Sunday, 3 November 2019

राजनीतिक संस्कृति का बोध, एवं राजनीतिक समाजीकरण : अवधारणा एवं प्रक्रिया


* राजनीतिक संस्कृति का बोध :-

                                                                         वैज्ञानिक शब्दावली में संस्कृत शब्द का प्रयोग एक विशिष्ट अर्थ में होता है जब लोग आम चर्चा में अंग्रेजों के कल्चर शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनका तात्पर्य सृष्टि वर्ग की जीवन विधि अथवा साहित्य, संगीत और कला की परम परिष्क्रत विधाओं से होता है | मानव विज्ञान में जहाँ की  अधिकांश आदिवासी समाजों के अध्ययन पर ही प्रारंभ में बल दिया गया | संस्कृति को किसी भी समाज की जीवन विधि का जाता है के रूप में परिभाषित किया जाता है इस व्यापक अर्थ में संस्कृति मानव, और मानव प्रकृति,  तथा मानव और अतिप्राकृतिक के बीच स्थापित संबंधों और विश्वासों का ही दूसरा नाम है | दूसरे शब्दों में सामाजिक आर्थिक और धार्मिक तीनों ही पक्ष संस्कृति के कलेवर की रचना करते हैं सामाजिक पक्ष में राजनीतिक भी सम्मिलित है किसी भी समाज की यह जीवन विधि संस्कृति उसके इतिहास की देन होती है और यह अभिहित अथवा निहित परंपराओं, जो युक्ति संगत आयुक्त या निरमुक्त होकर भी मानव व्यवहार को नियमित करती है प्रसिद्ध  मानव वैज्ञानिक एडवर्ड टायलर के अनुसार संस्कृति व जटिल पूर्णता है जिसमें ज्ञान- विश्वास, कला, आचार विचार, विधि  ( कानून ), रीति - रिवाज और मानव द्वारा समाज के सदस्य रूप में  अर्जित क्षमताएं  समाहित होती है संस्कृति की यह व्यापक परिभाषा सर्वागी है | यदि भगवान की पूजा करना सम्मिलित है तो चोरी करना और जुआ खेलना भी | केवल शुभ और वांछनीय ही इसके अंग नहीं होते, अशुभ और अवांछनीय का वर्णन और विश्लेषण भी संस्कृति के कध्येता के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है |

( 1 ) राजनीतिक संस्कृति का बोध:-

                                                                             राजनीतिक संस्कृति को एक दृष्टि से  समाज को व्यापक या राजनीतिक प्रणाली से व्यापक भी हो सकता है |  ग्रेबिल आल्मड और सिडनी वर्क ने इस संख्या को प्रस्तावित- प्रचारित किया | आल्मंड और जी.  बर्नीधम पर्विल ( जूनियर  ) ने अपनी पुस्तक कम्पेरेटिव पॉलिटिक्स -ए डेवलमेंटुल एप्रोच ( बोस्टन लिटन कउन एंड कथनी 1966 ) मैं इस संख्या को इस प्रकार परिभाषित किया राजनीतिक संस्कृति किसी भी राजनीतिक  प्रणाली के सदस्यों में राजनीति के प्रति पाए जाने अभिमुखीकरण के तीन अंग होते हैं 

* अभिमुखीकरण के तीन अंग :-

                                                                  ( 1 ) संज्ञानात्मक अभिमुखन |
                                                                  ( 2 ) अनुरागी अभिमुखन |
                                                                  ( 3 ) मूल्यांकनकारी अभिखन |

( 1 ) संज्ञानात्मक अभिमुखन :-

                                                   समाजशास्त्री पार्सस  की शब्दावली में  प्रत्येक भूमिकाधारी एक नेता है और उसके कृत्य और कलाप इन तीन प्रकार के अभिमुखन पर निर्भर करते हैं | या यह उचित होगा कि हम इन परिभाषित संख्याओं का समुचित परिचय प्राप्त कर लें | किसी भी अभिनेता से संबंधित कार्यो को संपादित करने के लिए इस बात की आवश्यकता होती है कि वे अपनी भूमिका से संबंधित अपेक्षाओं और दायित्वों से परिचित हो उसे अपने आसपास के परिवेश का बोध हो | इसी परिचय बोध को संज्ञानात्मक अभिमुखन कहते हैं इस अभिमुखन में समाज के अन्य सदस्यों तथा कई संस्थाओं का योगदान  रहता है | जो सामाजिकरण की प्रक्रिया में भाग लेकर व्यक्ति के संज्ञानात्मक मानचित्र को तैयार करते हैं समाज वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार करते हैं कि व्यक्ति वह सब कुछ नहीं सिखाता जो कि उसे सीखना होता है और कोई भी व्यक्ति समस्त संस्कृति से कभी भी पूर्णत : अवगत होने में समर्थ नहीं होता है | 

( 2 ) अनुरागी अभिमुखन :-

                                                               जितना भी कोई व्यक्ति सीख पाता है उतना ही व्यापक उसका संज्ञानात्मक मानचित्र होता है कोई भी कार्य करते समय वे इसी मानचित्र के सारे अपने लक्ष्य निर्धारित करता है और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए साधनों के उपलब्ध विकल्पों में से अपनी सुविधा और पसंद के अनुसार विकल्प का चयन करता है | कई कारणों से इनमें व्यक्ति के अपने निजी और अपने व्यक्तित्व की विशिष्टता भी सम्मिलित है | प्रत्येक अभिनेता का अपने परिवेश में उपलब्ध वस्तुओं के प्रति भिन्न भिन्न कोटि कर अनुराग होता है अनुराग की इस विभिनता के कारण हि  सामाजिक प्रणाली में विविधता दिख पड़ती है प्रत्येक समाज में और उसकी विभिन्न प्रणालियों में कुछ ऐसे अमूल्य प्रचलित होते हैं जिनके आधार पर प्रणाली में घटने वाली बातों का मूल्यांकन किया जाता है लक्ष्यों का निर्धारण और विकल्पों का चयन करते समय अनुरागी अभिमुखन  के साथ ही साथ  उसे अपने कृत्य का मूल्यांकन भी करना होता है | 

( 3 ) मूल्यांकनकारी अभिखन:-

                                                                          संस्कृति के यह तीनों आयाम परस्पर  संबंधित होते हैं और कई प्रकार के इन तीनों का सम्मेलन किसी भी व्यक्ति में पाया जा सकता है अन्य सामाजिक प्रणालियों की भांति की राजनीति प्रणाली में यह तीन प्रकार के अभिमुखन देखने को मिलते हैं | राजनीतिक प्रणाली में समाज का प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है और उसमें राजनीतिक प्रणाली की ओर तीनों ही प्रकार के अभिमुखन पाए जाते हैं | किसी भी जन समूह में जिस प्रकार का राजनैतिक अभिमुखन  पाया जाता है वह उसी प्रकार से समूची राजनीतिक  प्रणाली के कार्य संचालन को प्रभावित करते हैं इतना होने पर भी किसी व्यक्ति विशेष द्वारा किसी क्षीण  किया गया व्यवहार राजनीतिक  संस्कृति के माध्यम से स्पष्ट नहीं किया जा सकता | 

* राजनीतिक संस्कृति का चित्रण:-

                                                                            राजनीतिक संस्कृति का चित्रण करना सरल नहीं है राजनीति शास्त्रियों ने जनमत संग्रह और अभिवृतियों  के सर्वेक्षणों के माध्यम से किसी भी देश की राजनीतिक संस्कृति को इंगित करने का प्रयास किया प्रश्नावली और भेट वार्ताओं के आधार पर शोधकर्ता यह जानने का प्रयास करते हैं की आम जनता में राजनीतिक प्रणाली के प्रति जागरूकता इतनी है कि वह किसी सीमा तक राजनीतिक प्रणाली में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं राजनीति के इन पक्षों और मामलों पर वे अपनी राय प्रकट करते हैं | राजनीति के विभिन्न पक्षों नेताओं दांतो और नीतियों के बारे में लोगों की जानकारी अत्यधिक और सही हो सकती है या फिर छिछली और गलत | यह उनके संज्ञानात्मक अभिमुख का पक्ष है सही या गलत जानकारी आधार पर वे उन पर अपनी राय भी कायम कर सकते हैं और अपना सहयोग अपनी राय के अनुसार ही प्रदान करने का निर्णय ले सकते हैं | राजनीति प्रणाली और राजनीति संस्कृति में घनिष्ठ संबंध है राजनीतिक प्रणाली की व्याख्या निवेशी ( अंग्रेजी में  जिन्हें इनपुट कहते हैं ) और निर्गतो ( अर्थात आउटपुट ): के संबोधो  की सहायता से की जाती है प्रणाली का वह आदर्श रूप मशीन से लिया गया है किसी भी मशीन से एक ओर से बच्चे पदार्थ डालने जाते हैं यह उस मशीन का निवेश होते हैं मशीन के भीतर ही प्रणाली प्रक्रियारत हो कार इन पदार्थों को दूसरे रूप में डालती और वे निर्गत द्वारा से बन - संवर निर्गत के रूप मैं बाहर आते हैं | 

* राजनीतिक संस्कृति की श्रेणियां:-

                                                                                 से भागी राजनीति संस्कृति ऐसी संस्कृति है जिसमें शासन और शासिका का भेद एक प्रकार से तुज  हो जाता है और जनता सक्रिय रूप से निवेशो और निर्वतो दोनों ही प्रक्रियाओं में भाग लेती है जनता ने केवल अपनी मांगों को शासन तक पहुंचाती है वरन निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी हाथ बताती है संस्कृतियों का यह त्रिपक्षीय वर्गीकरण केवल विश्लेषण के आधार पर वास्तविक राजनीतिक संस्कृतियों में इन तीनों प्रकार की संस्कृति धाराओं का मिश्रण पाया जाता है से भागी राजनीतिक संस्कृति इस बात पर निर्भर करती है कि जनता राजनीति में भाग लेने के लिए अपने को समर्थ गिरने और उन्हें यह विश्वास हो गया कि राजनीति प्रणाली क्षमता के संबंध में लोगों की धारणा को मापने के लिए वैज्ञानिकों ने समुचित निदेशक बनाने की चेष्टा की है 

* राजनीतिक समाजीकरण: अवधारणा एवं प्रक्रिया:-

( 1 ) अर्थ तथा आयाम:-

                                                  संस्कृति सीखा गया व्यवहारे व्यक्ति जब जन्म लेता है तब संस्कृति के नाम पर    शून्य होता है समाज में रहकर लोगों के साथ अंत : क्रिया में भाग लेकर वे समाज के तौर -तरीकों को समझने लगता है उस की रीति नीति जानने लगता है और इस प्रकार वह  जैविक धरातल से उठकर सामाजिक-सांस्कृतिक होने लगता है अपनी और अन्य लोगों की भूमिका एवं उनके साथ जुड़े अधिकारों तथा आभारी का बोध उसी प्रकार होता है उसके जन्म से ही प्रारंभ होने वाले यह प्रक्रिया सामाजिकरण सॉयलाइजेशन कहलाती है व्यक्ति के बाल्यकाल में सामाजिकरण की प्रक्रिया का प्रमुख खतरा है और जिस प्रकार व प्रारंभ में सामाजिक का अर्थ होता है उसी से उसका व्यक्तित्व बनता है किंतु सामाजिकरण की यह प्रक्रिया ए पर का आजीवन चलाती रहती है |

( 2 ) सामाजिकरण स्तर तथा माध्यम:-

                                                                               राजनीतिक समाजीकरण का अध्ययन दो स्तरों पर किया जा सकता है : व्यक्ति के स्तर पर और प्रणाली के स्तर पर | व्यक्ति के स्तर पर यह प्रश्न पूछा जा सकता है वह किस प्रकार किन माध्यमों से राजनीतिक दृष्टि से सामाजिकृत हुआ |  या फिर किसी भी देश में विभिन्न वर्गों के लोग किस स्तर तक सामाजिकृत हुए  है व्यक्ति का समाज में सर्वप्रथम परिचय उसके परिवार में होता है परिवार समाज और व्यक्ति के बीच का एक महत्वपूर्ण संबंध सूत्र  होता है परिवार में उसे बड़ी की सत्ता का नियंत्रण के | प्रक्रम का अपने अधिकारों और दायित्वों का बोध होता है पिता का व्यवहार अपने बच्चों के प्रति प्रजातांत्रिक ढंग भी हो सकता है और दमनपूर्ण  भी | एक तरह से पिता अपने परिवार के संदर्भ में शासक की भूमिका निभाता है और शासन के समय में उसके मूल्य वही होते हैं जो व्यापक समाज के शासन में पाए जाते हैं | 
                                  

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