हो और जो सरकारी नौकरी करने की अभिलाषा ने रखते हो कुछ छात्रवृत्ति यां देना चाहा सावरकर ने इसके लिए प्रार्थना पत्र भेजा और लोकमान्य तिलक ने उनकी सिफारिश की सावरकर को एक छात्रवृत्ति मिल गई और 1906 को व मुंबई से इंग्लैंड के लिए रवाना हो गए जाने से पहले तिलक और परजपे अपने ने सावरकर को अपने साथ भोजन कराने को बुलाया और उनको आवश्यक सलाह दी इसी वर्ष ढाका में मुस्लिम लिंग की स्थापना हुई |
* इंडिया सोसाइटी:-
सन 1906 मैं सावरकर ने लंदन में फ्री इंडिया सोसायटी शुरू की और भारतीय विद्यार्थियों का संगठन करने लगे वाह भाई परमानंद लाला हरदयाल और वीरेंद्र नाथ चट्टोपाध्याय जो सरोजिनी नायडू के भाई थे सावरकर के प्रभाव में आइए फ्री इंडिया सोसायटी में रेवा भाई राणा भी आया करते थे जो लीमडी महाराजा के कुतुम्बी थे | वे भारतीय स्वतंत्रता के बड़े समर्थक थे और पेरिस में उन्होंने इसके लिए मीटिंग की थी ज्ञान चंद्र वर्मा अभिनव भारत सोसायटी लंदन के मंत्री थे मैडम कामा इसकी सदस्य थी और क्रांतिकारी साहित्य का वितरण किया करती थी सेनापति बापट एक दूसरे सदस्य थे उनका सिद्धांत है कि न्याय प्राप्ति के लिए हत्या करना उचित बात है रवि शंकर शुक्ल जो फिर मध्य प्रांत के मुख्यमंत्री बने इस सोसाइटी में आया करते थे यह सोसाइटी शिवाजी गुरु गोविंद सिंह और गुरु नानक के जन्मदिन पर उत्सव मनाया करती थी दशहरा पर भी इसका अधिवेशन होता था ग्रेट ब्रिटेन में पड़ने वाले सभी विद्यार्थी इसमें सम्मिलित होते थे जवाहरलाल नेहरू और दो तीन अन्य विद्यार्थी से संपर्क नहीं रखते थे उस समय उनके विचार राष्ट्रीय नहीं थे सारे विद्यार्थी प्राय : उग्र राजनीतिक विचार के थे सावरकर का विचार था कि भारतवर्ष हिंदुओं का देश है दूसरी जातियां यहां आकर बस गई है इसलिए भावी स्वतंत्रता मैं हिंदुओं का आधिपत्य होना चाहिए और अन्य जातियों के अधिकार सुरक्षित रहने चाहिए इंग्लैंड में पढ़ने वाले मुसलमान विद्यार्थियों के विचार और ही प्रकार के थे उस समय जियाउद्दीन ने जो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के कुलपति बनने अब्दुल्ला सुहरावर्दी को लिखा था हमारी नीति सर सैयद की नीति होनी चाहिए मैं कुछ मुसलमान मित्रों के साथ रहता हूं उनको पसंद नहीं है कि राष्ट्रीय लोगों से मेरा संपर्क करें इसलिए उनको नाराज नहीं करना चाहता |
* कृतित्व :-
सावरकर क्रांति वादी विचारों से ओतप्रोत है उन्होंने मैजिनी पर एक पुस्तक लिखी जो महाराष्ट्र में बड़े लोग पीर्य हुई सरकार ने उसको जब्त कर लिया और 40 वर्ष आज तक नहीं बिकने दिया इंग्लैंड में1 मई को प्रति वर्ष 1857 के दमन का दिवस मनाया जाता था सावरकर ने इसके विरोध में विद्रोह की रजत जयंती मनाने का निश्चय किया इसकी अंग्रेजी प्रेस में बड़ी निंदा की गई और सब ने श्याम जी वर्मा को घोर विरोध किया तब श्याम जी लंदन छोड़कर पेरिस चले गए और वहां से भारतीय स्वतंत्रता का प्रचार करते रहे श्याम जी सावरकर से बड़ा प्रेम करते थे इसलिए लंदन से प्रस्थान करते समय उन्होंने इंडिया हाउस सावरकर के सुपुर्द कर दिया सावरकर के समय में इंडिया हाउस का वायुमंडल और भी उग्र हो गया | 22 वर्ष के लड़के का लोगों पर इतना प्रभाव कैसे जिसमें शिवाजी की भावना मालूम होती है सावरकर ने न्यूयॉर्क के एक पत्र में भारत के विषय में लेख लिखें उन्होंने कहा कि भारत वर्ष में अंग्रेजों के राज्य से देश का बड़ा अहित हो रहा है इस दासता का अंत करने के लिए संसार के सारे स्वतंत्रता प्रेमी में लोगों को सहयोग देना चाहिए | वीर सावरकर ने हे शहीदों नामक पुस्तक लिखी है | वह 1857 के वीरों को आह्वान था जिसमें लिखा था कि हमारे कानों में धर्म और देश भक्ति की गूंज भर दो धर्म वही है जो देश भक्ति सिखाता हो तुम लोगों ने अल्प साधनों से अत्याचार का सामना किया था वही प्रकाश हमको भी प्राप्त हो |
* सावरकर के राजनीतिक विचार :-
( 1 ) भारत के सब नागरिकों को पूर्ण अधिकार होने चाहिए और प्रत्यय नागरिक को भारत के प्रति वफादार होने चाहिए |
( 2 ) अल्पसंख्यक लोगों की भाषा धर्म और संस्कृति की रक्षा होनी चाहिए परंतु वे भारत में अपना कोई अलग राज्य स्थापित नहीं कर सकते |
( 3 ) एक आदमी को एक मत देने का अधिकार होना चाहिए |
( 4 ) निर्वाचन मंडल संयुक्त होने चाहिए |
( 5 ) राज्य सेवाये योग्यतानुसार दी जावे |
( 6 ) हिंदी लोक भाषा और नागरिक राष्ट्रीय लिपि होनी चाहिए |
* सावरकर की भारतीय इतिहास व्याख्या:-
भारतीय इतिहास विधायक संबंधी सावरकर की प्रमुख कृति है `` सिक्स ग्लोरियस एपोक्स ऑफ़ इंडियन हिस्टरी ´´ | भारतीय ऐतिहासिक व्याख्या कार में सावरकर वैदिक हिंदू वाद के सघन तथा भाव परख पक्षधर रहे वह बौद्ध धर्म द्वारा प्रतिपादित शांति करुणा समा तक उदारता के मूल्यों के विरुद्ध थे उन्होंने बौद्धों को अक्सर भारतीय स्वतंत्रता तथा भारतीय समाज प्रसार में अवरोधी होने के लिए उत्तरदायी ठहराया वे चंद्रगुप्त मौर्य को सुपर सिकंदर मानते थे जबकि अकबर की मानता के दर्जे को मानने में उन्हें इस आधार पर संकोच था कि वे हिंदू जीवन दर्शन और शैली के कर्म में विदेशी था अपने कृति हिंदू पद पादशाही में सावरकर ने मराठा शक्ति के अंधे को राष्ट्रवादी परिपेक्ष्य में देखा भाला उनके आकलन में हर्षवर्धन तथा पुलकेशिन की अपेक्षा मराठों के पास अधिक उदत्ता आदर्शवाद की धरोहर विद्यमान थी मराठा ने अपने राज्य शक्ति संयोजन में स्वधर्म तथा साम्राज्य की नींव डाली सावरकर के अनुसार मराठा राज व्यवस्था में लोकतंत्र के तत्व विद्यमान थे|
* सावरकर का हिंदुत्व सिद्धांत :-
हिंदुत्व सिद्धांत ने अपने प्रतिपादन में सावरकर हिंदुओं में व्याप्त अलगाववाद का स्पष्ट खंडन करते हैं वह हिंदुओं में सामुदायिक तथा सहयोग भावना के प्रसार के प्रबल समर्थक से इसी भाव की आधारशिला पर हिंदू अपने हितों तथा दायित्व को संचित संगठित कर सकते हैं ऐसा उनका अटूट विश्वास था सावरकर ने 1923 मैं हिंदुत्व नामक पुस्तक लिखी जो आधुनिक काल में हिंदू राजनीतिक विचारधारा पर एक प्रमाणिक कृति मानी जाती है इसमें सावरकर ने हिंदू से सागर तक फैले भारत देश को अपने पुण्य- भूमि तथा पितृ - भूमि मानने वाले लोगों को हिंदू माना क्योंकि इसी भूभाग पर उनका धर्म पलवित व विकसित होता है |
* सावरकर के हिंदू होने के तीन मापदंडों का प्रतिपादन:-
( 1 ) भौगोलिक इकाई तथा राष्ट्र अभाव की प्राथमिकता |
( 2 ) जातीय आधार अथवा खून का रिश्ता |
( 3 ) हिंदू सभ्यता एवं संस्कृति पर गर्व का अनुभव |
इस तरह सावरकर हिंदू वाद की अपेक्षा हिंदुत्व को एक व्यापक अवधारणा तथा प्रक्रिया मानते हैं उनके अनुसार हिंदू वाद हिंदुओं के धार्मिक रीति रिवाज आदि की महत्ता प्रतिपादित करता है जबकि हिंदुत्व सावयविक आधार पर सामाजिक राजनीति एकता का सूत्रपात करता है हिंदुत्व इस एकता के आधार पर राष्ट्रीयता को परी पुष्ट करता है जिसमें सामूहिक जीवन के सामाजिक नैतिक राजनैतिक आर्थिक सभी प्रश्न सम्मिलित है
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