Tuesday, 5 November 2019

शारीरिक शिक्षा का अर्थ एवं इतिहास

* शारीरिक शिक्षा का अर्थ :-

                                                           शारीरिक शिक्षा का अर्थ शरीर के सर्वागीण विकास की शिक्षा से हैं जो शारीरिक विकास से प्रारंभ होकर संपूर्ण शरीर को उत्तम रखने हेतु प्रदान की जाती है जिसकी बदौलत उत्तम स्वास्थ्य रखने की शारीरिक रूप से बलिष्ठ बनाने की वह मानसिक रूप से शारीरिक शिक्षा सक्षमता प्राप्त कराने की शिक्षाएं शारीरिक शिक्षा प्रति व्यक्ति को शारीरिक मानसिक और भावनात्मक रूप से तंदूरुस्ती प्रदान करने वाली शिक्षा है | 

* शारीरिक शिक्षा की परिभाषाएं :-

                                      सुभाष चंद्र के अनुसार:-

                                                                                                                शारीरिक शिक्षा में शिक्षा है जिससे व्यक्ति मन वचन कर्म से अपनी आयु के अनुसार बिना थके अपने कार्य को लंबे समय तक सुचारू रूप से कर सकें |

           अर्जुन सिंह सोलंकी के अनुसार:-

                                                                                     शारीरिक शिक्षा बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व को प्रकाशित करने की रोशनी है | 

                    हेमलता रावल के अनुसार :-

                                                                                       शरीर से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में उसे करने की सही तकनीकों के विषय में ज्ञान में जागरूकता उत्पन्न कराना शारीरिक शिक्षा है | 

                                 मोहन राजपुरोहित के अनुसार:-

                                                                                                                         मानव शरीर के सर्वागीण विकास एवं उत्तम स्वास्थ्य प्राप्ति का आधार शारीरिक शिक्षा है | 
 भारतीय शारीरिक शिक्षा एवं मनोरंजन के केंद्रीय सलाहकार बोर्ड के अनुसार शारीरिक शिक्षा शिक्षा ही है यह बेसिक्स है जो बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व तथा उसकी शारीरिक प्रक्रियाओं द्वारा उसके शरीर मन एवं आत्मा की पूर्णरूपेण विकास हेतु दी जाती है उपयुक्त परिभाषा ओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का एक अभिन्न अंग के उत्तम स्वास्थ्य के लिए मनुष्य के लिए अत्यावश्यक है शारीरिक शिक्षा केवल शरीर की शिक्षा ही नहीं अपितु संपूर्ण शरीर का ज्ञान है वास्तव में शारीरिक शिक्षा बालक की वृद्धि एवं विकास में सहायक है जिसके पालन से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है तथा स्वास्थ्य एवं कुशाल हाल जीवन व्यतीत हो सकता है

* शारीरिक शिक्षा का इतिहास:-

                                                                 शारीरिक शिक्षा का इतिहास प्राचीन काल से ही  विद्यमान है भारतवर्ष में शारीरिक शिक्षा का प्राचीन काल से महत्वपूर्ण स्थान है विश्व की सबसे पुरानी  व्यायाम प्रणाली भारत की है जिस समय ये यूनान,  स्पार्टा, और रोम में शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में झिलमिलाते हुए तारे का अभ्युदय  हो रहा था उससे पूर्व  भारत में वैज्ञानिक आधार पर शारीरिक शिक्षा का प्रचलन था | 

* भारत में शारीरिक शिक्षा का इतिहास :-

                                                                                          पुण्य भूमि भारत वर्ष में शारीरिक शिक्षा का इतिहास अति प्राचीन है क्योंकि सभी विद्याओं में भारत विश्वगुरू राहे निरोगी काया को पहला सुख माना गया है भारत के अनेक विषयों ने आदिकाल मैं कहां अर्थात यह शरीर की धर्म का श्रेष्ठ साधन है और उत्तम शारीरिक शिक्षा से ही प्राप्त होता है | भारतवर्ष में शारीरिक शिक्षा की जानकारी वेद संहिताओं, उपनिषद और रामायण महाभारत आदि ग्रंथों में भी प्राप्त होती है कुछ श्लोकों में देवताओं के शरीर रूपी आकार का वर्णन आता है जिससे यह बात पुष्ट होती है कि लोगों को अपने शरीर के बारे में ज्ञान था शारीरिक रूप से हष्ट पुष्ट होने के ज्ञान की संपूर्ण जानकारी सतयुग काल द्वापर युद्ध में मिलती है मैं श्री पंतजलि के योग प्राणायाम आसन से विस्तृत शारीरिक शिक्षा की जानकारी मिलती है जिससे व्यक्ति शारीरिक बलिष्ठता ही नहीं बल्कि आत्मिक उन्नति प्राप्त कर अपनी आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सामर्थ्य प्राप्त कर लेता था दिव्य दृष्टि की शिक्षा प्राप्त कर लेता था मैं श्री वाल्मीकि ने शारीरिक शिक्षा के माध्यम से दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लिया था महाभारत युद्ध का आंखों देखा हाल नेत्रहीन राजा धृतराष्ट्र को संजय ने दिव्य दृष्टि के माध्यम सुना दिया था यह सारी शिक्षा का कमाल प्राचीन काल से था अतः इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि शारीरिक शिक्षा का संबंध सृष्टि पर मानव सृजन से हुआ है | 

 * शारीरिक शिक्षा के इतिहास के अध्ययन को निम्न भागों में बांटा जा सकता है:-

   ( 1 ) वैदिक काल:-

                                            वेदिककाल के ग्रंथों वेदों उपनिषदों में शारीरिक शिक्षा के ज्ञान के बदौलत शरीर बल से वे शारीरिक क्रियाओं से परमात्मा प्राप्ति तक के ज्ञान का उल्लेख है सूक्ष्म से विराट स्वरूप प्राप्ति तक का देवी देवताओं का उल्लेख है ऋषि यों ने आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सामर्थ्य प्राप्त किया सामान्य इंसान भी शिक्षा के बूते बलिष्ठ  बनने का भी उल्लेख है | इस काल में यह शिक्षा आसान विमल युद्ध के माध्यम से प्राप्त की जाती थी मल्लयुद्ध की शिक्षा द्वारा योद्धाओं और शूरवीरों का विकास किया जाता था | यहां शरीर को बलशाली बनाने के बारे में बयान किए जाते थे वैदिक काल में भी शास्त्रों का प्रशिक्षण धनुष विद्या मल्लयुद्ध जैसी क्रियाओं का वर्णन आता है  लोग बाल ब्रचारी रहते थे इससे ज्ञात होता है कि शारीरिक शिक्षा का लोगों को वैदिक काल में ज्ञान था तथा पुष्टि देवता और राक्षसों के कई युद्धों से होती है | 

( 2 ) महाकाव्य काल:-

                                             इसी काल में रामायण और महाभारत काल आते हैं इस काल में शारीरिक शिक्षा का काफी वर्णन मिलता है रामायण में सीता जी के स्वयंवर धनुष तोड़ने का वर्णन इस प्रकार की शारीरिक प्रतियोगिताओं का प्रतीक है शिवाय श्री रामचंद्र जी के अलावा कोई राजा धनुष तोड़ने पाए इससे उस काल में शारीरिक शक्ति एवं सामर्थ्य का पता चलता है  स्वयं रामचंद्र जी ने धनुष विद्या का उपयोग किया हनुमान जी का सारे बल भी शारीरिक शिक्षा की जागरूकता को दर्शाता है | 

( 3 ) हिंदू काल:-

                                   हिंदू काल में भी शारीरिक शिक्षा ने अन्य  शिक्षाओ  की भांति अपना महत्वपूर्ण  स्थान बनाया शरीर को बलिष्ठ एवं हष्ट पुष्ट बनाए रखने के लिए अखण्डो  का प्रचलन बढ़ा इस काल में दंड बैठक, कुश्तियों  आदि बहुत प्रसिद्ध हुई | इस काल में महात्मा बुद्ध ने बताया कि शरीर को दुख देने से नहीं अपितु अच्छे कार्य करने से निवारण की प्राप्ति होती है |

( 4 ) राजपूत काल:-

                                              राजपूत काल में शारीरिक शिक्षा का बहुत महत्व था क्योंकि यह काल बहादुरी और शौर्य का काल माना जाता था राजपूत राजा शारीरिक शिक्षा पर पूरा ध्यान देते थे इस काल में शारीरिक क्रियाओं को आवश्यक माना जाता था आत्मरक्षा और आक्रमण करने की शिक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता था महिलाओं की घुड़सवारी किया करती थी महाराणा प्रताप स्वयं बहुत अच्छे घुड़सवार तथा भाला क्षेपण  में निर्गुण थे | कहते हैं कि उनका भाला 81 किलो का था और 72 किलो का कवच पहन का लड़ते थे | 

( 5 ) ब्रिटिश काल:-

                                          भारत में 1858 से 14 अगस्त 1947 तक ब्रिटेन का शासन रहा अंग्रेजों ने भारत की सारी सुरक्षा को अपने अधीन किया तथा भारतीयों पर शस्त्र रखने पर प्रतिबंध लगा दिया फिर गुरुकुल प्रथा को समाप्त करने का कार्य प्रारंभ किया | इस शिक्षा प्रगति के द्वारा भारत वासियों के मन मस्तिक में यह स्थापित करने का प्रयास किया गया कि शारीरिक शिक्षा का कोई विशेष महत्व नहीं है और किताबी ज्ञान में कौन है इसके परिणाम स्वरूप शारीरिक शिक्षा के प्रति रुझान कम हुआ | 

( 6 ) आधुनिक काल:-

                                                15 अगस्त 1947 मैं भारत स्वतंत्र हुआ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शारीरिक शिक्षा की ओर ध्यान दिया गया तथा शारीरिक शिक्षा के लिए अनेक कदम उठाए गए शारीरिक शिक्षा और खेलों के विकास के लिए भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने सन 1950 मैं शारीरिक शिक्षा मनोरंजन के केंद्रीय परामर्श बोर्ड एवं 1954 मैं अखिल भारत खेल सलाहकार बोर्ड की स्थापना की शारीरिक शिक्षा मनोरंजन केंद्रीय परामर्श बोर्ड में 10 सदस्यों को मनोनीत किया गया शारीरिक शिक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल कराना था खेलों का विकास करना था एवं उस दिशा में कार्य प्रारंभ हुआ शारीरिक शिक्षा के विकास एवं खेलकूद के स्तर को ऊपर उठाने के लिए निम्न संस्थाओं का गठन हुआ अखिल भारतीय खेल परिषद का गठन 1954 मैं किया गया | 

* भारतीय खेल प्राधिकरण:-

                                                              इसकी स्थापना 16 मार्च 1984 को की गई जिसे संक्षेप में s.a.i. भी कहते हैं भारतीय खेल प्राधिकरण की स्थापना का उद्देश्य छोटी उम्र में प्रतिभा की खोज एवं पोषण  प्रशिक्षण देकर उत्कृष्ट खिलाड़ी के रूप में तैयार करना है | 
                                             

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