Saturday, 9 November 2019

उत्तर एवं दक्षिण का अर्थ, तथा उत्तर दक्षिण सहयोग और नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था



* उत्तर एवं दक्षिण का अर्थ:-

                                         ( 1 ) उत्तर ( north ) :-

                                                                                              यह उन देशों का समूह है जो कराके का से उत्तर में है तथा इनमें मूलत : यूरोप अमेरिका और अन्य देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था में विकसित है और जहां औद्योगिकरण एवं प्रविधिकी का उपयोग अत्यधिक है मूल्य थे विकसित राष्ट्रों के समूह को उतर के राष्ट्र में सम्मानित किया जाता है और इस विभाजन का प्रमुख विचार आर्थिक आधार है यो यह देश अन्य राष्ट्रों के समूह में अलग मत में है किंतु आर्थिक सैनिक और प्राविधिक की दृष्टि से संपन्न है और विश्व के अन्य राष्ट्रों के निर्णय को को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं | 

                                           ( 2 ) दक्षिण ( south ) :-

                                                                                                                           कर्क रेखा के दक्षिण के देशों को अल्प विकसित या विकासशील राष्ट्रों के समूह में रखा जाता है यह देश आरती दृष्टि से पिछड़े हैं इनकी प्रदीप क्षमताएं अल्प है किंतु अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इन देशों को बहुमत है और लेटिन अमेरिका अफ्रीका और एशिया के अधिकांश राष्ट्र तक सिम के राज्यों में सम्मिलित है इन देशों के बीच जो मूल एकता का आधार है वह उनके आर्थिक पिछड़ेपन में निहित है उत्तर दक्षिण के प्रश्न  को और आगे बढ़ाएं इससे पहले आर्थिक आधार पर एक और विश्लेषण का परिचय हम लोगों को होना चाहिए अन्यथा हमारी आर्थिक आधारों पर दुनिया के विभाजन की समझ ठीक नहीं रह पाएगी इतने मोटे तौर पर विश्व को तीन भागों में बांटा जा सकता है यह विभाजन है | 

* मोटे तौर पर विश्व के भाग:-

                                            ( 1 ) पहली दुनिया:-

                                                                                                                    इसमें वे  राष्ट है जिनकी अर्थव्यवस्था पूंजीवाद और स्वतंत्रता सिद्धांत पर आधारित है अमेरिका,  इंग्लैंड, पश्चिमी जर्मनी,  और जापान,  इसमें संबंधित है | 

                                              ( 2 ) दूसरी दुनिया :-

                                                                                                                       इसमें वे  राष्ट  हैं जिनकी अर्थव्यवस्था साम्यवादी हैं और उत्पादन और वितरण राज्य द्वारा नियंत्रित है इसमें साम्यवादी रूस, पोलैंड,  चीन,  आदि सम्मिलित हैं | 

                                               ( 3 ) तीसरी दुनिया:-

                                                                                                                        इसमें वे राष्ट्र हैं जिनकी अर्थव्यवस्था ही पिछड़ी है प्राविधिक क्षमताएं कम है जो मूल्य थे कच्चे माल के उत्पादक हैं तथा इनकी राजनीतिक व्यवस्थाएं  औपनिवेशिक शोषण की शिकार रही है हम दक्षिण के रास्तों को इस विश्लेषण में सम्मिलित करते हैं उनकी विशेषताओं का सटिक वर्णन रोसेन और वाल्ट्र्स जोना ने किया है उनके अनुसार तीसरी दुनिया का विचार तो वास्तव में मानसिक व्यवस्था का तरीका है जिसमें अंतरराष्ट्रीय राजनीति की असंख्य क्षमताओं को एक उचित और स्पष्ट अर्थों में व्याख्याता किया जा सके | 

* उत्तर दक्षिण सहयोग पृष्ठभूमि और विकास:-

                                                                                                        उत्तर दक्षिण के देशों के बीच सहयोग और संवाद के प्रमुख प्रश्नों पर विचार किया जाए इससे पहले यह बात अच्छी तरह से समझ ली जानी चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक व्यवस्थाओं की बात मूलते द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात ही  उठी है अन्यथा राज्य अपनी स्वयं की आवश्यकता और अन्य देशों की स्थिति के बीच संतुलन बनाए रखते थे विभिन्न पहलुओं के लगातार चढ़ते और उतरते मूल्यों की चिंता नहीं की जिसके प्रति विकासशील राज्यों में सबसे अधिक चिंता थी साथ ही साथ यह भी माना गया है विकास संबंधित प्रश्नों पर विचार विमर्श और चर्चा के लिए अन्य उपयुक्त संगठन होना चाहिए  गेट की स्थापना का उद्देश्य यह था कि व्यापार में उन पर भर्तियों के विकास को रोके जिनसे कि 1930 में विश्वविद्यालय सिकुड़ गया था और उसमें बाधाएं उत्पन्न हो गई थी गेट के अंतर्गत जो व्यवस्थाएं की गई उनकी मुख्य विशेषताएं थी | 

* गेट की विशेषताएं:-

 ( 1 ) अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के व्यापार संबंधी प्रमुख प्रश्नों पर सामूहिक दृष्टिकोण रखा जाएगा | 
 ( 2 ) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टैरिफ सम्मान होगा और किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा किंतु जब तक वार्ताओं द्वारा इसे सम्मान नहीं बनाया जाता है तब तक प्राथमिकता के आधार पर राष्ट्रों को ना प्रदान किया जाएगा | 
 ( 3 ) इसमें आयात पर गुणात्मक प्रतिबंधों को समाप्त किया गया किंतु अपवाद स्वरूप उन स्थितियों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के परिणाम पत्र पर प्रतिबंध जारी रखे जा सकते हैं | 

   ( 4 ) निर्यात और आयात में संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष सुविधाओं की व्यवस्था की गई जो देश आपसी बातचीत के द्वारा लागू कर सकते हैं | 


 अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उत्तर और दक्षिण सहयोग और संवाद के विकास के क्रम में 77 देशों के समय और संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास व्यापार सम्मेलन ओं का उल्लेख करना आवश्यक है जहां विकासशील राष्ट्रों ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अपने सामूहिक प्रयासों और सामूहिक चिंतन दवारा अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ने की चेष्टा की इन सम्मेलनों को सामूहिक दृष्टिकोण के विकास की दृष्टि से देखा जा सकता है जहां पश्चिम के विकसित राष्ट्र अपने हितों को सुरक्षित करने में प्रयत्नशील साम्यवादी व्यापार संबंधों से जुड़े पूर्वी राष्ट्रीय मानते थे कि वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय संतुलन और शोषण से उनका कोई सीधा संबंध नहीं है इसी दौरान पहले व्यापार विकास सम्मेलन में 1964 में उभरता हुआ विकासशील 77 राष्ट्रों का समूह प्रकट हुआ और आगे चलकर संख्या में बहुत वृद्धि कर गया किंतु वे 77 राष्ट्रों के समूह के नाम से ही संबोधित होता रहा तथा हिना राष्ट्रों के समूहों की तीसरी दुनिया के राष्ट्र कहकर भी संबोधित किया जाने लगा यही राष्ट्र दक्षिण के राष्ट्रगीत है | 
 संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में विकास सम्मेलन का आयोजन नियमित रूप से किया जाने लगा इस का प्रथम सम्मेलन | जिनेवा ( 1964  )में हुआ | 

* उत्तर दक्षिण संवाद का आधार के प्रश्न :-

 ( 1 ) कच्चे माल संबंधी प्रश्न | 

 ( 2 ) ऊर्जा संबंधी प्रश्न | 

 ( 3 ) व्यापारिक संबंधों से जुड़े प्रश्न | 

 ( 4 ) अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के व्यापार संबंध | 

* गुटनिरपेक्ष आंदोलन के तहत उत्तर दक्षिण संवाद में यह बातें की गई:-

( 1 )' विकसित देशों की यह इच्छा रही है कि वर्तमान व्यवस्था को अपने ही लाभ के लिए बनाए रखा जाए और विकासशील देशों की आवश्यकताओं को केवल दिखावे के तौर पर लिया जाए जिससे प्रगति के सारे विफल हो गए हैं| 

( 2 ) विकास की रणनीति की सफलता स्पष्ट हो चली है क्योंकि संपन्न देशों में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है कि जिन से वे अपने निर्णयों को किया भिंत कर सके और विकास लक्ष्य विकासशील राष्ट्रों की सही आवश्यकता ओं को प्रतिबंधित कर सकें | 

( 3 ) प्राथमिकता की प्रणाली में कृषि उत्पादन ओं को सम्मिलित नहीं किया गया है और आयात पर नियंत्रण को बढ़ा दिया गया है यह विकासशील राष्ट्रों के हित में नहीं है | 

( 4 ) कच्चे माल की कीमतों की वृद्धि का विकासशील देशों को कुल मिलाकर लाभ नहीं मिला क्योंकि आयात की दरों में उससे भी अधिक वृद्धि हो गई और कच्चे माल की कीमत पर वृद्धि का प्रभाव शून्य हो गया | 

( 5 ) विकासशील राष्ट्रों की विश्व अर्थव्यवस्था में साझेदारी घटती जा रही है और व्यापार के लिए स्थितियां और भी कठिन होती जा रही है | 

* उत्तर दक्षिण सहयोग और नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था:-

                                                                                                                               उत्तर दक्षिण के परस्पर संबंधों में 1974 का विशेष महत्व है जबकि तेल उत्पादक राष्ट्र ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया और तेल की कीमत अपनी शर्त पर ही थे नहीं करवाई वरण अरब इजरायल संघर्ष में भी पश्चिमी राष्ट्रों के दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश की | इसी पृष्ठभूमि में 1974 के अधिवेशन में महासभा ने नहीं अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना की घोषणा की | 

( 1 ) नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आधार समानता,  सार्वभौमिक समानता,  पर इस पर निर्भरता, सम्माहित, और सभी राज्यों के बीच सहयोग होगा | 
( 2 ): विकासशील और विकसित राज्यों के बीच जो अंतराल है उसे समाप्त करना तथा विकास की गति को तेज करना जिसे की आर्थिक सामाजिक न्याय प्राप्त हो सके | 
( 3 ) पिछले कुछ दशकों की महत्वपूर्ण उपलब्धि उपनिवेशवाद से और विदेशी शासन से मुक्ति रही है जिसे बहुत से लोग स्वतंत्र  समाज के सदस्य हो सके | 
( 4 ) वर्तमान अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तो आज के राजनीतिक और आर्थिक घटनाक्रम के सीधे विरोध में है * विकासशील राष्ट्र आज अंतर्राष्ट्रीय गतिविधि के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कारक है और उनकी उपस्थिति हर जगह महसूस की जा सकती है इसलिए उनके द्वारा किए गए निर्णायक हर जगह प्रभावित करते हैं| 
( 5 ) इन स्थितियों में परस्पर निर्भरता विश्व समुदाय के लिए एक प्रमुख वास्तविकता है विकसित और विकासशील राष्ट्रों के हित अब अलग अलग करके नहीं देकर जा सकते हैं ऐसी स्थिति में विकसित राष्ट्रों की संपन्नता मैं और विकासशील देशों के विकास में अन्तनिहितता  विद्यमान है | 

* अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को निर्मित करने वाले सिद्धांत:-

 ( 1 ) राज्यों के बीच व्यापक आधार पर सहयोग जो समानता के सिद्धांत पर आधारित होगा तथा जिसे विश्व के सभी भेदभाव समाप्त किए जा सकेंगे | 

( 2 ) विश्व की आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए समानता के आधार पर सभी राज्यों की साझेदारी जिसमें तेजी से विकास की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए कम विकसित राष्ट्रों को प्राथमिकता प्रदान की जाए | 

( 3 ) प्रत्येक राज्य को अपनी इच्छा से आर्थिक और सामाजिक प्रणाली अपनाने का अधिकार मिले जो उसके लिए उपयुक्त हो | 

( 4 ) बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गतिविधियों पर नियंत्रण का अधिकार जिसे वे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान न पहुंचा सकें | 

( 5 ) विकासशील राष्ट्रों को आर्थिक सहायता प्रदान करना जिससे वे अपने साधनों का सेक्शन कर सके और उनका पूरा उपयोग कर सके | 

( 6 ) कच्चे माल की कीमत का न्याय पूर्ण और समतावादी आधार | 

( 7 ) विकासशील राष्ट्रों को प्राथमिकता प्रदान करना और विशेष आधारों पर प्रोत्साहन देना जो पारंपरिक का पर आधारित में हो | 

( 8 ) विकासशील राष्ट्रों को प्राविधिक की सुविधाएं देना और प्राविधिक के हस्ताक्षर को प्रोत्साहन देना | 

( 9 ) सभी राज्य प्राकृतिक साधनों के अपव्यय को रोके,  जिसमें खाद्य सामग्री भी सम्मिलित हैं | 

                                           

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