Wednesday, 6 November 2019

परंपरागत मुस्लिम राजनीतिक विचारधारा तथा प्रमुख भारतीय मुस्लिम राजनीतिक विचारक


* परंपरागत मुस्लिम राजनीति विचारधारा:-

                                                                                                   इस्लाम का भावार्थ ईश्वर के प्रति समर्पण है | शाहरस्तानी ने पैगंबर मोहम्मद साहब के एक संवाद के प्रसंग में काहे की इस्लाम ईश्वर व उसके पैगंबर के प्रति आस्था पांच बार नमाज पढ़ने दस दिन रमजान में रोजे रखने तथा मक्का की हज यात्रा में निहित  है | परंपरागत मुस्लिम राजनीति विचारधारा पूर्णतः  मजहब पर ही आधारित है बिना ईश्वर में पूर्ण आस्था के किसी प्रकार की मुस्लिम राजनीति कल्पना संभव नहीं हो सकती कुरान की शहादत के अनुसार मनुष्य के सामाजिक एवं राजनीतिक संबंधों का निर्माण व्यक्ति व ईश्वर के मध्य एक समझौते निसाक पर आधारित है अल्लाहताला मैं पूर्णरूपेण विश्वास रखना पर ही व्यक्ति के राजनैतिक व सामाजिक संबंधों का निर्धारण होता है इस्लाम की यह मान्यता है कि बिना ईश्वरीय कृपा के मनुष्य के अस्तित्व की कल्पना भी संभव नहीं है तथा बिना ईश्वर में आस्था रखें किसी भी प्रकार के सामाजिक स्वरूप की स्थापना भी नहीं हो सकती इस्लाम के मतानुसार ईश्वर एक है तथा मोहम्मद उनके पैगंबर के रूप में है तथा कुरान  ईश्वरीय वाक्य के रूप में मुसलमानों के लिए सर्वमान्य हैं | 

 इस्लाम अनुसार ईश्वर के प्रति आस्था रखने वालों के द्वारा आदर्श समाज उमा की स्थापना होती है यह उमा सामूहिक मातृत्व की भावना पर आधारित होते हुए भी इसकी शक्ति के स्त्रोत को ईश्वरी आज्ञा में ही स्वीकार किया गया है | 

  * इस्लामी विचारधारा के चार परंपरागत स्त्रोत:-

                                                                                              ( 1 ) कुरान 
                                                                                              ( 2 ) हदीस  | पैगंबर साहब द्वारा प्रतिपादित कहावतें  परंपरा, रीति -  रिवाज आदि | 
                                                                                              ( 3 ) इज्मा | विभिन्न उलमा ओ  अर्थात धर्म विदो की सर्व सम्मतियाँ  | 
                                                                                              ( 4 ) कियास  विभिन्न कानूनी तार्किक  मान्यताएं  एवं  न्याय संबंधी विचार | 
 इस्लामी परंपरागत राजनैतिक  विचारधारा तो मूल्यत : कुरान सुन्ना के आदर्शवादी व्यवहारों एवं शरिया पर ही आधारित है  इस्लाम ने नैतिक एवं राजनैतिक विचारधारा के अतिरिक्त एक नवीन सामाजिक व्यवस्था को भी जन्म दिया मुस्लिम परिवार पितृ - प्रधान बहुविवाहवादी बने | स्त्री की अपेक्षा पुरुष को अधिक महत्व दिया गया विवाह एक समझौते के रूप में स्वीकार किया गया तथा चार पत्नियों को रखने तक की अनुमति दी गई यद्यपि यह व्यवस्था आजकल मिटती  जा रही है | अनेक प्रतिबंधों के विकसित होने के उपरांत भी आज भी पति हरतरफ़ा  हर रूप से पत्नी को तलाक दे सकता है 

* भारत तथा इस्लाम:-

                                               16 जुलाई 622 ई हिजरी संता प्रथम दिवस है तत्पश्चात जिसे तीव्र गति से संसार में इस्लाम का प्रचार हुआ है वह तत्कालीन समाज की  क्षीण राजनीतिक सामाजिक दशा का परिचायक तो है किंतु इसके साथ-साथ इस्लाम में नव संदेश की प्रभावशीलता को भी सिद्ध करता है फलस्वरूप 14 वी 15 वी शताब्दी में संसार के बहुत बड़े भाग में दार उल इस्लाम की स्थापना हुई भारत में मुस्लिम अभ्युदय  इतिहास की एक महान घटना है रमणीय तथ्य यह है कि जिस रूप में इस्लाम भारत में आया वे उसका मौलिक स्वरूप नहीं था राजतंत्र शान शौकत विलासिता दास प्रथा आदि का विकास हो चुका था भारत में राजा को ईश्वर के प्रतिनिधि के स्वीकार किए गए एवं सबल केंद्रीय सरकार की स्थापना की गई जिसमें जनता के किसी भी प्रकार के कोई अधिकारों का कैसा भी अस्तित्व नहीं था तथा कठोर सैनिक वाद के आधार पर मुस्लिम राजनीतिक व्यवस्था का संचालन किया गया अकबर महान जैसे शासनकाल के अपवाद के अतिरिक्त सारे ही मुस्लिम काल में विशेषकर बहुसंख्यक हिंदू जनता के लिए तो किसी भी प्रकार के राजनीतिक अधिकारों का अस्तित्व ही नहीं था किंतु यह वास्तविकता नहीं है क्योंकि मुसलमान राजाओं की शक्ति के मंत्री परिषद दरबारी और यहां तक कि उलमा वर्ग भी सीमित नहीं कर सके पैगंबर की मृत्यु के कुछ वर्ष पश्चात ही लगभग आठवीं शताब्दी में मुसलमान व्यापारी के रूप में पश्चिमी तट पर आकर बस तथा इसी काल में मोहम्मद बिन कासिम की  आधीनता  में सिंध पर आक्रमण हुआ | भारतीय मुसलमान अधिकतर हिंदू धर्म परिवर्तन कारी हित है तथा इस देश में जन्म जन्मांतर  रहते के कारण भारतीयता का प्रभाव उन से अछूता नहीं रहा | स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय संविधान द्वारा धर्मनिरपेक्षता के आधार पर सभी नागरिकों को समान रूप से स्वतंत्रता    वे व्यक्तिगत गरिमा और न्याय के लिए दृढ़ संकल्प हो देश में संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणराज्य की स्थापना की गई है | 

* प्रमुख मुस्लिम राजनीतिक विचारक:-

               ( 1 ) सर सैयद अहमद खां और आधुनिकता :-

                                          सर सैयद अहमद खां भारतीय मुसलमान सुधारको  महानतम थे वह पूर्णतया  अपने युग के शिष्य थे मुस्लिम समाज में पाश्चात्य  शिक्षा से प्रभावित होकर उन्होंने उदारवादी दृष्टिकोण के आधार पर पुनर्जागरण किया उन्होंने नए या अर्थ केवल राजनीतिक ही नहीं वरन सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था के पुनर्निर्माण के रूप में लिया उनका तत्कालीन मुस्लिम समाज से आग्रह था कि वह बदलते हुए वातावरण को समझें तथा यू की चुनौती स्वीकार करके अपने जीवन दर्शन को परिवर्तित करें यद्यपि मुस्लिम नवजागरण का शुभारंभ अकबर महान ने किया था मुगल साम्राज्य के पतन के पश्चात सांवली उल्लाह तथा उनकी मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र शाह अब्दुल अजीज तथा शिष्य मौलाना अहमद ने इस कार्य को  गतिवान किया 

* शिक्षा एवं सांस्कृतिक विचार:-

                सैयद अहमद की शिक्षा संबंधित दिन के लिए मुस्लिम समाज उनका सदैव ऋणी रहेगा उनके इस संबंध में सुधारों का सूत्रपात1859 मैं अंग्रेजी के अधिकाधिक प्रयोग के समर्थक से प्रारंभ हुआ 1864 मैं उन्होंने मुस्लिम समाज में विज्ञान के प्रति रुचि जागरूक करने हेतु साइंटिफिक सोसाइटी  की स्थापना जिसके द्वारा उनका प्रयास अभी नवीन विषय जैसे भौतिक रासायन आदि के अतिरिक्त इतिहास राजनीति आदि अंग्रेजी साहित्य का उर्दू में अनुवाद करके मुस्लिम समाज में ज्ञान की अभिवृद्धि करना था | 

* उनका पाश्चात्यीकरण :-

                                                           सैयद अहमद एक  युग दृष्टा थे और उन्हों मुसलमान समाज में हिंदुओं के पुनर्जागरण की भांति आधुनिकीकरण हेतु पाश्चात्य संपर्क का प्रबल समर्थन किया शाहवली उल्ला द्वारा प्राचीन एवं नवीन विचारों के संबंध में कार्य पुनर्जागरण के विचारों से अत्यधिक प्रभावित है युवावस्था में ही उन्होंने  यह स्वीकार किया कि बिना मुस्लिम समाज में सुधार किए किसी भी प्रकार से मुसलमानों का विकास संभव नहीं है उन्होंने 22 वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के उपरांत 1838 मैं पारिवारिक इच्छा के विरुद्ध ब्रिटिश सेवा डिप्टी रीडर पद से प्रारंभ की नौकरी काल में उन्होंने धर्म एवं इतिहास का चिंतन नहीं छोड़ा | 

* धार्मिक कल्पना:-

                                       शाहवली उल्ला मैं उनके  प्रभावित विचारों को प्रभावित किया था  जिसमें उन्होंने धर्म को केवल नैतिकता स्थापित करने का साधन मात्र माना तथा धार्मिक अवस्था से अधिक सत्य के आधार को अधिक बल दिया उन्होंने परंपरागत इस्लाम का नवीनीकरण के आधार पर पुणे मूल्यांकन किया उनके अनुसार यह ईश्वर में पैगंबर के अतिरिक्त कुरान ऐश्वर्य वाक्य तो है जिनके माध्यम से ज्ञान प्राप्ति होती है किंतु उनकी यह भी मान्यता थी कि कुरान की आयतें  प्राकृतिक विधि की किसी भी प्रकार से विरोधी नहीं हो सकती उन्होंने ईश्वरीय ज्ञान प्राप्ति हेतु परंपरागत धर्म के साथ साल व्यक्तिगत तर्क व विज्ञान ताकि सहारा लेने की आवश्यकता पर भी बल दिया | 

( 2 ) मौलाना मोहम्मद अली तथा मुस्लिम अध्यात्मवाद  :-

                                                           उन्होंने एक और जहां आधुनिकता व  वैज्ञानिकता का समर्थन किया वह दूसरी ओर इस्लामी मूल्य व मान्यताओं के प्रति आस्था को बनाए रखने पर बल दिया एक प्रकार से वह भी अलीगढ़ आंदोलन के प्रभाव स्वरूप उत्पन्न परिस्थितियों के चिंतन पर उनके द्वारा स्थापित जामिया मिलिया की स्थापना से उनकी अलीगढ़ स्वरूप के विरुद्ध कल्पना करना उचित नहीं होगा वह एक और तर्क सत्य की खोज के समर्थक थे वहां दूसरी और परंपराओं के विरुद्ध के हामी नहीं थे उनका विश्वास था कि शिक्षा राज्य द्वारा संचालित नहीं होनी चाहिए यद्यपि उन पर सर सैयद का गहरा प्रभाव था और इसलिए उन्होंने जामिया मिलिया के माध्यम से शिक्षा में आधुनिकतावाद और परंपरावाद का समन्वय किया | 

( 3 ) मोहम्मद इकबाल पृथकता एवं रचनात्मक स्वरूप में इस्लाम का पुनर्निर्माण:-

                                   मुलत : एक दार्शनिक और एक कवि के रूप में इकबाल इकबाल के गाए थे तथा उन्होंने पतन की दलदल से मुसलमानों को निकाल कर उनके आत्मविश्वास आत्मसम्मान तथा सर्जनात्मक संघर्ष के पथ पर आगे ले जाने का प्रयास किया वे पूर्णतः इस्लामी परंपरा वादी थे तथा कुरान उनकी प्रेरणा का स्त्रोत था उनकी मान्यता थी कि शताब्दियों की परंपरा और रिवाजों के घेरे  ने इस्लाम के मौलिक स्वरूप को धूमिल कर दिया है | 


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