*** सम्प्रदाय ***
* रामस्नेही संप्रदाय :-
रामस्नेही का अर्थ रामोपासक है | रामचरण जी ने रामस्नेही संप्रदाय का प्रार्थना स्थल |
* रामानुज संप्रदाय :-
रामानुज संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य थे | रामानुजाचार्य ने ब्रह्मा सूत्र पर श्री भाष्य की रचना की एवं विशिष्टदैत का प्रतिपादन किया रामानुज संप्रदाय के उपास्य देव भगवान राम है | इसे रामावत संप्रदाय एवं रामानंदी संप्रदाय भी कहते है | सवाई जयसिंह ने रामानंदी संप्रदाय को अधिक प्रोत्साहन दिया | गलता ( जयपुर ) _ यहां रामानुज संप्रदाय की प्रमुख पीठ स्थित है उत्तर गोलादि गलता पीठ को कहा जाता है स्पीड के संस्थापक स्वामी कृष्ण्दास पयहारी थे |
* साध संप्रदाय :-
वीरभान, वीरलाल, और उदादास, - साध संप्रदाय के प्रवर्तक | जी आचरण प्रदान संप्रदाय है जिसमें उल्लेखित 12 नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है इस संप्रदाय में ईश्वर को सतकर और सतनाम कहां जाता है | पंच मदरिया - साध संप्रदाय के मंदिरों को जोधपुर में कहा जाता है
• मारवाड़ में साध संप्रदाय के 4 वर्ग:-
( 1 ) रामावत साध - खोड, झीतड़ा - मारवाड़ में इस पंथ के प्रमुख और बड़े गुरुद्वार |
( 2 ) धन्नाबंसी साध - धन्ना जाट इस साध पंथ के अनुयायी थे |
( 3 ) दसनामी साध - यह शिव उपासक है |
( 4 ) सतनामीसाध - यह अपने पंथ को तीसरा पंथ कहते हैं |
* शाक्त संप्रदाय:-
शक्ति की उपासना करने वाले भक्तों, बीकानेर के राठौड़ ने करणी माता, कच्छवाहो ने अन्नपूर्णा, आमेर के शासकों ने शीला देवी, सिसोदिया शासकों ने नागणेची माता, को अपने कुलदेवी माना |
* वैष्णव ( भागवत ) संप्रदाय:-
वैष्णव धर्म का मूल आधार या सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व इसका उल्लेख सबसे पहले भगवत गीता में किया गया है भागवत धर्म का उत्कर्ष दितीय सदी ईस्वी पूर्व में हुआ भागवत धर्म को प्रमाणित लोकतंत्रात्मक धर्म माना जाता है |
वासुदेव-
भागवत संप्रदाय के प्रवर्तक |
मथुरा_
भागवत संप्रदाय का प्रमुख केंद्र|
भागवत पुराण_
भागवत धर्म का प्रमुख ग्रंथ |
* वैष्णव धर्म की प्रमुख शाखाएं:-
( 1 ) पुष्टीमार्ग संप्रदाय( वल्लभ संप्रदाय ):-
17 वी शताब्दी में वल्लभ संप्रदाय का राजस्थान में आगमन हुआ भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन इस संप्रदाय में किया गया इसके अलावा सात में से पांच पीठ राजस्थान में जो इस प्रकार हैं श्री माथुरेश जी ( कोटा ) श्री द्वारकाधीश जी ( कांकरोली ) श्री गोकुलचंद्रमाजी ( कामा ) श्री मदन मोहन जी ( करौली ) श्री विट्ठलनाथजी ( नाथद्वारा ) |
हवेली- वल्लभ संप्रदाय के मंदिर को कहते हैं
आठ झांकियां - पुष्टिमार्गीय पूजा पद्धति में भगवान के दर्शन हर समय नहीं होते हैं केवल निश्चित समय समय पर होते हैं जिससे झांकी कहते हैं वल्लभ संप्रदाय में प्रातः काल से संयंत्र में निम्न 8 झांकियां होती है मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, संध्या, आरती, शयन, |
ग्रंथ_ वल्लभाचार्य द्वारा लिखित ग्रंथ ब्रह्मसूत्र पर भाष्य श्रीमद्भागवत की सुबोधिनी टीका |
( 2 ) निंबार्क संप्रदाय:-
निंबार्क संप्रदाय में राधा और कृष्ण की युगल ग्रुप की सेवा करते हैं इसमें राधा को कृष्ण की पत्नी माना जाता है निंबार्क ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ वेदांत परिजात सौरभ तथा दशशलोकि में अपने विचारों को दर्शाया है राजस्थान में जयपुर जोधपुर किशनगढ़ बीकानेर राज्य में इनके गोपाल द्वारे बने हुए हैं
•निंबार्क संप्रदाय की पीठ:-
( 1 ) वृंदावन ( मथुरा उत्तर प्रदेश ) मुख्य पीठ -
( 2 ) सलेमाबाद ( अजमेर ) राजस्थान में यह पीठ रूपनगढ़ नदी के किनारे स्थित है |
( 3 ) उदयपुर |
( 3 ) गौड़ीय संप्रदाय:-
आधुनिक वैष्णववाद - चैतन्य महाप्रभु द्वारा स्थापित गोंडीय संप्रदाय को कहते हैं गौड़ीय संप्रदाय के राजस्थान में प्रमुख मंदिर गोविंद देव जी (जयपुर )में मदन मोहन जी (करौली) है | आमेर के राजा मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में गोविंद देव जी का मंदिर बनवाया | जयपुर के शासकों ने गोविंद देव जी को जयपुर का राजा घोषित किया आज भी गोविंद देव जी जयपुर के राजा कहलाते हैं |
( 4 ) राधावल्लभ संप्रदाय :-
स्वामी हित हरिवंश द्वारा प्रवर्तित वैष्णव संप्रदाय |
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