* मैकियावली का जीवन परिचय :-
मैकियावली का जन्म इटली के क्लोरेन्स नगर राज्य में सन 1469 मैं हुआ था| उसने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लेटिन के प्रसिद्ध अध्यापक पॉलो डा रोरसिगिल्यो से प्राप्त की | उसके बाद उसने फ्लोरेंस विश्वविद्यालय से शिक्षा ली| सन 1498 तक मैकियावली के बारे में कुछ भी स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है यद्यपि सन 1498 मैं फ्लोरेंस के शासन में परिवर्तन के साथ ही मेकियावली ने फ्लोरेंस के राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया | मैकियावली को द्वितीय चासरी का अध्यक्ष तथा विदेश संबंधों की कमेटी का सचिव नियुक्त किया गया मैकियावली इस पद पर 14 वर्ष रहा | मैकियावली के राजनीतिक जीवन का आकस्मिक अंत सन 1512 मैं उस समय हुआ जब मेडिकिस सत्ता में आया | नागरिक जीवन के इन वर्षों में मैकियावली को कई कूटनीतिक मिशनो पर फ्लोरेंस से बाहर भेजा गया | इनमें मिशनों के दौरान उसके सरकारी रिपोर्टों के अधिकांश भाग लिखे तथा कई नए विचार पैदा किए |
* मैकियावली की प्रमुख पुस्तकें :-
मैकियावली की प्रमुख दो पुस्तकें हैं | ( 1 ) प्रिंस ( 2 ) डिस्कोसेर्ज |
* मैकियावलीकालीन वातावरण:-
16वीं सदी मध्यकाल एवं आधुनिक राजनीतिक चिंतन के मध्य संक्रमण का काल था इस सदी मे मैकियावली की प्रिंस ( 1513 ), थॉमस मूर की युरोपिया ( 1516 ), मार्टिन लूथर की नाईन फाइल ( 1517 ), तथा बोंदा की पुस्तक सिक्स लिवरस डि ला रिपब्लिक ( 1576 ) राजनीतिक दर्शन के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है साथ ही इन विचारको ने इस युग को एक नया रूप एवं स्वरूप दिया | मैकियावली के फल एवं उस समय की चिंतन प्रक्रिया की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं या प्रवृतियां थी |
विशेषताएं:-
( 1 ) पुनर्जागरण एवं पुनरुद्ध्व |
( 2 ) पुन : सुधार एवं पुननिर्माण |
( 3 ) राष्ट्र -राज्य |
* मैकियावली मे पुनर्जागरण :-
प्रथम पुनर्जागरण एवं पुनरोदव का प्रारंभ सामान्यत : 14 वीं सदी के शुरू में इटली से माना जाता है किंतु 16वीं एवं 17 वीं सदी मैं यह पूरे यूरोप में फैल गया | क्लासिकल अवधारणा के रूप में पुनर्जागरण का तात्पर्य ग्रीक एवं रोम की प्राचीन शिक्षाओं की पुन : खोज तथा काले युगो ( dark ages ) की जड़ता, अज्ञानता तथा रूढ़िवादी से दूर रहना था पुनर्जागरण की झलक सबसे पहले हमें साहित्य पेंटिंग, मूर्तिकला, तथा वस्तु कला, में दिखाई देती है राजनीति में इसका रूप राज्य के निरपेक्ष रूप में सामने आया साथ ही पुनर्जागरण का केंद्रीय बिंदु मानवतावाद भी रहा है निरपेक्षता एवं मानवतावाद का तात्पर्य धर्म विरोधी अथवा नास्तिकता से नहीं था इसका आगरे इस संसार में व्यक्ति की महत्ता पर जोर देना था साथ ही पुनर्जागरण का आग्रह सांसारिक दुनिया में व्यक्ति की जागरूकता समझ तथा उसकी दशा में सुधार पर केंद्रित था दितीय इस काल की दूसरी महत्वपूर्ण प्रवृति पुन : सुधार एवं पुननिर्माण थी चर्च का लक्ष्य सांसारिक संपत्ति धनसंपदा तथा सत्ता प्राप्त करना भर रह गया था वे आत्मा की मुक्ति का साधन नहीं था ऐसे समय में सुधार आंदोलन प्रारंभ हुआ जिसने पोप की सभा पर तीव्र कुठाराघात किया |
* पुनर्जागरण का तात्पर्य:-
पुनर्जागरण का तात्पर्य ग्रीक एवं रोम की प्राचीन शिक्षाओं की पुन : खोज तथा ``काले युगो´´ की जड़ता, अज्ञानता, तथा रूढ़िवादिता से दूर रहना था |
* मानव प्रकृति:-
मैकियावली ने मानव प्रकृति के बारे में नकारात्मक एवं निराशावाद मत अपनाया | मैकियावली मैं स्वयं प्रिंस में लिखा है कि व्यक्तियों के बारे में यह कहा जा सकता है कि व अकृतज्ञ, बातूनी, कपटी, खतरे को टालने में उत्सुक, लाभ के लालची तथा लोभी होते हैं | व्यक्ति अच्छा हो ही नहीं सकता अगर उसको इसकी कोई आवश्यकता नहीं हो दूसरे शब्दों में व्यक्ति उसी समय तक अच्छा है जब तक उसको इसकी आवश्यकता है जब आवश्यकता खत्म हो जाती है तो जो भी स्वतंत्र होकर उन्हें अच्छा लगता है वह करते हैं ऐसा करके वें अव्यवस्था तथा अस्पष्टा पैदा कर देते हैं | हालांकि मैकियावली इस बात पर जोर नहीं देना है कि सभी व्यक्ति हमेशा बुरे होते हैं मैक्यावली का मानना है कि व्यक्ति अच्छा भी हो सकता है तथा सफल राज्य भी अच्छाई पसंद हो सकता है कि वे साधारण जीवन न्याय के प्रति लगाव मानवता आदि मूल्यों पर चलकर भी एक सफल सम्राट बन सकता है किंतु मेकियावली की मान्यता है कि ऐसा हमेशा नहीं वरन कभी-कभी अपवाद स्वरूप ही होता है मैकियावली का मानना है कि कुछ सीमा तक व्यक्ति स्वयं अपने भाग्य का स्वामी होता है वह लिखता है कि बहुत से व्यक्ति इस मत के रहे हैं| ईशान सारी घटनाएं भाग्य एवं ईश्वर द्वारा इस प्रकार संचालित होती है कि व्यक्ति अपने बुद्धि से उन्हें बदल नहीं सकता | मैकियावली ने इस मान्यता को अस्वीकार कर दिया यद्यपि उसने माना कि मानव जीवन में भाग्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है किंतु साथ ही वे इस कारण पैदा होने वाली सहायता से भी सचेत करता है प्रिंस के अंत में 1 अध्याय भाग्य पर लिखा गया है जिसमें उस भाग्य की तुलना नदी की बाढ़ से ही है नदी की बाढ़ शक्तिशाली होती है किंतु उसे तटबंदो नहरों तथा बांधो से नियंत्रित किया जा सकता है मैकियावली का मानना रहा है कि भाग्य हमारे आधे कार्यों को नियंत्रित करता है किंतु बुद्धिमान व्यक्ति घटनाओं को अपने पक्ष में करके तथा उनके अनुरूप कार्य करके इस आधे भाग को अपने पक्ष में मोड़ लेता है मैक्यावली ने लिखा है कि व्यक्ति को समय के साथ चलने के लिए तैयार रहना चाहिए| सावधान होने की बजाय जल्दबाज होना ज्यादा अच्छा है | भाग्य औरतें और अगर आप उसके स्वामी बनता चाहते हो तो यह आवश्यक है कि शक्ति से उस पर विजय पाई है साथ ही यह भी देखा जा सकता है कि वह कायर व्यक्ति की उपेक्षा उन व्यक्तियों के सम्मुख स्वयं समर्पण कर देती है | जो पराक्रम से कार्य करते हैं मैक्यावली ने कहा कि इतिहास से हमें यह सबक मिलता है कि विश्व के महान एवं सफल व्यक्तियों ने अपने भाग्य के उस हिस्से के साहरे जिस व्यक्ति पर छोडा गया है घटनाओं को अपने पक्ष में मोड़ लिया है अत : व्यक्ति को भाग्य के भरोसे बैठे रहने की अपेक्षा साहसपूर्वक समयाअनुकूल कार्य करना चाहिए |
* मैकियावली की राज्य अवधारणा:-
मध्यकालीन विचारकों ने राज्य की अपेक्षा सांसारिक सत्ता पर जोर दिया | उनका मानना था कि समूर्ण ईसाईंयत मैं दो तरह की सताये - आध्यात्मिक तथा सांसारिक विद्यमान है सांसारिक सत्ता का प्रतिनिधित्व राजा करता है तथा आध्यात्मिक सत्ता का चर्च तथा पोप | राजा पोप द्वारा निर्धारित किए गए नियमों के अनुसार चलता है दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि सांसारिक सत्ता आध्यात्मिक सत्ता द्वारा नियंत्रित एवं निर्देशित होती है किंतु मैक्यावली ने मध्यकाल की इस मान्यता को अस्वीकार कर दिया मैक्यावली ने राज्य की सत्ता को किसी बाहरी सत्ता द्वारा नियंत्रित नहीं किया उसके अनुसार राज्य चर्च के नियंत्रण में नहीं वरन संपूर्ण सत्ता स्वयं लिए हुए हैं | राज्य से सर्वोच्च कोई अन्य सत्ता नहीं है तथा कोई भी इस चुनौती नहीं दे सकता यह सही है कि मैक्यावली में संप्रभुता की अवधारणा उसे रूप में नहीं मिलती जिस रूप में वह बोदा था होम्स के लेखन में मिलती है मैक्यावली के लेखन में हम राज्य की अवधारणा को पाते हैं जिसने आगे चलकर संप्रभुता की मान्यता को जन्म दिया साथ ही एक अंतर यह भी देखते हैं कि जिन विचार घने संप्रभुता की धारणा का विकास किया उन्होंने मध्यकालीन सीमित सरकार के मान्यता को खुले एवं सचेत रूप से स्वीकार किया जबकि मैक्यावली ने इसकी खुली एवं सचेत अस्वीकृति की अपेक्षा उसके प्रति उपेक्षा का दृष्टिकोण अपनाया | पलेटो तथा अरस्तु की राजा की मान्यता से पूर्णतः भिन्न मैक्यावली का राज्य नैतिक रूप से तटस्थ हैं मैक्यावली के अनुसार राज्य सत्ता का वे संगठन है जिसका संचालनकर्ता जो भी अपने लिए अच्छे लक्ष्य हो, उनका प्रयोग कर सकता है प्लेटो तथा अरस्तु के अनुसार राज्य का लक्ष्य नागरिक के सद्गुणों को बढ़ाना एवं उसके लिए नैतिक वातावरण तैयार करने के लिए है जबकि मैक्यावली ने इस रूप में राज्य को एक साधन के रूप में कभी प्रयोग नहीं किया मेकियावेली ने राज्य के नैतिक रूप की कभी विवेचना नहीं कि मैक्यावली के अनुसार राज्य यश रचना है जिसका सबसे प्रमुख लक्ष्य स्वयं का स्थामित्व तथा स्वयं को शक्तिशाली बनाना है |
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